हमारे देश में एक ऐसा तबका है जो सेकुलरिज्म का चोला ओढ़कर हमेशा सनातन धर्म और उसे पूजने वाले हिंदुओं के लिए नफरत उगलने का काम करता है, हिंदु धर्म को लेकर इन लोगों के मन में इतना जहर भरा है जिसे बयां कर पाना मुश्किल है. ऐसे में सवाल ये कि जब इस तबके को हिंदु धर्म से इतनी नफरत है तो फिर हिंदुओं के गरबा में इनका क्या काम?

दरअसल ये सवाल इसलिए भी पूछना लाजिमी है क्योंकि पिछले दो दिनों से अपनी असली पहचान छिपाकर मुस्लिम समुदाय के युवक कई जगहों पर गरबा में शामिल हो रहे हैं. लेकिन इनमें से तो कुछ लोग ऐसे हैं जो खुलेआम सोशल मीडिया पर, स्टेज पर, टीबी डिबेट में पानी पी-पी कर हिंदु धर्म को कोसते हैं. और उन्हीं हिंदुओं के धार्मिक आयोजन में शामिल होकर सोशल मीडिया पर अपने सेकुलरिज्म का ढोल पीटने का काम कर रहे हैं.

ये वही लोग हैं जो हनुमान जयंती और रामनवमी के मौके पर निकाली जाने वाली शोभायात्रा और कांवड़ यात्रा पर आपत्ति जताते हैं. आपको याद होगा इसी साल हमारी शोभायात्रा पर मुस्लिम आबादी वाले इलाकों से गुजरने पर इनपर पथराव किए गए थे. इसके बाद इन लोगों ने ये तर्क दिया था कि हिंदुओं की शोभायात्राएं मुस्लिम इलाकों से होकर नहीं गुजरनी चाहिए. क्योंकि इससे मुस्लिम धर्म के कुछ कट्टरपंथियों की धार्मिक भावनाएं आहत हो जाती हैं. लेकिन सवाल ये है कि जब हिंदुओं की शोभायात्रा के गुजरने भर से इनकी धार्मिक भावनाएं आहत हो जाती हैं, तो फिर हिंदुओं के गरबा और डांडिया में इनका क्या काम मुस्लिम समाज के लोग हमारे गरबा में क्यों जाते हैं? सही मायने में तो उन्हें इससे दूर रहना चाहिए, क्योंकि इससे उनकी ही धार्मिक भावनाएं आहत होती होंगी. विशेष समुदाय का मानना है कि गैर मुस्लिमों की शोभायात्रा मुस्लिम इलाकों से नहीं गुजरनी चाहिए. धार्मिक भावनाएं भड़क सकती हैं. लेकिन हिंदू धर्म के कार्यक्रमों में गैर हिंदु बिना किसी डर के हमारे धार्मिक पर्व में घुसने की हिम्मत कर देता है.

अहमदाबाद के गरबा पंडाल में पहुंचे मुस्लिम युवकों के माथे पर टीका था. इससे एक बात साफ है कि ये मुस्लिम युवक, खुद को हिंदू दिखाते हुए, गरबा कार्यक्रम में शामिल हुए थे. अब आप सोचिए, इन लोगों को हिंदू धर्म के कार्यक्रम में पहचान बदलकर जाना मंजूर है, लेकिन मुस्लिम इलाकों से शोभायात्राएं गुजरने देना मंजूर नहीं है. बड़ी अजीब हिप्पोक्रेसी है.

विशेष समुदाय वालों को हमें गरबा के महत्व को बताना होगा कि गरबा कोई साधारण नृत्य नही है बल्कि ये देवी की पूजा के लिए किया जाने वाला नृत्य है। यह हमारी श्रद्धा से जुड़ा है। यह पूरी तरह से मां की आराधना का नृत्य है, लेकिन समस्या यह है कि भारत में जो लिब्रल्स हैं, वह गरबा को मात्र एक नृत्य के रूप में देखते हैं। उन्हें यह भी जुंबा कि तरह कोई डांस फॉर्म लगता है, जबकि यह हमारी भक्ति से जुड़ा हुआ है. सवाल ये कि क्या किसी और मजहब के धार्मिक कार्यक्रमों में कोई गैर मजहबी शामिल हो सकता है? क्या उनके यहां कोई गैर मुस्लिम जाकर लड़कियों के साथ नाच सकता है?

लिबरल खेमे को ये बात हमें किसी भी हाल में बतानी होगी कि हिंदुओं के भी धार्मिक अधिकार हैं? आखिर इस तरह से हमारी धार्मिक भावनाओं को आहत करके क्या वे हमें हमारे धार्मिक संस्कारों से दूर करना चाहते हैं?

आखिर में एक सलाह उन मुसलमानों के लिए है जिन्हें गरबा करने का इतना ही शौक है तो घर वापसी के रास्ते आपके लिए खुले हैं, सनातन धर्म में आपका स्वागत है!

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