आंदोलन का सही स्वरूप क्या है ?

आंदोलन एक संगठित सत्ता तंत्र या व्यवस्था द्वारा शोषण और अन्याय किए जाने के बोध से उसके खिलाफ पैदा हुआ संगठित सामूहिक संघर्ष होता है परन्तु इस किसान आंदोलन को देखेंगे न ये आंदोलन शोषण के खिलाफ है , न ये किसान के हिंत में है , और न ही ये आंदोलन संगठित है अर्थात आंदोलन का जो प्रथम स्वरूप होना चाहिए था उससे वो अपरिमित दूरी से दूर है ।

भारतीय इतिहास आंदोलनों से भरा पड़ा है । आंदोलन के संघर्ष से हमे हमारे वास्तविक हीरो और आदर्श पुरुष मिले है । वो आदर्श हमारे इसलिए बने क्योंकि उनका आंदोलन देश के लिए रहता था , शोषितों के लिए रहता था , वंचितों के लिए रहता था ना कि आज के आंदोलन के स्वरूप बिचौलियों के लिए रहता था , ना ही चोरो के लिए और देशविरोधी नेताओ के लिए रहता था ।

आप सब को संभवतः ज्ञात ना हो लौह पुरुष बल्लभ भाई पटेल को ‘ सरदार ‘ की उपाधि एक किसान आंदोलन से ही प्राप्त हुआ है उस आंदोलन का नाम ‘ बारडोली सत्याग्रह ‘ उस आंदोलन की अभूतपूर्व सफलता का आभास केवल इस बात से लग जाता है कि ये आंदोलन गुजरात के केवल एक प्रांत के लिए था परन्तु संगठित पूरा भारत था और आश्चर्य की बात ये है कि उस आंदोलन को साथ देने के लिए महात्मा गांधी भी खुलकर समर्थन दिया जो तुलना योग्य है ।

‘बारडोली सत्याग्रह ‘ आंदोलन में सरदार पटेल और महात्मा गांधी सहित सम्पूर्ण आंदोलनकारी भूखे रहकर अंग्रेजो के ताने व लाठियां खाई थी भूखे रहकर परन्तु इस तथाकथित किसान आंदोलन में दिन भर अनुचित व देशद्रोही मांग को लेकर सड़क जाम करना , खुले आम बिरियानी को बांटना और खाना दिखता है ये आंदोलन का रूप नहीं है । जिस सरदार पटेल के सत्याग्रह में लोग खुले आसमान में सोया करते थे और आज झूठे किसान आंदोलन में आंदोलनकारी फाइव स्टार टेंट मे बिस्तर बिछे बेडरूम प्रदान किया जा रहा है जिससे आप बिना नोक झोक से ज्ञात कर लेंगे की ये किसान आंदोलन नहीं है परन्तु ये तो देश को अधर मे डालने के लिए एक प्रयास है ।

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