आज हम इतिहास की किताबों में दबा एक ऐसा वाकया लेकर आये हैं. जो शायद कम ही लोगों का पता होगा.

दरअसल हम उस चुनाव की बात कर रहे हैं. जो अगर न होता तो शायद आज गुजरात का एक मह्त्वपूर्ण हिस्सा हमारे पास नहीं पाकिस्तान के पास होता.

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ये बात उस समय की है जब साल 1948 में भारत के लोगों ने पहली बार वोट डालकर जूनागढ़ रियासत को पाकिस्तान की बजाय भारत का हिस्सा चुना था.

ऐसा कहा जाता है कि जूनागढ़ के नवाब महाबत खान नहीं चाहते थे कि जूनागढ़ भारत का हिस्सा बने.

जबकि बंटवारे के कुछ समय बाद ही सरदार पटेल ने रियासतों को भारत में विलय करवाने का बीड़ा अपने हाथ में उठा रखा था.

ऐसी भी बातें हैं कि मोहम्मद अली जिन्ना ने जूनागढ़ के नवाब महाबत खान को जूनागढ़ को पाकिस्तान में शामिल होने का प्रस्ताव दिया था.

महाबत खान की ना नुकुर की वजह से इंडियन आर्मी ने 9 नवंबर 1947 में जूनागढ़ में घुसकर कब्जा कर लिया था.

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इसके कुछ समय बाद ही जूनागढ़ में 20 फरवरी 1948 को वोटिंग हुयी. आपको बता दें कि ये चुनाव का आजाद भारत का पहला चुनाव था. जिसमें इस बात को लेकर वोटिंग की गयी थी कि जूनागढ़ भारत और पाकिस्तान में किसका हिस्सा बनेगा.

महाबत खान की मर्जी के विरुद्ध जूनागढ़ रियासत के लगभग 1 लाख से ज्यादा लोगों ने भारत में रहना पसंद किया. और उन्होंने भारत का हिस्सा बने रहने के लिये वोटिंग की.

ऐसा भी कहा जाता है कि जब जूनागढ़ के नवाब को इस बात का अंदाजा हो गया कि नतीजे उनके खिलाफ आ रहे हैं. तो वो भारत को छोड़कर पाकिस्तान चले गये.

24 फरवरी को वोटिंग का रिजल्ट आया और जूनागढ़ रियासत भारत का हिस्सा बन गया.

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