दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट पर जिन फतवों का जिक्र किया गया है उसके चलते पूरे देश में एक बार फिर से बहस छिड़ गई है कि छोटे बच्चों को उनके अधिकारों से वंचित करने के लिए इस तरह के फतवों का एक लोकतांत्रिक देश में क्या औचित्य है। ये देश संविधान से चलेगा नाकि दारुल उलूम देवबंद के फतवों से..दारुल देवबंद अपने अपराध को स्वीकार करें और इस वेबसाइट को बंद करे। देवबंद जिस इस्लाम की बात करता है उसे भारतीयकरण के हिसाब से चलना होगा, देश में समय बदल गया है अब नेहरूवाद का समय नहीं रहा है।

बच्चों को उनके अधिकार से वंचित करना बड़ा अपराध है, NCPCR ने संविधान के तहत उस वेबसाइट पर आपत्तिजनक बातें पाई जो देश के संविधान का उल्लंघन करती हैं, देवबंद भारत के संविधान के अंतर्गत काम करता है जो भी इस देश की भूमि पर काम करना चाहता है उसे भारत के संविधान की शर्तों को उसके प्रावधानों को उसकी भावनाओं का आदर करना होगा।

यह भारत के संविधान को तार तार करने वाली बातें हैं, आयोग अपने कैलेंडर के मुताबिक काम करता है ना कि चुनाव के मुताबिक काम करता है। देवबंद को यह तय करना होगा कि उसे भारत के संविधान के अंतर्गत ही काम करना है ना कि किसी मध्यकालीन शासन युग के तहत।

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