सनातनी समाज की चेतना पर घात 

सनातनी चेतना को खंडित करने के षड़यंत्र के अंतर्गत घात लगाकर हिन्दू समाज पर प्रहार किया जा रहा है। सनातनी वंशजों के मन मस्तिष्क को प्रभावित किया जा रहा है। आधुनिक युग के विस्मयकारी मोहित करने वाले वस्त्र में छुपा कर सनातनी संस्कृति की चेतना में विषयुक्त सुई निरंतर चुभोई जा रही है। जिससे धीमा धीमा विष सारी सनातनी चेतना को जड़वत कर दे एवं घाव कभी न भर सके। अंततः प्रहार का प्रतिकार करने की योग्यता ही समाप्त कर दी जाये।

जागो हिन्दू जागो 

इस षड़यंत्र में प्रहार के भिन्न भिन्न रूप हैं। सबसे प्रमुख सिनेमा जगत का घात है। सिनेमा आधुनिक जगत का विलासितापूर्ण उपभोग का साधन है। यह हमारे नाट्य कला एवं मंचन विधा से पूर्णता भिन्न है, आधुनिक सिनेमा भारतीय नाट्य कला एवं मंचन विधा का विकल्प कदापि नहीं हो सकता। क्योकि भारतीय कला एवं मंचन विधा के उद्देश्य, गुणसूत्र, नियम, आचार विहार, सैद्धांतिक मूल्य सभी कुछ भिन्न है।

सिनेमा प्रमुख रूप से चार प्रकार के उत्पादों से जनमानस के विचार को प्रभावित करता है। १. चलचित्र २. धारावाहिक ३. विज्ञापन ४. आभासीलोक के मकड़जाल से निकले: यूट्यूब , प्राइम चैनल्स, नेटफिल्क्स आदि 

सिनेमा दर्शक के दैनिक जीवन का बड़ा अंश चुरा लेता हैं। सिनेमा के सभी माध्यमों का अपना अपना बहुत बड़ा दर्शक वर्ग है। बारम्बार एक ही प्रकार के विचार का दृश्यांकन हमारे मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालते हैं। हमारी दैनिक दिनचर्या, अचार- विचार में वह विशेष विचार प्रतिबिम्बित होने लगता है। 

एक प्रचलित कहावत है की सिनेमा समाज का आइना होता है, अर्थात सामान्य समझ से कहे तो समाज में जो होता है सिनेमा वो ही दिखाता है, परन्तु इस कहावत का प्रभाव ठीक इसके उल्ट है। यहाँ हमे यह समझने की आवश्कयता है की प्रतिबिम्ब आभासी होता है न की वास्तविकता। यह कहावत कुशलता के साथ प्रचारित की गयी, जिससे आप विरोधियों द्वारा दिए गए झूठे विचार को सच्चाई समझकर, आप उसे ही सत्य समझे। आभास एवं वास्तविकता के मध्य दूरी सुप्त दृष्टि से देखने पर अदृश्य लगती है, परन्तु जागृत दृष्टि से देखने पर दोनों का भेद स्पष्ट रूप से समझ आता है।

सिनेमा एक माध्यम मात्र है उसे संचालित एवं प्रभावित करने वाली शक्तियों में हिन्दू विरोधी, देश विरोधी तत्त्व बैठे है। वे सिनेमा के दर्पण को झूठे प्रतिबिम्ब खड़े करने के लिए प्रयोग कर रहे हैं। उन्ही झूठे प्रतिबिम्बों को हम हमारे समाज का प्रतिबिम्ब मान रहे हैं, यह अत्यंत जटिल षड़यंत्र में एक है, जो हिन्दू समाज के मूल्यों को नष्ट करने के लिए रचा जा रहा है। चलचित्र में कथा, नायक, नायिका, एवं खलनायक मूल स्तंभ होते हैं। आप स्वयं निरीक्षण कीजिये सिनेमा के प्रारंभिक काल से वर्त्तमान समय तक आये परिवर्तन का,तब से अब तक आधुनिकता के आवरण में छुपा कर किस प्रकार सनातनी मूल्यों को तोड़मोड़ कर प्रस्तुत किया गया है।

