पिछले एक वर्ष में जब जब राजधानी दिल्ली में लॉक डाउन लगा है तब तब आम लोगों को सड़कों पर दिल्ली पुलिस के साथ ही उनके चैक पोस्ट /नाके के थोड़ा सा आगे पीछे खाकी वर्दी पहने कुछ लोगों का झुंड /समूह अक्सर दिखाई दे जाता है। ये लोग जो दिल्ली सिविल डिफेन्स के लोग हैं ,जिनके और दिल्ली पुलिस के बीच का फर्क करना मुश्किल हो जाता है , इनकी खाकी वर्दी होने के कारण -न सिर्फ वर्दी बल्कि कंधे पर DCD की पट्टिका आदि होने के कारण -गरीब , मजदूर ,श्रमिक , दिहाड़ी मजदूर , रिक्शा और रेहड़ी वाले इनमें अंतर नहीं कर पाते हैं। रही सही कसर इन सिविल डिफेन्स वालों की अनावश्यक रोक टोक जांच और मनमाने तरीके से चालान करने की जल्दबाजी से पूरी हो जाती है।
पिछले दिनों ऐसे उनके मामले और उनके फोटो वीडियोज़ , समाचार तथा सोशल नेटवर्क पर देखे दिखाए गए जहाँ , आम लोग जो पहले ही बहुत से कारणों से विवश होकर इधर उधर आ जा रहे थे इन सिविल डिफेंस वालों की ज्यादती के कारण उनसे उलझते ,मारपीट , झगडे करते दिखाई दिए। इससे देखने वालो को पहली नज़र में दिल्ली पुलिस नागरिकों को परेशान करती दिखाई देने वाली छवि जैसी दिखाई दी जो दिल्ली पुलिस के अब सर दर्द का सबब बन गया है।
इन्हीं सब से तंग आकर अब दिल्ली पुलिस ने मन बना लिया है कि सिविल डिफेन्स और दिल्ली पुलिस की वर्दी , नेम प्लेट , कंधे पर लगी पट्टिका आदि में परिवर्तन करने के लिए वो ,गृह मंत्रालय के गृह सचिव को पत्र लिखकर इसे बदलने के लिए कहेंगे। इस बात की जानकारी स्वयं दिल्ली पुलिस आयुक्त श्री एस एन श्रीवास्तव ने मीडिया को दी।
इतना ही नहीं दिल्ली पुलिस ने अपने परिपत्र और निर्देशों में भी सभी उपायुक्तों को ये सुनिश्चित करने को कहा है कि सिविल डिफेन्स वालों को दिल्ली पुलिस के जाँच नाकों /पिकेट आदि का प्रयोग करने की अनुमति न दी जाए। और यदि इनके विरुद्ध कोई शिकायत आती है तो उसे तुरंत संज्ञान में लाया जाए।
ऐसा इसलिए भी जरुरी हो जाता है क्यूंकि पिछले एक साल में सिविल डिफेंस के लोगों द्वारा अनेकों बार अपनी वर्दी का दिल्ली पुलिस जैसा होने का गलत फ़ायदा उठा कर कभी लोगों का चालान कर देने तो कभी दिल्ली पुलिस बन कर लोगों को अनावश्यक रूप से परेशान करने के कई मामले सामने आए और जिनमें दोषी पाकर इन्हें गिरफ्तार भी किया गया।
अब जरा बात सिविल डिफेंस की इस तदर्थ व्यवस्था की भी हो जाए। इनकी नियुक्ति /चयन से लेकर वेतन और भत्ते तक की सारी व्यवस्था तदर्थ और दैनिक आधार पर होती है यानि न्यूनतम दैनिक वेतन राशि देकर इन्हें कार्य सौंपा जाता है। इसके लिए मात्र सात दिन का औपचारिक प्रशिक्षण दिया जाता है। विशेष परिस्थितियों के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण /कोर्स आदि का कोई ज़िक्र नहीं है। हालाँकि दो तरह के प्रशिक्षण व्यवस्था का उल्लेख साइट पर जरूर मिलता है।
इनकी साइट जो आखरी बार वर्ष 2015 में अपडेट की गई है यानि आज से नौ वर्ष पहले और इसके बाद इसमें कोई नया पुराना आदेश निर्देश है ही नहीं है। विशेषकर कोरोना काल में लगे और लगाए गए लॉक डाउन और इन विशेष परिस्थतियों में इन कर्मियों के लिए किसी तरह के दिशा निर्देश कहीं भी नहीं दिखाई देते। और न ही इनके विरूद्ध शिकायत के लिए कोई भी विकल्प मौजूद है।
इनके गठन और नियंत्रक अधिकारों से सम्बंधित परिपत्र भी आज से 9 वर्ष पहले यानि वर्ष 2015 का ही और विशेष बात यह है कि इनमें कहीं भी इनकी वर्दी , उसका रंग , नाम पट्टिका व कंधे पर संस्थान की पट्टिका के स्वरूप आकर का कोई ज़िक्र नहीं दिखाई देता।
अब सबसे गंभीर बात , जिस राजधानी में कम से कम दर्जन भर से अधिक संवेदनशील स्थान हों ,कानून और व्यवस्था के लिए पूरे राजधानी को इतने ही न्यायिक और पुलिस जिलों में विभाजित करने की जरूरत हो , जो राजधानी हमेशा ही आतंकियों के निशाने पर रहती हो वहाँ पुलिस की वर्दी से मिलती जुलती और तमाम कमियों के साथ वाले ऐसे किसी भी गैर सैन्य व्यवस्था को इतनी जोर शोर से लागू करने को तत्पर राज्य सरकार कहीं -दिल्ली पुलिस को अपने नियंत्रण में लाने करने के अपने मंसूबे को पूरा करने के लिए तो नहीं इस्तेमाल कर रही है। यदि वास्तव में ही ये व्यवस्था , लोगों के सहायतार्थ और कल्याण के उद्देश्य से कार्य करने के लिए बनाई गई है तो फिर क्या कारण है कि 9 वर्ष तक एक नया दिशा निर्देश , नए नियम कानून , पारदर्शी चयन व्यवस्था आदि के लिए कुछ भी सोचा किया गया है नहीं।
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार की समानांतर चिकित्सा व्यवस्था के रूप में मोहल्ला क्लिनिक का सच इस कोरोना काल में सबके सामने निकल कर आ गया है। इसलिए ये जरूरी हो जाता है कि यदि उद्देश्य , सहायता और कल्याणकारी ही है तो फिर उसके लिए खाकी वर्दी की ही जरूरत क्यों है ??
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