जोधा अकबर की झुठी कहानी सुनाने वालों कभी वीरमदेव_सोनगरा को भी पढ़ो जिनकी दिवानी खिलजी की पुत्री फिरोजा थी!
रक्त शुद्धता के महत्व को समझने के लिए
जालोर के वीरमदेव सोनगरा जी से सीखना चाहिए जिनके प्रताप से खिलजी की शहजादी फिरोजा मोहित हो इनसे विवाह करने को आतुर हो गई।

जोधा अकबर की झुठी कहानी सुनाने वालों कभी वीरमदेव_सोनगरा को भी पढ़ो जिनकी दिवानी खिलजी की पुत्री फिरोजा थी!
रक्त शुद्धता के महत्व को समझने के लिए
जालोर के वीरमदेव सोनगरा जी से सीखना चाहिए जिनके प्रताप से खिलजी की शहजादी फिरोजा मोहित हो इनसे विवाह करने को आतुर हो गई। यह बात जब खिलजी को पता चली उसने जालोर के राजा कान्हडदेव सोनगरा को पत्र लिख कर उपनी शहजादी का विरमदेव से विवाह करने का प्रसताव रखा,यदि देखा जाऐ तो यह प्रस्ताव ऐसा यदि वीरमदेव चाहते तो फिरोजा से विवाह कर दिल्ली से मित्रता कर अपना राज्य विस्तार कर सकते थे किंतू वाह रे क्षत्रिय

रावल वीरमदेव सोनगरा

तेरी होड नही हो सकती,खिलजी के पत्र के उत्तर मे स्पष्ट शब्दों मे यह विवाह प्रस्ताव को ठुकरा कर कुल की शुद्घता को महत्व देते हुए संदेश लिखा –
अगर मैं तुरकणी से शादी करूं तो मामा का भाटी कुल और स्वयं का चौहान कुल लज्जित हो जाएंगे और ऐसा तभी हो सकता है जब सूरज पश्चिम से उगे…..||यह प्रस्ताव ठुकराया गया,कालचक्र भी थम सा गया था,भविष्य मे युद्ध मानो तय हो गया था कहते है यदि चुनौती खुद चलकर शूरवीर के पास नही आती तो शूरवीर स्वयं चुनौती के पास चले जाते है । यह कहावत जालोर के वीरों ने सिद्ध करके दिखाई अब वो समय आया जो आना तय हो गया था,दिल्ली और जालोर का युद्ध , यह युद्ध इतना भीष्ण मुट्ठी भर राजपूतो ने केसरिया बाना धारण कर अणगिनत को नरक का रास्ता दिखाया,किंतू इस युद्ध मे एक विचित्र उदहारण वीरगति प्राप्त करने के बाद भी वीर वीरमदेव सोनगरा ने दिया युद्घ मे वीरमदेव सर कटने के पश्चात भी शत्रुओं से लड़ते रहे उनके सर को थाल मे सजाकर खिलजी के सामने रखा गया कटा शीश भी तेज झलक रहा था,जिस से फिरोजा को विरमदेव के शीश पर अंतिम तिलक करने की इच्छा प्रकट हुई ।और जब वह वीरमदेव के कटे माथे पर तिलक लगाने पहुंची,उस समय वीरमदेव का कटा सर दूसरी और घूम गया यह देख सभी चकित हो गए … फिरोजा दुखी हो गई की मरने के पश्चात भी यह राजपूत मेरा स्पर्श स्वीकार नही कर रहा,फिरोजा ने प्रार्थना की और स्वयं अंतिम संस्कार कर यमुना नदी मे कूद अपने भी प्राण त्याग दिए ।यह इतिहास का पहला ऐसा उदहारण है जब किसी मुगल कन्या ने राजपूत का अंतिम संस्कार किया हो और उसके प्रेम मे इतनी खो गई कि स्वयं की भी जान यमुना मे कूद कर दे दी!!

वीरमदेव ने वीरोचित मृत्यु का वरण किया किंतू धर्म व कुल को भ्रष्ट नही होने दिया । शुद्ध रक्त का महत्व हमें वीरमदेव सोनगरा से ग्रहण करना चाहिए!! ?? वीरमदेव का कटा सर भी फिरोजा की तरफ से घुम गया था ऐसा भी कहा गया है !!
जय भवानी जय राजपूताना
जय क्षात्रधर्म ??


जय भवानी

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.