राम लल्ला के वकील- के. परासरण
"मेरी मनोकामना हैं की, मेरी अंतिम सांस से पहले मैं राम मंदिर को बनते हुए देखु"...
"मेरी मनोकामना हैं की, मेरी अंतिम सांस से पहले मैं राम मंदिर को बनते हुए देखु"...
92 वर्ष के उम्र में के परासरण जी जिनका नाम मन मस्तिष्क में आते ही सिर स्वतः ही श्रद्धा से झुक जता है… ने 5 जजो की पीठ के सामने फ्रास्ट्रैक कोर्ट के पहले दिन अपना जूता उतार राम लल्ला के लिए दलील देना शुरू ही किया था कि ,जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि…. मिस्टर परासरण,ये कोर्ट इस मुकदमे की प्रतिदिन सुनवाई करेगी, और आपकी उम्र में रोज खड़े हो के बहस करना शायद कठोर हो, आप चाहे तो कुर्सी पे बैठ के दलील दे सकते हैं, इसपे कोर्ट को कोई आपत्ति नहीं होगी”…
परासरण, हाथ जोड़ जस्टिस गोगोई से कहा कि…”मय-लॉर्डशिप, मैं ये विशेष केस लड़ रहा हूँ, इतना विशेष कि मैंने अपना जूता तक उतार दिया हैं।जिस राम लल्ला के लिए बहस करने के लिए मैं, नंगे पैर तक हूँ …..उस राम लल्ला के लिए मैं कुर्शी पे कैसे बैठ बहस कर सकता हूँ।मुझ पर, कोर्ट के इस अनुकंपा के लिए धन्यवाद ,लेकिन कोर्ट चाहे इसे आम मुकदमा ही क्यों न समझे ,मेरे लिए ये मेरी आस्था का प्रश्न हैं, सनातन के विश्वास की प्रासंगिकता का प्रश्न हैं”……
भारत के बार कौंसिल में भीष्म पितामाह काहे जाने वाले पदम भूषण और पदम विभूषण जैसे विशेषणों से सुसज्जित के परासरण, ने अपनी वकालत जीवन की शुरुवात 1952 से की।सॉलिसिटर जनरल,अटॉर्नी जनरल, राज्य सभा सदस्य जैसे अन्य उच्च पदों पे रहते उन्होंने बहुत नाम और विशेषण कमाए।लेकिन जो पहचान मिली उनको….वो उन मुद्दों और मुकदमो के लिए वकील और दलील के रूप में मिली ,जिसे भारत के छद्म-सेक्युलरिज्म के बोझ ने हाशिया पे रख, इस देश की संस्कृति के साथ अपराध किया था।
UPA (कांग्रेस) के सरकार के समय जब राम-सेतु को तोड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट में ये हलफनामा दिया कि “राम” जैसा कोई हैं ही नहीं, राम तो काल्पनिक हैं….तब ये परासरण ने अपनी उतारी काली कोर्ट को पुनः पहन कोर्ट में सरकार के सनातन-संस्कृति विरोधी तर्को का इम्तिहान ले लिया। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के राम सेतु पे तर्क मनाने से इनकार कर, हिन्दू समाज के पक्ष में अपना फैसला परासरण के बस्ते में डाल दिया।
चाहे बात हो,राम मंदिर की,राम सेतु की या फिर सबरीमाला की……जब जब हिन्दू समाज , सरकार और सेक्युलरिज्म के सडयंत्र से बेचैन हो सड़क और संसद तक दौड़ता रहा, तब तब माथे पे टिका लगये परासरण पूरे जज्बात से समाज और संस्कृति के लिए तर्को की कानूनी दीवार बन खड़े रहे।
मद्रास के चीफ जस्टिस ने उन्हें, उनके इस ऊर्जा और सामर्थ्य के लिए उन्हें बार कौंसिल ऑफ इंडिया के पिताहमा की संज्ञा दी।
जस्टिस रंजन गोगोई के सामने बहस करते हुए एक सवाल के जवाब में ये कहा कि,….“मेरी मनोकामना हैं की, मेरी अंतिम सांस से पहले मैं राम मंदिर को बनते हुए देखु”…
आज राम मंदिर का शिलान्यास हो रहा हैं, राम लल्ला विराजमान होने जा रहे हैं…..उन राम लल्ला के लिए 92 वर्ष की उम्र में नंगे पैर खड़ा हो के बहस करने वाला राम भक्त, अपनी अंतिम सांस से पहले राम मंदिर बनते देख रहा हैं…
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