परिवर्तन प्रकृति का नियम है, परन्तु परिवर्तन के नाम पर अपनी मूल पहचान एवं मूल्यों से समझौता कैसे किया जा सकता है। यह हमारा कर्त्तव्य है, कि हमारी मूल पहचान एवं सनातनी मूल्यों को हमारी आने वाली पीढ़ी को उसके मूल स्वरुप में ही सौंपा जाये। जब तक आपके पास सही एवं मूल माप दंड नहीं होंगे, आप कैसे जांच सकते हैं कि सिनेमा का दिखाया हुआ प्रतिबिम्ब मुलरूप का प्रतिबिम्ब है या झूठा आभास है, अर्थात सिनेमा प्रतिबिम्ब दिखाने वाला दर्पण है या समान्य आप पार देखने वाला अदृश्य शीशा।

बॉलीवुड में हिन्दू धर्म का अपमान ही ...
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आइये कुछ वर्त्तमान उदाहरण पर चर्चा से समझने का प्रयास करते हैं। धर्म रक्षार्थ सुझाव पर अंतिम अनुच्छेद अवशय पढ़े।

हिन्दू विरोधी सिनेमा उद्योग: धारावाहिक

१. ये जादू है जिन्न का (खंड १६ एवं २३)

दृश्यांकन: बंटी नामक शर्मा जी के लड़के का मित्र नायिका को छेड़ता है। उसके साथ हिंसा करने के उद्देश्य से उस पर धावा करता है, उसका पीछा करता है। परन्तु नायक आकर उससे बचा लेता है।

हिन्दू का प्रश्न :जब पूरा धारावाहिक एक विशेष पंथ की पृष्ठभूमि (जो की हिन्दू नहीं है) पर आधारित है, जिसमे हिन्दू का दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं। उसमे आपको “शर्मा जी का लड़का” चरित्र क्यों लेना पड़ा, वह भी नकारात्मक भूमिका से बंधा हुआ। 

षड़यंत्र का उद्देश्य :ब्राह्मण जाति को नकारात्मक दिखाना, एक विशेष पंथ को सकारात्मक दिखाना

२. कहाँ तुम कहाँ हम 

दृश्यांकन : एक पागल प्रेमी विवाहित नायिका को अपना बनाने के लिए भिन्न भिन्न षड्यंत्र करता है, “डर” नामक चलचित्र के शाहरुख की भांति। उस पागल प्रेमी का नाम “महेश” रखा जाता है, उसके कंठ में रुद्राक्ष एवं हाथ पर ॐ का गोदना होता है। परन्तु खंड ९९ में नायिका का मैनेजर जिसका नाम “अखिल खान” है, वह स्त्रीयों के साथ सभ्य आचरण करता हुआ दिखाया जाता है। वह एक वाक्य बोलता है “क्या करे अब पंजाबी मॉम को मुस्लिम डैड से प्यार हो गया तो इसलिए ऐसा नाम “अखिल खान”। एक हिन्दू अविवाहित युवती, एक विवाहित युवक के साथ अनैतिक सम्बन्ध रखती है।

हिन्दू का प्रश्न :१. पागल प्रेमी का नाम हिन्दुओं के देव महादेव के नाम पर ही क्यों रखा गया, उसे हिन्दू चिन्हों से ही चरित्रित क्यों किया गया। २. अंतरपंथीय विवाह के रूप में, पागल प्रेमी की साधारण कहानी में लव जिहाद को प्रचारित क्यों किया गया। ३. जौहर एवं सतीत्व वाली पतिव्रता स्त्री शक्ति के राष्ट्र में, एक हिन्दू युवती को ही क्यों अनैतिक सम्बन्ध में दिखाया गया। अगर आप इतने ही पंथनिरपेक्ष हैं तो वह लड़की “ग़ैर” हिन्दू क्यों नहीं हो सकती। जिनके समुदाय में एक साथ ४-४ बीबी रखने का रिवाज है वहां क्यों चुपी है।

