द प्रिंट में एक आलेख लिखते हुए , सुश्री जैनब सिकंदर ने अपना ये दुःख साझा किया | उन्होंने अपने इस लेख में बताया मुस्लिमों द्वारा पूरे विश्व में किये जा रहे हिंसक विरोध प्रदर्शन और दंगे फसादों को सही ठहराते हुए लिखे इस लेख में ये साबित करने का प्रयास कर रही हैं कि , मुस्लिम मज़हब भी ये जो जेहाद का रास्ता अख्तियार किये हुए हैं ये सब भी अन्य दूसरे धर्मों द्वारा सिखाए रास्ते जैसा ही है |
जैनब ने अपने लेख में सारा दोष ,फ्रांस और पूरी दुनिया पर मढ़ते हुए ये बताया है कि , किस तरह पिछले दो दशक से पूरा विश्व मुगलों के प्रति द्वेष और नफरत का नज़रिया रखता है | उन्हें बार बार हिंसा लड़ाई कत्लेआम के उकसाता है | फ़्रांस द्वारा कार्टून का प्रदर्शन दुनिया भर के मुसलामानों को उकसाने वाला कदम है |
फिर अगले ही क्षण अपनी इस दलील को खुद ही झुठलाते हुए पूछती हैं कि -अमेरिका ,ब्रिटेन ,फ़्रांस ,भारत में हमला करने वालों को क्या मुहम्मद साहब ने ऐसा कहा था करने को ?? फिर उनके ऊपर कार्टून क्यों ? जो दहशतगर्दी में लगे हैं उनकी वजह से पूरी दुनिया के मुसलमानों को निशाना क्यों ???
मगर पलट के कोई इनसे पूछे की ये जो समझाईश पूरी दुनिया को दी जा रही है क्या कभी कोशिश भी की है कि , खुद के मज़हब , और अगर वो नहीं सिखा समझा रहा तो फिर कौन हैं वो लोग जो ये सब करते चले जा रहे हैं ?? और आप जैसे लोगों की बात कोई सुनने समझने को तैयार क्यों नहीं ?
बकौल जैनब , दुनिया के अन्य बहुत से ग्रन्थ भी ठीक वही बात कहते हैं जो कुरआन में लिखी है इसलिए मुस्लिमों को एक तरफ करके उनके साथ दोयम व्यवहार अनुचित है |और अपने इस तर्क के लिए वे बाइबल तोराह और भगवदगीता का उदाहरण भी सामने रख रही हैं |
मगर जैनब अपने लेख में कहीं भी एक शब्द एक घटना का ज़िक्र नहीं कर सकीं जिससे ये साबित होता हो कि अन्य धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने वाले या दूसरे मज़हब सम्प्रदाय को मानने वाले कैसे और कब संगठित होकर यूँ पूरी दुनिया के दुश्मन बन गए थे /हैं |
हिन्दू होने के नाते ,भगवतगीता के लिए मैं सिर्फ इतना समझा सकता हूँ कि , मूढ – ये ग्रन्थ सनातन के धर्म और कर्म को संतुलित करके मनुष्य जीवन के जन्म की सार्थकता को पहचानना है | न कि त्रिशूल ,भाला ,तलवार लेकर पूरी दुनिया पर फतह करने को प्रेरित करने वाली कोई पुस्तक |
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