Writer/Rakesh Thakur
लोकतंत्र का विश्लेषण हमारे संविधान मैं कुछ इस प्रकार किया गया है ऐसी शासकीय व्यवस्था जिसमें
“जनता का जनता के और जनता द्वारा”
यह एक पंक्ति का वाक्य उस कालखंड के समाज के प्रबुद्ध विभूतियों द्वारा बहुत ही शोध के बाद प्राप्त हुआ|
सदी के विभिन्न कालखंड में समय अनुसार मौजूद लोगों ने अपने सांस्कृतिक और सनातनिक विचारों से उत्पन्न मानवतावाद से समाज को जागृत कर उनके उत्थान का नया अवसर प्रदान किया जो प्रक्रिया निरंतर सतत रूप से चलती रही जिसके परिणाम स्वरूप समाज में संगठित रूप से एक वर्ग “निशब्द शक्ति” के रूप में उत्पन्न होता गया |
यह वर्ग खासकर उन समूह और समुदाय का गठजोड़ है जो हमेशा से समाज के सबसे निचले पायदान पर रहे हैं विशेषकर दलित,शोषित,पीड़ित,आदिवासी,गरीब और नारी शक्तियां हैं विशेषकर नारी शक्ति सनातन काल से विभिन्न काल खंडों में त्याग और संघर्ष के साथ समाज को दिशा दिखाई है हमारे शास्त्र में भी कहा गया है
“यत्र नारी पूज्यंते ,रमंते तत्र देवता”
चाहे रामायण काल में मां सीता महाभारत काल में द्रोपदी चाणक्य काल में मुड़ा ऐसे ही निशब्द शक्तियां समाज के विभिन्न में दौर में मौजूद रहे हैं विशेषकर आधुनिक भारत में देवी मुड़ा के कोख से ही चंद्रगुप्त रूपी लोकतंत्र के जनक का जन्म हुआ जिनके नाम में मौर्य शब्द उनके मां मुड़ा से प्राप्त हुआ जो आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य रूपी नाम से दिया फिर आगे चलकर इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में कई बार उतार चढ़ाव आए जिसमें एक दौड़ अंग्रेज से भारत की आजादी के संघर्ष का भी है जिसमें खासकर यह समाज की निशब्द शक्ति ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था|
जब हमें आजादी प्राप्त हुआ और देश में अपना संविधान के साथ लोकतंत्र की स्थापना भी हुआ जिसमें काफी जोर देकर “जनता का,जनता के और जनता द्वारा” अधिकार पर बल दिया गया परंतु धीरे-धीरे यह अधिकार को परिवार,परिवार वादी लोकतंत्र के सौदागर ने चीरहरण करना शुरू कर दिया लेकिन अब खासकर कुछ विगत के वर्षों में यह समाज की निशब्द शक्ति में एक आस जगी है और उनके अंदर उम्मीद की अंकुरे फूटने लगी है जिसका परिणाम देश के लोकतंत्र के महापर्व में देखने को मिल रहा है|
उम्मीद से विश्वास बढ़ता है और विश्वास से ही सिद्धि की प्राप्ति होती है| .
धन्यवाद.
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बहुत सुन्दर