जैसा कि मैंने अपने पिछले आलेख में कहा था कि , किसी भी लोकतांत्रिक देश की तरह भारत में भी सरकार , उनकी नीतियों ,कानून से असहमति के विरूद्ध आलोचना और विरोध प्रदर्शन का अधिकार हमेशा से रहा है और सच पूछा जाए /देखा जाए तो किसी भी देश से अधिक स्वतंत्रता यहां रही है।

कभी लोग अपनी बात सरकार तक पहुँचाने के लिए सांकेतिक हड़ताल , बाँह पर काली पट्टी ,मौन व्रत , जल व्रत , असहयोग , दीवारों सडकों पर नारे श्लोगन आदि लिख कर ,समाचार पत्रों में लेख आलेख लिख अपना विरोध और असहमति जताया बताया करते थे।

किन्तु आश्चर्यजनक रूप से पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक दलों के बहकावे और प्रभाव में आकर इन आंदोलनों का स्वरूप ही बदल गया है। कभी रेल की पटरियों को नुकसान पहुँचाने , रेल सेवाओं को बाधित किए जाने से शुरू की गई ये कहानी अब , शहर , गाँव , मकान ,दुकान , गाड़ियाँ आदि को फूंकने से लेकर अब पुलिस और फ़ौज पर पत्थर डंडे से हमला करे , प्रधानमन्त्री तक को कत्ल कर देने की धमकी और देश विरोधी विष वमन करने के घृणित अपराध में बदल गया है।

सवाल ये है कि , आखिर क्यों हर बार ये विपक्षी , सड़कों ,रेलों ,दफ्तरों और आम लोगों को अपना निशाना बना रहे हैं जबकि इनमें से किसी का भी इन मुद्दों से न तो कोई लेना देना है और न ही इनका कोई प्रभाव है।

कानून बनने से पहले प्रस्तावित मसौदे पर लिखित विरोध कितने दलों और बुद्धिजीवियों द्वारा किया गया ?? कानून बनते समय कितने पुरज़ोर ढंग से उस कानून का विरोध संसद और विधायिका में किया गया /जाता है ? कानून बन जाने के बाद कितने लोगों ने न्यायपालिका के पास जाकर तर्क और विधिसम्मत न्याय के लिए याचिकाएं दायर की हैं ?

नहीं वे ये सब नहीं करेंगे ? क्यूंकि उन्हें असल में मुद्दों से कोई सरोकार नहीं है , उन्हें अपनी बंद होती राजनीति की दुकानों की चिंता , मीडिया में इस बहाने दिखते /सुनते अपने चेहरों की ललक और मोदी भाजपा के प्रति मन में छिपी नफरत दिखाने /बताने /जताने के लिए सड़कों पर ये उपद्रव /हिंसा का तमाशा करना पड़ता है , वे आगे भी जब जब ऐसा मौक़ा मिलेगा करते रहेंगे , नहीं मिला तो मौक़ा बना कर करेंगे।

सोचिये ! यदि पचास वर्षों तक विपक्ष में बैठे लोगों और भाजपा ने कांग्रेस की तरह ही ऐसी ओछी और षड्यंत्रकारी राजनीती करने का प्रयास भी किया होता तो अब तक देश में कितनी बर्बादी हो चुकी होती। सर्वोच्च न्यायालय पहले भी ऐसे हिंसक प्रदर्शनों के विरुद्ध बहुत सख्त सन्देश दे चुका है और योगी की सरकार ने तो बाकयादा पोस्टर लगवा कर पहले इनका जुलुस निकाला फिर इन्हें काबू में करने के लिए खर्च हुए लठ्ठ का हिसाब किताब भी वसूल लिया था।

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