अहिंसा नाम सुनते ही हमे कही बाते याद आती है। सबसे पहिले याद आता है ‘अहिंसा परमो धर्म’ यानी अहिंसा मनुष्य के जीवन का परम धर्म है। हमारे हिन्दु धर्म ग्रंथो ने हमेशा से अहिंसा का पाठ पडाया है। अहिंसा के मार्ग से सुलजाए गये हर एक मसले हिंसा के सुलजाए गये मसले से कही बेहतर होते है। क्युकी उसमे जीवितहानी नही होती,रक्तहानी नही होती। अहिंसा परमो धर्म ईस वाक्य को अपने जिवन में लागु करके क्या हम जिवन बिता सकते है? बिता सकते है। लेकिन वो जिवन स्वतंत्रता,स्वाभीमान से भरा हो ये नही कह सकते। शायद वो गुलामी से भरा हुवा जिवन हो। जैसे हमने मुगलो और अंग्रेजो के शासन में बिताया था। मै नही केहती की हिंसा उचित है। लेकिन धर्म के रक्षा हेतु की गयी हिंसा उचीत है। यही धर्म है,यही सिद्धांत है,यही बात हिन्दु धर्म सिखाता है।
हमने कही साल पहिले गुलामी से भरा जिवन व्यतीत किया। ईस पश्चात्त हमने वही आत्मसात किया जो वो कराना चाहती है। हमपर वामपंथी संस्कृती का असर कुछ ईस कदर हुवा की,हमने अपना इतिहास टटोलने की भी कोशीश नही की। महाभारत से लिए गये अहिंसा परमो धर्म श्लोक को हमतक सिर्फ आधा ही पहुचाया गया। महात्मा गांधी ने भी अहिंसा परमो धर्म ही काहा,और राजनैतिक दलो ने भी हमे यही सिखाया। किसीने हमे महाभारत के ईस श्लोक से परिचीत ही नही किया। पुरा श्लोक था “अहिंसा परमो धर्म। धर्म हिंसा तथैव च.।।”
यानी-अहिंसा मनुष्य के जीवन का परम धर्म है लेकिन धर्म के रक्षा के लिए की गयी हिंसा सर्वश्रेष्ठ है।
जब जब अपने धर्म पर राष्ट्र पर संकट आए तो हत्यार उठाना ही उचित है। इतिहास भी उसी को याद करता है जिसने अपने अस्तित्व की लढाई लढी। इतिहास के पन्नौ को खोलकर देखिए,ऐसे बहुत से महान व्यक्तीमत्व मिल जायेंगे जो इस श्लोक से भली भाती परिचीत थे। छत्रपती शिवाजी महाराज,महाराणा प्रताप जैसे महान सपुतो ने अपने राष्ट्र की मुगलो से रक्षा हेतु तब हत्यार उठाये इसलिए आज हम जिन्दा है।
मैने पहले ही काहा था की हम अंधकार में है। हमने सिर्फ वामपंथी इतिहासकारो द्वारा लिखा गया इतिहास ही पढा और उसी को ही सच मान बैठे। इस इतिहासकारो ने और तत्कालीन राजनैतिक दलो ने मिलकर हमारी हिन्दु सभ्यता को कलंकित करने की कोशीश की। हमेशा हमे घुघटप्रथा,सतीप्रथा से ही परिचीत किया लेकिन किसी इतिहासकारोने गुरखा,निकाहहलाला के बारे में नही लिखा। जब घुघगप्रथा थी तब गुरखा भी था,जब सतीप्रथा थी तब निकाहहलाला भी था। लेकिन इतिहासकारो ने हमेशा हिन्दुवो को ही निशाना बनाया। सच तो ये था की,जब मुगल देश आए तो उनके अत्याचारो से बचने के लिए हिन्दु महिलाए अपने पती के साथ ही प्राण त्याग ना ही उचित समजती थी। मुगलो के आतंक से बचने के लिए ही घुघगप्रछा,सतीप्रथा ने जन्म लिया। इन्ही इतिहासकारो ने अकबर दि ग्रेट लिखा लेकिन किसीने उन कश्मीरी हिन्दुवो के दुःख,दर्द के बारे में नही लिखा जो उन्होने 1989 में महसुस किया था। इन्ही इतिहासकारो ने टिपु सुलतान को महान बताया और हिन्दुवो के दैवत श्री राम को काल्पनीक। इन्ही इतिहासकारो के लिए ताजमहल प्रेम की निशानी हुवा करता था और रामसेतु नैसर्गिक घटना। भारत तो आझाद हुवा लेकिन हिन्दुवो पर आज भी इन वामपंथी इतिहासकारो का कब्जा है। हमे सुला दिया गया, हम सोते रहे। हम तब भी सोते रहे जब इंदिरा गांधी ने हमारे निहत्ते साधु संतो पर गोलिया चलायी थी,मार दिया था उन्हे। हम अपने धर्म के प्रती निष्ठावान और महाभारत के बनाए रास्ते पर चलते तो,कभी अपने ही देश में कश्मीरी हिन्दु शरणार्थी बनकर नही रहते,किसी की हिम्मत नही होती कि हमारे देवी देवतावो को गाली दे,कोई हमारे धर्म को उखाड फेकने की बात नही करता,किसी की ईतनी हिम्मत नही होती की कह सके हिन्दुवो के घर में जाकर नमाज पढेंगे,कोही जेहादी हमारे बेटियो को लव जिहाद का शिकार नही बना पाता। आए दिन कुछ ना कुछ होता है। सुश्मिता सिन्हा नामक सो कॉल्ड पत्रकार हरितालिका के पवित्र पुस्तिका को टॉयलेट पेपर के तौर पर इस्तेमाल करने को केहती है,गुरखा पेहनी औरते भगवान गणेश जी की मुर्तिया फोडती है,कोही सोशल मिडीया पर