सत्ताच्युत होकर पिछले छः वर्षों में ही देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी अपने पत्तन के कगार पर पहुंच गई है . किसी क्षेत्रीय राजनैतिक दल से भी कम प्रभाव और पैठ रखने वाली कांग्रेस की स्थिति इन दिनों इतनी दयनीय हो चुकी है कि राज्य से लेकर ,स्थानीय निगम और उससे भी छोटे चुनावों तक में उन्हें कोई सत्ता का दावेदार मानने को तैयार नहीं . सत्ता में साझेदार तो दूर सभी राजनैतिक दल कांग्रेस को पनौती समझ कर “हाथ ” तक मिलाने को तैयार नहीं है .

दूसरे दलों की बात तो फिर भी समझ आती है मगर यहां तो पार्टी के वरिष्ठ राजनेता तक समूह बनाकर बगावत पर उतर चुके हैं . अब जब पार्टी की ऐसी दयनीय स्थिति हो तो फिर कहाँ याद रहता है कांग्रेस वर्षों तक जिस धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़ कर अपनी राजनीति करती रही है उसे तिलांजलि देने का समय आ गया है .

असम में आगामी विधानसभा के लिए कांग्रेस ने मुगल कट्टरता का पर्याय समझे जाने वाले अजमल की राजनैतिक पार्टी AIUDF के साथ चुनावी गठबंधन कर लिया है . यहाँ अजमल के बारे में बताना जरूरी है कि पिछले कुछ समय में अजमल पर विदेशों में उसके आतंकी आकाओं से काला धन मंगवाकर उस पैसे का दुरुपयोग मज़हबी कट्टरता को बढ़ाने वाले मदरसों पर खर्च करता रहा था . हाल ही में अजमल के विरुद्ध शिकायत के बाद सुरक्षा और जांच एजेंसियों ने दर्जनों आपराधिक मुकदमे दर्ज कर कार्यवाही शुरू कर दी है .

अजमल ने काले धन की बदौलत हज़ारों करोड़ की संपत्ति अर्जित करके असम में खुलेआम मुस्लिमपरस्ती की राजनीति करता रहा है . यह सब कुछ जानते हुए असम विधानसभा चुनावों में न सिर्फ अफ़ज़ल के साथ गठबंधन किया है बल्कि सवाल उठने पर उसे सही साबित करने का भी प्रयास कर रही है . आज कांग्रेस अपने दोगले चरित्र के कारण ही खत्म होने के कगार पर आ पहुंची है .

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