आज की बातचीत भी बेनतीजा रही , और आगे की भी सारी कवायद यूँ ही बिना परिणाम देने वाली रहेगी। क्यूंकि 60 करोड़ किसानों वाले इस देश में सिर्फ दस हज़ार से भी कम लोग , जो मुख्यतया पंजाब प्रांत से आते हैं , उनमें भी वामी काँगी और जाने कौन कौन भेष बदल कर किसान क्रांतिकारी बना बैठा है ,

सिर्फ इन मुट्ठी भर लोगों की हठ , वो भी कैसी -संसद ने जो क़ानून पारित किया उन कानूनों को वापस ले लो -क्यों -क्यूंकि ये आशंका है ये अंदाज़ा है ये अनुमान है कि इससे आद्यौगिक घरानों के पास किसानों की फसल -नहीं नहीं फसल नहीं सीधा जमीन ही चली जाएगी।

अच्छा अच्छा इन किसानों को अपनी जमीन से अथाह प्रेम है और इसके चले जाने की आशंका के कारण ही ये सब दिल्ली की सीमा पर आ डटे हैं। जमीन की चिंता -सचमुच ही क्या ? पंजाब के उन कृषकों को जिनके घरों की आधी आबादी वर्षों पहले ही विकास और आधुनिकता की चकाचौंध देखने के लिए कनेडा के उड़ान भरती रही है। बुरा लगा , चलो विदेश न सही अपने ही देश और प्रदेश की बात कर लेते हैं। धरती की चिंता है किसानों को ,जमीन की- है न , उसी जमीन की न जिसमें बरसों से रासयनिक खाद और जाने कितने विष मिला कर पूरी धरती और वहाँ के पूरे समाज को ही कैंसर ग्रस्त होना पड़ गया है।

ये जो पिछले कुछ दिनों में , किसान आंदोलन के नाम पर एकजुटता दिखाई गई है न , जो दरियादिली दिखा कर सबने अपनी अपनी गरीबी में से जकूजी बाथ से लेकर फुट मसाज तक खुद को उपलब्ध करवाया है और अब भी जारी हैं , यकीन मानिये उस पर पूरे देश को मान अभिमान होता -यदि इसका एक प्रतिशत भी पंजाब में पनप रहे दोनों कैंसर -नशे का बढ़ता जाल और रासयनिक उर्वरकों के उपयोग फैला हुआ कैंसर।

काश कि कोई दलजीत अपने फैन फॉलोविंग का प्रभाव इन बुराईयों को पंजाब से ख़त्म करने के लिए लगा सकता। काश , कि आज सीमा पर सर्दी बारिश में खड़े बैठे ये तमाम धरती वीर कभी हिम्मत से खड़े हो पाते पंजाब की उन हज़ारों बच्चियों के लिए जिन्हें विदेशी ससुराल के दुःस्व्पन और दुश्चक्र में फँसा कर हर साल विवाह के बाद पंजाब के NRI युवा बीच भंवर में छोड़ कर निकल जाते हैं।

चलिए दो टूक बात करते हैं -ठीक आपके ही लहज़े में। क्या चाहिए आपको -बिना ये पूछे समझे कि अपने दिल पर हाथ रख कर बताइये कि जिन कानूनों को समझने में सालों से हमारे सबसे प्रबुद्ध चिंतक अधिवक्ता और न्यायालय भी रोज़ समझने में लगे रहते हैं उन कानूनों को आप चटपट समझ गए।

चलिए समझ गए और ये भी परिणाम निकाल लिया की बिलकुल गलत क़ानून है ये , तो सड़क पर बैठ कर राजधानी को घेर कर कहेंगे -क़ानून हमें तो नहीं भाता , सरकार वापस ले इसे। ऐसे चलती है सरकार और ऐसे चलेगा देश ?? जबसे इस सरकार ने काम करना शुरू किया है , बस शुरू होते ही पता चल जाता है कि इससे तो नुकसान ही होगा ? मगर दिक्कत यहाँ होती है कि ऐसा कह कर पिछले छह साल से छाती पीट पीट कर अलग अलग बहाने से सड़कों पर आ कर सरकार को झुकाने की मंशा रखने वाले हर बार , बेचारे अलग थलग रह जाते हैं।

क़ानून में खामियाँ हैं , क़ानून का चाहे क भी पढ़ने की जहमत न उठाई हो मगर कह दिया न की उसमें कमियां हैं ,खामियां हैं तो हैं -तो इस देश में न्यायपालिका के रूप में दुनिया के कुछ सबसे बेहतरीन व्याख्याकार मौजूद हैं , अदालत में चुनौती देकर , तर्क और प्रमाण सहित ये साबित किया जाए कि देखिये ये सरकार जो हर कुछ दिन में कभी गैस चूल्हा तो कभी राशन , कभी नकद तो कभी योजना के रुप में दिन रात इस देश की उन्नति के लिए उसे गढ़ने में लगी है उस सरकार ने इस क़ानून से किसानों के प्रतिकूल विधि का निर्माण किया है।

विधिज्ञ के रूप में एक टिप्पणी सिर्फ यह जरूरी हो जाती है कि , न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत का सबसे बुनियादी नियम होता है -निष्ठा और नीयत -जिससे कुछ भी कारित किया जाता है और उस कसौटी में वर्तमान सरकार अपने पूर्व की सरकारों , राजनैतिक दलों और नीतियों में भी कहीं अधिक स्पष्ट और सशक्त हैं। जनकल्याण हेतु बनाए गए नियम क़ानून यदि अप्रिय भी हों , किन्तु लोक कल्याण के अपने परम उद्देश्य के प्रति समर्पित हों तो वे विधि की हर कसौटी पर खरे उतरेंगे।

चलते चलते एक बात , एक आम ,मध्यमवर्गीय , इस देश के एक अदने से नागरिक की तरफ से – किसान जी , अपनी अपनी जमीन की सौगंध खाकर अपने आप से एक बार जरूर पूछिए कि आज जब पूरी दुनिया एक वैश्विक महामारी से लड़ने में अपनी ताकत , श्रम , धन सब कुछ लगा रही है तो , ऐसे में अभी ही , इस कोरोना काल में ही ये “किसान आंदोलन” , और आंदोलन से जो सबसे अधिक पुरजोर तरीके से बाहर निकल कर आया है वो क्या -पिज़्ज़ा खाते हुए , फुट मसाज़ लेते हुए , डीजे , कबड्डी ,बैडमिंटन , जिम -लोगों ने वहां सेल्फी स्पॉट बना लिए हैं , वही चेहरे जो रोज़ सड़कों पर उदित हो जाते हैं ,कोई गिर कर खबर में आना चाह रहा है कोई गिरा कर।

जय जवान और जय किसान -इसे मुझसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता क्यूंकि पिता किसान और फौजी दोनों ही थे। और इस देश के जवान की बहुत ही मर मिटने वाली बात में एक बात ये भी होती है कि कुछ भी हो जाए वो देश और सरकार के विरूद्ध कभी नहीं जाता। कंधे जो देश के बेटों के होते हैं वो हल और बंदूक दोनों को एक ही शान से उठाते , सजाते हैं।

किसान की नाराज़गी ,सरकार से। तो सड़क पर आने की क्या जरूरत ? सुना है अब पेट्रोल पंप बंद करने और ऐसे ही बड़े बड़े कारनामे करने की बहुत बड़ी वाली घोषणा भी कर दी है हमारे किसान भाईयों ने। इससे एमएसपी पर क्या कितना फर्क पडेगा ये तो किसान भाई ही बेहतर बता सकेंगे ?

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