हिन्दु देवी देवतावो के गंदे फोटोज डालता है। सो कॉल्ड कॉमेडियन हमारे भगवान को मजाक का मुद्दा बना देते है। देश में 80% आबादी सनातन धर्म की है। हर दिन उनकी आस्था का मजाक उडाया जाता है। लेकिन कभी दंगा नही होता,कभी किसी का गला नही काटा जाता। शाहीनबाग में हिन्दूत्व की कब्र खोलने के नारेलगते है,आए दिन किसी न किसी हिन्दु साधु संतो को मारा जाता है,हजारो हिन्दु लडकिया लव जिहाद का शिकार हो रही है,मंदिरो में जाकर नमाज पडी जा रही है। केवल और केवल हिन्दु निशाने पर है। ईन सब के लिए 70 से चल राहा प्रशासन भी जिमेदार राहा है। जिसने सेक्युलर नाम का विक्टिम कार्ड खेलकर,गंगा जमुनी तहजीब बताकर हिन्दुवो को निशाना बनाया। ये प्रशासन ही था जिसने JNU,अलिगढ,जामिया जैसी युनिवर्सिटी को प्रोत्साहित किया। और आज उसी युनिवर्सिटी में भारत तेर टुकडे होगें इंशाअल्लाह! इंशाअल्लाह!,आसाम को भारत से अलग कर देंगे जैसे नारे लगते है,देश तोडने वाली ताकते यही पनप रही है। ये प्रशासन की कॉग्रेस सरकार ही थी जिसने गोधरा कांड को सेक्युलर और गुजरात दंगो को सांप्रदायिक बताया था। यही वो कॉग्रेस सरकार थी जिसके लिए एक ही सोसायटी के हिन्दू और मुस्लिम की हत्या हो जाने पर हिन्दु की हत्या सेक्युलर और मुस्लिम की हत्या सांप्रदायिक हो जाती थी। ये वही काॅग्रेस सरकार थी जो आंतकवादीयो के मौत पर आसु बहाती है,ये वही सरकार है जो दिवाली पर शुभकामनाए देना तो भुल जाते है,लेकिन ईफ्तार पार्टी हर साल मनाते है। हम सुवर कहे तो सांप्रदायिक हो जाता है और वो रस्तो पर गौ माता वो को काटे तो वो सेक्युलर बन जाता है। ये सबसे अनोखा सेक्युलॅरीझ है जो हमारे देश में पनप रहा है।
आज हमारी पीढी जागरुक हो रही है। ईस में सोशल मीडियाने बडी भूमिका निभायी। लेकिन सोशल मीडिया ने केवल जागरुक किया वो हिम्मत नही दे पाया जो चाहिए। हम सबकुछ जानते है कैसे हमारे धर्म को ठेस पहुचाने की कोशीश की जा रही है। कैसे हिन्दू धर्म के अस्तित्व को उखाड फेकने की योजना बनायी जा रही है। लेकिन हम कुछ नही कर पाते। कही तो कमजोर है हम। अपने धर्म के रक्षा हेतु लोक बाहर तो निकालना चाहते है,लेकिन वो डरते है। उन्हे डर हे,उनका साथ कोही नही देगा उन्हे पता है कोही हिन्दु साथ नही आएगा। उसे अपनी लढाई खुद लढनी होगी। किसी जगाह पर हिन्दु पर अत्याचार होता है। हम सोशल मीडिया पर ट्रेड चलाकर अपनी जिम्मेदारी से भाग जाते है। हमे आज भी लगता है की पडोस के घर से भगतसिंग निकलेंगे,महाराणा प्रताप निकलेंगे,सावरकर निकलेंगे। लेकिन कोही खुद भगतसिंग नही बनना चाहता,वो खुदके अंदर के महाराणा को नही देखना चाहता।
हमे जागना होगा,हमारी लढाई हमे खुद लढनी होगी। खुदके अस्तित्व के लिए संघर्ष करना होगा। याद रखना कि हमारे देवी देवतावो के एक हात आशीर्वाद के लिए उठे है तो, दुसरे हाथ शस्त्र के लिए भी। महादेव को भोले काहा जाता है तो,महाकाल भी उनीका नाम है। आदिशक्ती को माँ काहा जाता है,तो महाकाली भी उनीका अवतार है। शस्त्र उठाने से पहिले शांतता का प्रस्ताव देना हमारा धर्म सिखाता है। जब लंका जाने के लिए भगवान श्री राम को समंदर के मार्ग कि जरूरत थी,तो उन्होने समंदर को प्रसन्न करने के लिए कही दिनो तक तपस्या की ईसके बाद भी समंदर नही माना तो श्री राम ने धनुष उठाना ही उचीत समजा। 1885 में जब कॉग्रेस कि स्थापना हुई तो वो भी अंग्रेजो से शांती से निपटना चाहती थी। समय निकलता गया। लोकमान्य समज गये कि अंग्रेज अहिंसा की भाषा समजने वाले नही है। स्वराज्य हेतु हिंसा जरूरी है और ईसिलिए 2006 के सुरत अधिवेशन में कॉग्रेस के उदारवादी और जहालवादी नेता अलग हो गये। बाद में उदारवादी भी समज गये की हिंसा गलत नही है। समय के साथ बदलना पर्यावरण का नियम है। आज का समय कोही एक मारे तो दुसरा गाल आगे करने का नही है। बल्की कोही मारने कि कोशीश करे तो उससे पहिले ही हमे वार करना है। जंगल में वही अपना अस्तित्व टिका पाता है,जो संघर्ष करता है। वरना मरना तो एक दिन हरिण को भी है, और शेर को भी है।
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