सिंधु बॉर्डर से लेकर गाजीपुर, टीकरी और जहां से भी ये लोग आ रहे थे सब जगह दीप सिधु ही तो था जो सबको भड़का रहा था , सब जगह जा जाकर तलवारों से काट रहा था, सब जगह जा जाकर पुलिस वालों पर लट्ठ चला रहा था, ट्रैक्टरों पर बैठकर पुलिस पर चढ़ा रहा था बस जो कुछ कर रहा था वही कर रहा था बाकी सब तो भोलेभाले अन्नदाता थे। और किसी ने तो कश्मीर आर्टिकल 370 हटाने से तुलना कर दी वाह ये भी नही समझा ये कश्मीर नही दिल्ली है यहां की और वहां की परिस्थितियों में फर्क है। कश्मीर में जो किया अगर यहां करते तो 84 जैसे हालात बन जाते इसलिए सिर्फ कुछ भी बोलना है इसलिए नहीं बोलना चाहिए।
और जब सारे किसान दीप सिधु की ही बात मान कर भड़क गए तो फिर वो 40-50 नेता रोज़ सरकार से बात करने आते थे वो कौन थे । जब किसान दीप सिधु की बात मानते हैं तो नेता तो दीप सिधु हुआ फिर वो क्यों किसान नेता बने घूमते थे। और जब मार्च शुरू हुआ तब कोई किसान नेता क्यों नही था उसकी अगुवाई के लिए जबकि नेता को तो आगे होना चाहिए। और जब उनको पता था मार्च हाइजेक हो रहा था तो क्यों उन्होंने मार्च कैंसिल नहीं किया।किसी व्यक्ति या विचारधारा के विरोध में अन्धविरोधी मत बनिए पर्दा हटाकर सोचने की ज़रूरत है।
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