भारतीय मेधा और दर्शन के अप्रतिम उदाहरण : रामानुजम
क्यूँ रामानुजम पाश्चात्य सभ्यताओं के लिए आश्चर्य हैं , साथ ही कुछ हद तक अबूझ भी !!
क्यूँ रामानुजम पाश्चात्य सभ्यताओं के लिए आश्चर्य हैं , साथ ही कुछ हद तक अबूझ भी !!
एक बात बताइए , कभी ऐसा हुआ है की आप किसी समस्या के समाधान के बारे में सोंचे , उसे लागू करें और आप असफल हो जाएँ ? ज़रूर हुआ होगा । और फिर आपने सोचा होगा की ऐसा ना करके वैसा करते तो पक्का सफल हो जाते ।
चलिए , ये बताइए : क्या कभी आपने जटिल से जटिल समस्या का समाधान एक दम सही निकाला है । ख़ुद को भी चौंका दे : वैसा वाला , हुआ तो होगा । अंग्रेज़ी में जिसे “गट-फ़ील” कहते हैं । भारतीय दर्शन इसके लिए शब्द रखता है “सहज बोध” या अंग्रेज़ी में कहें तो “इंट्यूशन” ।
चलिए एक और बात बताइये , कभी ऐसा हुआ है की आपने हड़बड़ी में कोई निर्णय लिया हो और वो ग़लत हुआ हो जबकि सोच विचार कर कोई निर्णय लिया हो और वो एकदम सही हुआ हो ? हुआ तो होगा ही । तब तो आप ये जानते हैं कि सोचने विचारने में अगर दिमाग स्थिर हो तो फ़ैसले अमूमन सही होते हैं ।
अब मन को स्थिर रखने के क्या उपाय हैं ? भारतीय दर्शन मन को एकाग्र करने के कई उपाय बताता है जिसमे सबसे मुख्य है अपने सांस पर नियंत्रण | प्राणायाम जिसकी विधि है |
अब बात करते हैं मूर्ति – पूजा की | मूर्ति पूजा को एक माध्यम माना गया है अपने इष्ट से जुड़ने का | क्यूंकि हकीकत में दूसरा कोई और होता नहीं सिवाय आपके जब आप मूर्ति के सामने होते हो, फिर आप जो कहते हो खुद से कहते हो , जो मांगते हो खुद से मांगते हो ,खुद को उसके लिए तैयार करते हो | इसीलिए ज्यादातर मंदिर किसी ना किसी शैली में बनते थे जिनका एक विशेष उद्देश्य होता था |
ये तो हो गए “डॉट्स” अब इन्हें “कनेक्ट” करते हैं :
आपके मन में कोई विचार है , आप उसकी परिणति सोच रहे हो या कोई समस्या जिसका समाधान | आप एक एकांत मंदिर में जाते हो , थोड़ी देर मूर्ति से बात करते हो विचार या समस्या औरसाफ होती है दिमाग में | मनुष्य का दिमाग एक सेकंड में हज़ारों परमुटेशन / कॉम्बिनेशन सोचता है, ये आपको मालूम ही होगा | आप अगर प्राणायाम में कुशल हो तो मन को स्थिर करके , ध्यान लगाकर संभव परिणतियों या हलों को उनके भावित फलों के साथ सोचते हो | कितनी सम्भावना है की वो सही होगा ? शायद सिक्के को टॉस करने के बराबर : ५०% |
पर यही काम एक लम्बे समय तक करते रहो तो ? तो ये ५०%, ८०-९० से होता हुआ १०० तक जा सकता है |
और धीरे धीरे आपकी हल सोचने की क्षमता बढ़ती जाएगी | कुछ ऐसा ही होता है उनके साथ जो भविष्य देख लेते हैं | मेरे बहुत ही अल्पज्ञान में यही “सहज बोध” है | इसीलिए भारतीय दर्शन तार्किक से ज्यादा व्यावहारिक है |
रामानुजम के जीवन में आपको यही मिलेगा : उन्हें समाधान पता थे , पर वो समझा नहीं पाते थे | वो कहते थे उनके मंदिर की देवी उन्हें बता जाती थीं , जो मेरी समझ में उनकी अपनी आवाज़ थी बस वो उसको सुन केवल मंदिर में अपनी इष्ट देवी के सामने ही पाते थे | मेरी समझ में ये भारतीय दर्शन की ही एक पराकाष्ठा है |
सबसे बड़ी बात ये है की ऊपर मैंने कुछ भी लिखा है , उसमें ज्यादातर एक आम भारतीय को पता है और बहुत हद तक हम उसे अपनाते हैं अपने जीवन में , यही भारतीय मेधा है जो भारतीय दर्शन से उपजी है | कालांतर में एक रिक्त स्थान बन गया है दोनों के बीच जिसे भरने का काम रामानुजम जैसे मेधावी करते रहते हैं |
इसीलिए उन्हें सिर्फ गणितज्ञ की परिधि में बांधना , ना केवल उनके लिए अपितु समूचे भारतीय दर्शन के साथ पक्षपात की तरह है |
मानवजीवन की महानतम मेधाओं में से एक रामानुजम को उनके जन्मदिवस शत शत नमन !!!!!
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