प्राचीन भारत का एक सम्पन्न राज्य और गणतंत्र का जनक बिहार एक बार फिर अपने अगले 5 साल के लिए नेता चुन रहा है। एक ऐसी सरकार जो बिहार का खोया हुआ सम्मान और विश्वसनीयता लौटा सके।

आजादी के बाद बिहार का इतिहास देखें तो बहुत ज्यादा उम्मीद किसी सरकार ने दिखाई नहीं।श्री कृष्ण सिंह के शासनकाल में बिहार ने जो तरक्की की वो बाकी की सरकारों में कहीं दब सी गयी।।
1976-68 में बिहार में जो राजनीतिक अस्थिरता पैदा हुई उसने बिहार के भविष्य को एकदम से गर्त में लेकर खड़ा कर दिया। 1990 तक बिहार में किसी सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया और जाहिर सी बार है कि इन अस्थिर सरकारों से विकास की होदी सी भी उम्मीद करना भी बेमानी होगी।
1990 में लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद लगा की शायद बिहार भी बाकी प्रदेशों की तरह विकाश के रास्ते पर आगे बढ़ेगा लेकिन लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के उन 15 सालों की सरकार ने बिहार की ओसी दुर्गति की जिससे यह सूबा आज तक उबर नहीं पाया।

2005 में भाजपा गठबंधन की सरकार बनने के बाद बिहार ने रोशनी की एक हल्की की किरण देखी। नीतीश सरकार को बिहार में शून्य से शुरुआत करनी पड़ी। सड़के बनाना , शहर से लेकर गांव और कस्बों तक बिजली पहुँचाना, कानून व्यवस्था को पटरी पे लाना, शिक्षा, स्वास्थ्य ये सारी बुनियादी जरूरतें जो बिहार को बहुत पहले मिल जानी चाहिए थे, वो सब NDA सरकार को करनी पड़ी।

अब 2020 में जब बिहार एक बार फिर से अपना भविष्य तय करने जा रहा है तो कुछ बातें ध्यान में रखनी जरूरी हैं।
बिहार में NDA का जितना कितना जरूरी है:-
बिहार ने विकास के रास्ते पे जो थोड़ा सा कदम आगे बढ़ाया है वो NDA की सरकार में हुआ है। बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य,आदि के काम में जो गति पकड़ी है वो भाजपा गठबंधन  सरकार की कामयाबी है। स्कूल जाती बच्चियां, रोशन होती गांव की गालियां, सशक्त महिलाएं ये ऐसी तश्वीर हैं जो बिहार की छवि बदल रही है। बिहार अपनी खोयी हुई अस्मिता को फिर से पाने की कोशिश कर रहा है। 
दूसरी तरफ NDA के खिलाफ लड़ रहे गठबंधन को देखें तो  उनके नेता वही लालू प्रसाद यादव हैं जिन्होंने सत्ता के शीर्ष पर रहते हुए कई घोटालों को अंजाम दिया था और बिहार को पूरे देश में एक मजाक बना कर रख दिया। शाम होते होते लोगों का अपने अपने घरों में दुबक जाना, गाँव ,शहर की गलियां सुनी पड़ जाना उनके जंगलराज की जीती जागती कहानी बयाँ करते थे।आज भी जब लोग उस समय को याद करते हैं तो रूह काँप उठती है। बिहार की जनता ने उन 15 सालों को भुलाकर 2015 में उनके गठबंधन को एक मौका दिया था लेकिन विकास तो दूर वो सरकार घोटालों के विवादों में ही घिरी रह गयी। इस गठबंधन में वामपंथी और कांग्रेस जैसी पार्टियां भी हैं जिनसे बिहार ने काफी पहले ही पीछा छुड़ा लिया था और दुबारा उस अंधकार में नहीं जाना चाहती।

ऐसा नहीं है की NDA सरकार ने बिहार को वो सब कुछ दिया है जिसकी अपेक्षा प्रदेश ने की थी लेकिन उन्होंने जो उम्मीद जगाई है वो अंधेरी गुफा में रोशनी की हल्की सी किरण जैसी है और उम्मीद है की आगे दिन का उजाला हो।।

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