संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की आज पुण्यतिथि है। बाबा साहेब के नाम पर तमाम कम्युनिस्ट कांग्रेसी गफलत ही फैैलातेे रहे हैैं। आज भले ही उनके कथित अनुयायी उन्हें अंबेडकरवाद की संकुचित विचारधारा में कैद करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अंबेडकर सभी सीमाओं से परे हैं। उनका राष्ट्रवाद असंदिग्ध है। आज ‘जय भीम-जय मीम’ का नारा लगाने वाले शायद इस बात से वाकिफ नहीं हैं कि वह मजहबी कट्टरता और पाकिस्तान को जन्म देने वाले ‘द्विराष्ट्रवाद’ के विचार के कितने बड़े विरोधी थे।


भारत रत्न डा. भीमराव अम्बेडकर भारतीय संस्कृति के अनन्य भक्त, मूल चिन्तक, विचारक तथा लेखक थे। अस्पृश्यता एवं जन्माधारित विशेषाधिकारों पर चल रही समाज व्यवस्था के वे कट्टर विरोधी थे। उन्होंने हिन्दू समाज रचना के विविध पहलुओं का गंभीर चिन्तन करने के साथ भारत में मुस्लिम राजनीति का भी विस्तृत अध्ययन किया था।

उन्होंने इस्लाम अथवा मुस्लिम राजनीति के सन्दर्भ में अपने विचार “पाकिस्तान एंड द पार्टीशन आफ इंडिया” (1940, 1945 एवं 1946 का संस्करण) में विस्तार से प्रकट किए। डा. अम्बेडकर ने भारत पर मुसलमानों के क्रूर तथा रक्तरंजित आक्रमणों का गहराई से अध्ययन किया था। उन्होंने मोहम्मद बिन कासिम, महमूद गजनवी, मोहम्मद गोरी, चंगेज खां, बाबर, नादिरशाह तथा अहमद शाह अब्दाली के अत्याचारों का भी वर्णन किया।

डा. अम्बेडकर ने उन चाटुकारों तथा दिशाभ्रमित वामपंथी इतिहासकारों को फटकारते हुए लिखा कि “यह कहना गलत है कि ये सभी आक्रमणकारी केवल लूट या विजय के उद्देश्य से आए थे”।

डा.अम्बेडकर ने अनेक उदाहरण देते हुए बताया कि इनका उद्देश्य हिन्दुओं में मूर्ति पूजा तथा बहुदेववाद की भावना को नष्ट कर भारत में इस्लाम की स्थापना करना था। इस सन्दर्भ में उन्होंने कुतुबुद्दीन ऐबक, अलाउद्दीन खिलजी, फिरोज तुगलक, शाहजहां तथा औरंगजेब की विस्तार से चर्चा की है।

डा.अम्बेडकर ने साफ साफ बताया कि “इस्लाम विश्व को दो भागों में बांटता है, जिन्हें वे दारुल-इस्लाम तथा दारुल हरब मानते हैं। जिस देश में मुस्लिम शासक है वह दारुल इस्लाम की श्रेणी में आता है। लेकिन जिस किसी भी देश में जहां मुसलमान रहते हैं परन्तु उनका राज्य नहीं है, वह दारुल-हरब होगा। इस दृष्टि से उनके लिए भारत दारुल हरब है। इसी भांति वे मानवमात्र के भ्रातृत्व में विश्वास नहीं करते”।

डा. अम्बेडकर के शब्दों में- “इस्लाम का भ्रातृत्व सिद्धांत मानव जाति का भ्रातृत्व नहीं है। यह मुसलमानों तक सीमित भाईचारा है। समुदाय के बाहर वालों के लिए उनके पास शत्रुता व तिरस्कार के सिवाय कुछ भी नहीं है।”

उनके अनुसार “इस्लाम एक सच्चे मुसलमान को कभी भी भारत की अपनी मातृभूमि मानने की स्वीकृति नहीं देगा। मुसलमानों की भारत को दारुल इस्लाम बनाने के महत्ती आकांक्षा रही है”।

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