मिडिल किंगडम यानि चीन एक नए विषय में महारत प्राप्त करने में लगा हुआ है। नहीं, हम उनके कर्ज के मायाजाल बिछाने और दूसरे देशों के अफसरों और मंत्रियों को घूस खिलाने की क्षमता की नहीं, बल्कि इनके Sci-Fi स्क्रिप्ट्स रचने की क्षमता की बात कर रहे हैं। यदि आपको यकीन नहीं है तो फिर जरा इस बेजोड़ उदाहरण को पढ़िए।

बीजिंग के रेनमिन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के एसोसिएट डीन जिन केनरॉन्ग की माने तो 29 अगस्त को चीनी सेना ने लद्दाख में भारतीय सेना के कब्जे वाली चोटियां खाली कराने के लिए माइक्रोवेव हथियारों का इस्तेमाल किया था, इससे भारत के सैनिक पीछे हटने पर मजबूर हो गए थे। जी हाँ, आपने ठीक पढ़ा, माइक्रोवेव हथियारों के जरिए। अपने विद्यार्थियों से बात करते हुए प्रोफेसर कैनरोंग ने कहा, “15 मिनट के अन्दर-अन्दर जितने भी घुसपैठिए चोटियों पर कब्जा जमाए हुए थे, वे सब उलटी करने लगे। सब दुम दबाके भाग गए और इस तरह हमने अपनी जमीन वापिस ली!”

जो भी कहिये, प्रोफेसर साहब की कल्पना प्रशंसनीय है। लेकिन सच तो यह भी है कि अब चीन के पास अपनी जनता, विशेषकर अपने विद्यार्थियों को बरगलाने के लिए कोई झूठ नहीं बचा है, और इसीलिए वे इतनी लंबी-लंबी हांक रहे हैं।

लेकिन सवाल ये उठता है – ऐसी बात बताने की आवश्यकता एक प्रोफेसर को क्यों पड़ी? यदि चीन के पास इतने अत्याधुनिक शस्त्र हैं, और उन्होंने भारतीयों को दुम दबाकर भागने पर विवश किया, तो क्या ये बात बताने के लिए PLA का गुट या चीनी मीडिया सक्षम नहीं है? वैसे भी, ये प्रोफेसर है कौन, और उसे यह कैसे पता चला कि PLA कैसे और किस प्रकार के हथियार बॉर्डर पर इस्तेमाल करता है?

इसके बारे में कैनरोंग के पास एक बढ़िया उत्तर था। जनाब कहते हैं कि चीन ने बड़ी खूबसूरती से बिना गोली चलाए भारतीयों को हथियार डालने पर विवश कर दिया। भारतीयों ने इसलिए इसे सार्वजनिक नहीं किया क्योंकि इससे उनकी बेइज्जती होती? तो फिर चीन क्यों चुप रहा? प्रोफेसर कैनरोंग का कहना है कि हमने इस समस्या का खूबसूरती से निवारण किया।

इतनी लंबी-लंबी फेंकना तो कोई इस प्रोफेसर से सीखे। यदि ये घटना एक प्रतिशत भी सत्य होती, तो चीन गला फाड़-फाड़कर पूरे दुनिया में इसका बखान करता, और चीनी मीडिया इसके बारे में अनेकों लेख छापता वो अलग। प्रोफेसर कैनरोंग का यह अद्भुत झूठ तब पकड़ा गया जब उन्होंने बताया कि यह घटना 29 अगस्त की रात को हुई, ठीक उसी दिन जब भारत की स्पेशल फ़्रंटियर फोर्स ने पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी छोर पर भारतीय क्षेत्र में आक्रमण करने आई चीनी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।

अगर वास्तव में माइक्रोवेव शस्त्रों से हमला किया गया होता, तो LAC के उस छोर पर भारतीय सैनिकों का नामोनिशान न होता। लेकिन आज भी काला टॉप पर SFF के जवान तैनात है। अब PLA अपने करिश्माई हथियारों का उपयोग क्यों नहीं कर पा रही है?

सच तो यह है कि गलवान घाटी का मोर्चा हो, या फिर काला टॉप का, हर जगह चीन को भारत के हाथों मुंह की खानी पड़ी है। लेकिन वह यह भी नहीं चाहता कि उसकी छवि एक हारे हुए गुंडे की हो, इसीलिए अब वह अपने प्रोफेसरों द्वारा ऐसी ऊटपटाँग कहानियों को ईजाद कर अपनी छवि बचाना चाहता है।

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