महज 23 वर्ष की उम्र में देश की खातिर हंसते हंसते फांसी का फंदा चूमने वाले सरदार भगत सिंह को देश याद कर रहा है। पाकिस्तान के लायलपुर नामक जगह पर भगत सिंह का जन्म हुआ था और उन्हें लाहौर में फांसी दी गई थी। यह दोनों ही जगह आज पाकिस्तान में मौजूद हैं, भगत सिंह की उस समय दी गई फांसी हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों की आजादी में अपनी भूमिका रखती है।
हिंदुस्तान में कई सारे मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों के स्मारक आज तक मौजूद हैं जिनको पूरा देश आदर भाव से प्रणाम करता है। मगर पाकिस्तान में कुछ कट्टरपंथी ताकतें ऐसी हैं जिन्होंने भगत सिंह की मूर्ति लाहौर में नहीं लगने दी। कट्टर इस्लामिक कायदों को लागू करते हुए कट्टर मौलानाओं ने ये तर्क दिया कि यदि भगतसिंह की मूर्ति लगती है तो ये कुफ्र कहलायेगा यानी पाप।
दरअसल 2016 में पाकिस्तान की सिविल सोसायटी ने निर्णय लिया था कि जहां भगत सिंह को फांसी दी गई थी वह मूर्ति लगाई जाएगी मगर कट्टरपंथी ताकतों ने उन्हें धमकाया और जब बात यह चली कि वहां स्मारक बनाया जाएगा तब इन ताकतों ने कहा कि यहां कुछ नहीं बनना चाहिए क्योंकि इस्लाम में बुत परस्ती मना है ।
जाहिर है जिस भगत सिंह ने बिना मजहब जात पात देखे हुए सिर्फ मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए वहां इन कट्टरपंथी मौलानाओं को उन्हें मजहब के तराजू में नहीं तौलना चाहिए। मगर कट्टरता चीज़ ही कुछ ऐसी है कि अच्छे अच्छे पढ़े लिखों को भी अल जवाहरी बना देती है।
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