‘पिंजरा तोड़’ अभियान चलाने वाली वामपंथी पार्टी CPI (M) का चाल-चरित्र-चेहरा बेनकाब करने वाली एक खबर सामने आई है। केरल के तिरुवनंतपुरम में 41 वर्षीय आशा नामक महिला ने सीपीआई (एम) दफ्तर में फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। महिला द्वारा लिखे गए सुसाइड नोट में उसने दो स्थानीय माकपा कार्यकर्ताओं पर मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया है।


पुलिस के मुताबिक महिला का शव उदियाकुलनगारा के एक कमरे में मिला। महिला के शव के पास ही एक सुसाइड नोट पड़ा हुआ था जिसमें उसने दो माकपा कार्यकर्ताओं पर मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया था।

अब बड़ा सवाल उठता है कि ‘पिंजरा तोड़’ जैसे देश विरोधी-दंगा प्रायोजित अभियान चलाने वाली वामपंथी पार्टियां इस महिला को न्याय दिलाने के लिए कितने कैंडल मार्च और सेमिनार आयोजित करती हैं। क्या इस विचारधारा को विदेशी पैसे से सिर्फ भारतीय पिताओं-पतियों और पुत्रों के खिलाफ ही आंदोलन भड़काने के पैसे मिलते हैं? कहाँ हैं वो सारे एक्टिविस्ट? कहाँ हैं सारे कवि-शायर? कहाँ हैं NgO? कहाँ हैं पत्तलकार? इनमें से कोई नहीं बोलेगा क्योंकि चालाक चुप्पी की ओट में पसरे सन्नाटे की तह में ये लोग छिप गए हैं। ये नहीं बोलेंगे क्योंकि प्रताड़ित करने वाले इन्हीं में से एक हैं..ये नहीं बोलेंगे क्योंकि ये आत्महत्या किसी मंदिर या संघी दफ्तर में नहीं हुई है। हम आखिरी बार पूछते हैं बड़ी बिंदी लगाकर हवा में मुट्ठी लहराकर स्त्री अस्मिता को एक झटके में आजादी दिलाने वाली वो तमाम रणबांकुरी कहाँ हैं?? हेलो …हेलो…क्या इस महिला की हत्या पर कोई कुछ बोलेगा?

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