बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में 2016 से शराबबंदी लागू की है , सूबे में पूर्ण शराबबंदी के बावजूद राज्य में शराब की खपत हर साल बढ़ ही रही है । बिहार सरकार हर मौके पर शराबबंदी के नाम पर अपनी पीठ थपथपाते दिखती है, लेकिन राज्य में ऐसे कई शराब माफिया हैं जो प्रशासन के नाक के नीचे शराब की काला बाजारी कर रहे हैं। बिहार में शराबबंदी को राजनीतिक रूप से खूब प्रचारित और प्रसारित किया गया, लेकिन आज हालात यह है कि जिस बिहार में शराबबंदी का कानून लागू है, वहां महाराष्ट्र जैसे राज्य से ज्यादा शराब पी जा रही है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई बार कुछ ऐसा एक्सपेरीमेंट कर जाते हैं जो सफलता से ज्यादा विवादों में आ जाता है, लगता है कुछ ऐसी ही हाल शराबबंदी के साथ हुआ है. दरअसल नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी कानून को सफल बनाने की जिम्मेदारी अब बिहार के टीचरों के कंधों पर दे दी है यानि बिहार के शिक्षक अब अपने-अपने इलाकों में जासूसी करते नजर आएंगे। नीतीश सरकार ने अपने एक आदेश में कहा है कि शिक्षक शराब पीने और बेचने वाले की सूचना सरकार को देंगे। बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने एक सर्कुलर के जरिये सरकारी स्कूल के शिक्षकों को शराबबंदी लागू कराने का भी टास्क दे डाला है. लेकिन सवाल ये कि जब सूबे का आबकारी विभाग और बिहार पुलिस शराबबंदी लागू कराने में बहुत सफल नहीं रही है तो फिर बेचारे स्कूली शिक्षकों की क्या बिसात .

हां सरकार ने एक एहसान शिक्षकों पर जरुर किया है वो ये कि सरकार की तरफ से जारी टोल फ्री नंबर पर सूचना देने वालों का नाम गोपनीय रखा जायेगा. उसकी पहचान बाहर नहीं आएगी. पता नहीं कि आखिर नीतीश के बाबूओं को शराबबंदी लागू कराने का आइडिया मिला कहां से वजह जो भी लेकिन सरकार के नये फरमान ने शराबबंदी को फिर सवालों के घेरे में ला दिया है.

बिहार में शराबबंदी के बावजूद खुलेआम घर पर शराब की होम डिलीवरी हो रही है, माफिया रिश्वत देकर जहरीली शराब की फैक्ट्री चला रहे हैं , वैसे में क्या शराबियों के लिए अपने पीछे लगे जासूसों का पता लगाना कोई मुश्किल काम होगा?

सवाल ये कि जहां पहले से शिक्षकों के जिम्मे कई काम हैं वैसे में वे पढ़ाई के बाद पहरेदारी कैसे करेंगें. क्योंकि एक तो बच्चों को पढ़ाने का काम और फिर बिहार के सरकारी स्कूलों में बच्चों को दी जाने वाली मिड डे मील की जिम्मेदारी भी तो इन्हें ही निभानी पड़ती है . वैसे भी बिहार के सरकारी स्कूलों की हालत क्या है ये किसी से छिपी नहीं है, और रही-सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी है , इसकी वजह से पहले ही बच्चों की शिक्षा का बुरा हाल है लेकिन अब नीतीश कुमार ने शिक्षकों के कंधे पर जो नई जिम्मेदारी का काम सौंपा है उससे तो सीधे-सीधे असर बच्चों के भविष्य पर पड़ेगा. क्योंकि वैसे भी ये सब जानते हैं कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक कितनी देर तक बच्चों को पढ़ाते हैं , इसलिए हम तो बच्चों के माता-पिता से यही कहेंगे कि कुछ तो सोचिए, कुछ कीजिए सुशासन बाबू से इस फैसले को वापस लेने की अपील करें ताकि बच्चों की पढ़ाई बाधित ना हो.

क्योंकि नीतीश कुमार के कुछ फैसलों की वजह से बिहार गर्त में जाता दिख रहा है , वहां से इसे निकालने में कई दशक लग जाएंगे. क्योंकि जितनी तेजी से आपने शराबबंदी को लेकर वाहवाही बटोरी है उतनी ही तेजी से आपके इस फैसले पर सवाल भी उठने लगे हैं

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