इस लेख को पढ़ने से पहले इस तस्वीर को देख लीजिए.. ध्यान से… कहते हैं कि एक तस्वीर हजार शब्दों के लेख से ज्यादा प्रभावी होता है.. तस्वीर संभवतः राजधानी दिल्ली के निजामुद्दीन स्टेशन से नई दिल्ली स्टेशन के बीच की है.. तिलक ब्रिज के आस-पास कहीं..

कई बुद्धजीवियों का मत हैं कि इस अतिक्रमण को यूं ही पड़े रहना देना चाहिए.. अपितु स्टेशन और पटरी को ही देश निकाला दे देना चाहिए.. तात्पर्य ये है कि इस अवैध कब्जे को वैध कर देना चाहिए. और पटरी हटाकर रेल को बंद कर देना चाहिए..

मामला हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के दिए उस वर्डिक्ट से जुड़ा है, जिसमें कोर्ट ने राजनैतिक दखलंदाजी पर सख्त रवैया अपनाते हुए कहा है कि दिल्ली के 140 किमी की ऐसी रेल पटरियों या उसके किनारे बसी 48 हजार झुग्गियों को तीन महीने में हटाया जाए..  

अब इस जायज फैसले के बाद भी विभिन्न समूह के लोगो का काईयां पन शुरू हो गया है.. और प्रतीत होता है कि यह झुग्गी समस्त बुद्धजीवियों, राजनैतिकों, सामाजिक संगठनों और पत्रकारों के सीने से होकर हटेगा..  

जिसकी बानगी यहां देखिए..

साल 2015 में दिल्ली में केजरीवाल सरकार बनी तो उन्होंने कहा कि झुग्गियों को पक्का करना या उनमें रहने वाले लोगों का पुनर्वास करना उनकी प्राथमिकता है.. ये गरीबों की सरकार है. सबको सब मुफ्त में मिल रहा है.. आदि-आदि..

अब उन्होंने पांच साल में क्या किया.. वह सबके सामने है.. और सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार हटाने के खर्चे का 30 फीसदी खुद केजरीवाल सरकार को चुकाना है.. लेकिन राजनैतिक घाघपन देखिए.. इनका कहना है उनके जीते जी कोई झुग्गियों को हटा नहीं पाएगा.. गिरगिट भी शर्मा जाए..

दूसरी ओर इस मामले को लेकर आज कांग्रेस नेता अजय माकन भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए और कहा कि किसी भी झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले को रहने के लिए वैकल्पिक जगह दिए बिना उजाड़ा नहीं जाना चाहिए.

जबकि माकन को भी यह बात पता है.. कि दिल्ली में ही 52 हजार से ज्यादा राजीव गांधी आवासीय मकान खाली पड़े हैं.. और भारतीय जनता पार्टी यह मुद्दा पिछले 6 साल से उठा रही है कि उस कालोनी में झुग्गी वालों को बसाया जाए, लेकिन इसके बावजूद भी न तो केजरीवाल ने किसी भी बंदे को वहां पिछले 5 साल में बसाया और न ही माकन ने राजीव गांधी आवासीय मकान का जिक्र एक बार भी कोर्ट में किया..,.

दिल्ली में केजरीवाल के पहले कांग्रेस 15 सालों तक शासन में रही है.. लेकिन इस दोरान किसी झुग्गी वालों को नया मकान देना क्या… उल्टा एक बड़ी आबादी को धीरे धीरे इन सरकारी जमीनों पर बसने दिया.. और इस विस्फोटक स्थिति तक पहुंचने दिया.. पर अब यह इनके लिए मुद्दा है.. और इनके झुग्गियों को लेकर देखे जा रहे दर्द को देखकर तो खुद दुख-दर्द को भी शर्मं आ जाए.. कि यार ये किन लोगों के बीच आकर फंस गया..

अब आते हैं सबसे में अंत में भारतीय जनता पार्टी पर.. केन्द्र में इनकी सरकार है और रेलवे इनके अंतर्गत आती है..  

कोर्ट के मुताबिक 30 फीसदी खर्च राज्य सरकार और 70 फीसदी खर्च खुद रेलवे को उठाना है.. लेकिन अब भारतीय जनता पार्टी दिल्ली ने भी मौके पर चौका मारते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखा है कि 48 हजार झुग्गियों न तोड़ा जाए..  जबकि इस साल की शुरूआत में जब दिल्ली में चुनाव होने जा रहा था..

तब क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, क्या अमित शाह, क्या गड़करी, क्य़ा राजनाथ सिंह और क्या मनोज तिवारी,.. मतलब प्रचार करने वाला कोई भी नेता ऐसा नहीं रहा.. जिसने जहां झुग्गी वहां मकान, 2022 तक सबको मकान का वादा न किया हो.. पर अब, जब, सब झुग्गी वालों से प्यार जता रहे हैं. तो यही क्यों पीछे रहे.. लिहाजा बहती गंगा में इन्होंने भी हाथ धो लिया..

जबकि सच तो ये है कि यहां राजनैतिक पार्टियां केवल राजनीति ही कर सकती हैं.. और कोर्ट ने राजनैतिक पार्टियों के हस्तक्षेप से साफ मना किया है.. और ये झुग्गियां हटाया जाना जरूरी भी है.. क्य़ोंकि दिल्ली के लगभग सभी रेलवे स्टेशन के आसपास हजारों की संख्या में अवैध झुग्गियां बड़ा सिरदर्द बन चुकी हैं..

इतना ही नहीं आईटीओ, सेवानगर, इंद्रपुरी, आनंद पर्वत, सदर बाजार, शास्त्री पार्क, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन, शहादरा और अन्य जगहों पर हजारों झुग्गियां बस गई हैं.. इस अवैध कब्जे को हटाने की कवायद आज से नहीं बल्कि 1983 से चल रही है और हटना क्या दिनों दिन इसकी संख्या में वृद्धि हुई है..

स्थानीय लोगों के मुताबिक दिल्ली मेट्रो बनने के समय यहां की लगभग तीन दर्जन झुग्गियों को तोड़ा गया था तो इन परिवारों को रहने के लिए वैकल्पिक जगह भी दी गई थी, लेकिन लोग उस जमीन को बेचकर फिर से इसी जगह पर आकर नई झुग्गियां डालकर रहने लगे..

अब झुग्गी हटाए जानें से लाखों लोगों को समस्या नहीं होगी.. इससे इंकार नहीं हैं.. लेकिन हमारा मानना है कि या तो इन्हें दिल्ली में राजीव आवास योजना के तहत बने करीब 50 हजार खाली आवास या दिल्ली विकास प्राधिकारण के अन्य खाली आवास में इन्हें बसाया जाए या सभी राजनैतिक दलों को मिलकर इनके अन्यत्र कहीं पुनर्वास की व्यवस्था करनी चाहिए.. बाकी राजनीति ने ही अब तक यह स्थिती बिगाड़ रखी है और अगर आगे भी जारी रही तो और भी बिगड़ जाएगा..

दीपक पाण्डेय

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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