मैं धरती हूँ
माना मैं माँ हूँ
कबतक चुप रहूँ?
और कितना सहूँ?
जाहाँ जाओगे, मुझे ही पाओगे
देश हो या विदेश, कहीं भी फैलाओं अपने पंख
हर जगह पाओगे मुझे अपने संग।
भूमिष्ट हुए जब, धरती माँ ने दिया अपना आंचल
मेरे गले से लगकर बीता तुम्हारे जीवन का हर क्षण हर पल ।
संसार को जब अलविदा कहोगे
मेरी ही गोद में कफ़न ओढ़ सो जाओगे |
आपस में जब लड़ते हो
मेरे छाती के टुकड़े करते हो
चलती है जब मेरे सीने में गोली
लहुलुहान कर मुझे खेलते हो खुन की होली?
अन्याय, अधर्म बढ़ रहा है भ्रष्टाचार
और कितने होंगे मेरे ऊपर अत्याचार
जब होते हो तुम नुन पानी
गोद तो मेरी ही होती है सुनी
मैं भेदभाव न जानु, किसे पराया मानु,
तुम सब मेरी संतान
अपनी धरती माँ के दुःखों से क्यों हो अंजान?
धरती मां का यह है कर्ज
कब निभाओगे अपना फर्ज ?
दर्द अपना किसे सुनाऊँ
मैं धरती हूँ
माना मैं मां हूँ
कब तक चुप रहूँ
ओर कितना सहूँ
उफ़ भी ना करुँ?
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.