राम मंदिर की जगह मस्जिद बनाने के पक्ष में थे स्वरूपानंद सरस्वती

शाहीनबाग़ के पक्ष में और CAA के विरोध में बोलने वाला ढोंगी शंकराचार्य

स्वरूपानंद सरस्वती वो ढोंगी हिन्दू जिन्होंने राम मंदिर के निर्माण में हमेशा रोड़े अटकाए

कांग्रेस के हाथों की कठपुतली हैं नकली शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती

क्या सोनिया गांधी के इशारे पर मंदिर निर्माण रोकने की साजिश

ढोंगी शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती एक बार फिर राम मंदिर निर्माण रोकने की कोशिश में लगे हैं। स्वरूपानंद सरस्वती राम मंदिर के खिलाफ कांगेसी चाल का आखिरी मोहरा हैं।

ये पहला मौका नहीं जब स्वरूपानंद सरस्वती ने हिंदुओ के खिलाफ काम करने की कोशिश की हैं।

श्रीराम जन्मभूमि के आंदोलन को फूट डालकर कमज़ोर करने के लिए कांग्रेस के इशारे पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने अलग से रामालय ट्रस्ट बनाया और बेशर्मी से कह रहे थे कि उसी रामलय ट्रस्ट को मंदिर बनाने का अधिकार दे दिया जाए।

हिन्दू संगठनों की ओर से यह आरोप लगाया जाता रहा है कि हिन्दुओं के हितों में होने वाले किसी भी कार्य का सबसे पहला विरोध स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की तरफ से होता है। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की कांग्रेस से नज़दीकी जगजाहिर है।

स्वामी स्वरूपानंद खेमे ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्रन्यास के गठन को अदालत में चुनौती देने का फ़ैसला भी कर लिया था।

हिन्दुओं की धार्मिक सत्ता की एकजुटता में सबसे बड़े बाधक स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ही हैं जिन्होंने बद्रीकाश्रम की ज्योतिष पीठ पर अवैध और गैरकानूनी तरीके से क़ब्ज़ा करने की कोशिश की। शंकराचार्य पीठों को अदालती लड़ाई में घसीटा। जिसके कारण आज तक सभी पीठों के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के द्वारिका के शंकराचार्य बनने के बाद कभी भी एकजुट नहीं हो पाये। अगर सभी पीठों के शंकराचार्य धर्म से सम्बन्धित किसी भी प्रश्न पर एकमत से कोई निर्णय दे दें तो कोई भी राजनीतिक सत्ता उस निर्णय के ख़िलाफ़ जाने की हिम्मत तक नहीं कर सकती है किन्तु हिन्दुओं की धार्मिक सत्ता राजनीति की पिछलग्गू बनी रहे, यह षड्यंत्र वैटिकन सिटी के इशारे पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती प्रारंभ से ही करते रहे हैं।

पुरी के पूज्य शंकराचार्य जी ने ही यह रहस्योद्घाटन किया था कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती श्रीराम जन्मभूमि के स्थान पर मस्जिद बनवाना चाहते थे।

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने सदैव हिन्दू हितों का विरोध किया है। आज भी ये शाहीनबाग वालों के साथ सुर में सुर मिलाकर CAA का विरोध कर रहे हैं। CAA के पारित होने के बाद दुनिया भर के हिन्दुओं को लगता है कि अब भारत हमारा घर है। दुनिया के किसी भी देश में अब यदि हम पर अत्याचार होगा तो हमें भारत में शरण मिल ही जाएगी लेकिन ये कैसे हिन्दू धर्माचार्य हैं जो कि आज तक के इतिहास में भारत की संसद में हिंदुओं के पक्ष में लिए गए सबसे बड़े निर्णय का विरोध कर रहे हैं?

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