लोकतंत्र में ये तस्वीरें भयावह हैं. निःसंदेह अपमानजनक भी हैं. अर्नब के घर में घुसकर ख़ाकी वर्दी के गुंडों ने जमकर तांडव किया है, ये सब लोकतंत्र को शर्मसार कर रहा है.

अगर आप रिपब्लिक टीवी देख रहे हैं और डिस्टर्ब नहीं हो रहे हैं कि ये क्या हो रहा है महाराष्ट्र में तो विश्वास करिये आपको लोकतंत्र की कद्र नहीं है. जिस तरह से मुंबई पुलिस के गुंडों ने अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार किया, मारपीट की और उसके बेटे के साथ मारपीट की, ये दिल दहला देने वाला दृश्य है. कांग्रेस का पुराना इतिहास है प्रेस को दबाने का, खासकर उस प्रेस का जो उसके खिलाफ लिखता है भले ही वो सही हो. सबको आपातकाल के दिन याद होंगे.

गौरतलब बात ये है कि महज उद्धव और गांधी परिवार को खुश करने की ख़ातिर मुंबई पुलिस ने खुद को इतना गिराया कि अब गिरी हुई साख भी वापस आने से मना कर देगी। परन्तु, सबसे बड़े आश्चर्य की बात ये है कि सारे लिबरल गैंग चुप हैं और उन्हें लोकतंत्र खतरे में नहीं दिखता?

क्या ये लिबरल गैंग ऐसे ही चुप रहती अगर यही काम मोदी सरकार करती? नहीं, तब उन्हें हिटलरशाही लगने लगता.

प्रेस की स्वतंत्रता, सरकारी आतंक के साये में?

रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स की ओर से जारी विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 180 देशों में से 140वें स्थान पर है. 2018 में अपने काम की वजह से भारत में कम से कम छह पत्रकारों की मौत हुई थी. क्या अर्नब गोस्वामी को भी मार देगी उद्धव ठाकरे की सरकार?

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