षड़यंत्र का उद्देश्य: लव जिहाद को प्रसारित करना महादेव के प्रति हिन्दू आस्था पर प्रहार करना हिन्दू कन्याओं के सनातनी मूल्यों पर प्रहार करना, उन्हें क्षीण करने के लिए। 

३. बेहद २ 

दृश्यांकन: १. एक बड़ा हिन्दू व्यवसायी जो माँ दुर्गा का भक्त है, कम से कम ४- ५ लड़कियों का शारीरिक शोषण करता है, परन्तु समाज और बच्चों के समक्ष अच्छा बनने का ढोंग करता है। २. एक श्री कृष्ण की भक्त, हिन्दू व्यवसायी द्वारा शोषित हिन्दू नायिका प्रतिशोध लेने के लिए षड्यंत्र करती है। नायिका हर अपराध का षडयंत्र रचते समय, गीता के श्लोक बोल कर स्वयं को सही जताने की कोशिश करती है। श्री कृष्ण की शनि देव जैसी काली प्रतिमा का पूजन मोमबत्ती से करती है। ३. उस बड़े हिन्दू व्यवसायी से प्रतिशोध लेने के लिए, नायिका उसी के बड़े बेटे के साथ षडयंत्र के अंतर्गत विवाह करती है और सच्चे प्रेम को दर्शाती है। बाद में उस हिन्दू व्यवसायी और नायिका के दृश्य, बहु एवं ससुर की भांति तो सहज नहीं होते। नायिका अपने देवर को भी प्रेम पाश में बाँधती है, उसे आत्महत्या पर विवश करती है। ४. हिन्दू व्यवसायी की हिन्दू पत्नी सबकुछ जानती है, उसके लिए मात्र उसका पैसा और रुतबा मायने रखता है। ५. हिन्दू व्यवसायी का सबसे विश्वासपात्र एक “ग़ैर” हिन्दू नाम “आमिर” व्यक्ति है।

हिन्दू का प्रश्न :१. हलाला जैसे प्रथा की पृष्ठभूमि वाली कहानी को हिन्दू आवरण क्यों पहनाया गया। २. ग़ैर हिन्दू नाम “आमिर” ही विश्वासपात्र क्यों लिया गया ३. सतीत्व वाली पतिव्रता स्त्री एवं यशोदा माँ जैसे स्त्री शक्ति के राष्ट्र में, एक हिन्दू माँ एवं स्त्री को क्यों इतना “रुतबा” प्रेमी दिखाया गया, जो अनैतिक सम्बन्ध भी स्वीकार कर लेती है। अगर आप इतने ही पंथनिरपेक्ष हैं तो वह स्त्री “ग़ैर” हिन्दू क्यों नहीं हो सकती। जिनके समुदाय में एक साथ ४-४ बीबी रखने का रिवाज है वहां क्यों चुपी है। ४. श्री कृष्णा का पूजन दीपक के स्थान पर मोमबत्ती से कबसे होने लगा, ये तो ग़ैर हिन्दू, जो क्रॉस को मानते है उनकी रीती है। यौन शोषक माँ दुर्गा का भक्त क्यों।

षड़यंत्र का उद्देश्य: हलाला प्रथा की स्वीकारोक्ति बढ़ाना, हिन्दू मूल्यों के प्रति झूठ प्रचारित करना। माँ दुर्गा, श्री कृष्णा के प्रति हिन्दू आस्था पर प्रहार करना। हिन्दू स्त्रीओं के सनातनी मूल्यों पर प्रहार करना। “आमिर” के समुदाय को सकारात्मक दिखाना।

४. गुड्डन तुमसे ना हो पायेगा 

दृश्यांकन:फिल्म का अधेड़ नायक स्वयं १८ वर्ष की एक कन्या का पिता है, स्वयं एक २१ वर्ष की नायिका से विवाह करता है। एक और अधेड़ आयु हिन्दू व्यक्ति, जो की हिन्दू नायक का मित्र है, वह कलवा और रुद्राक्ष माला हाथ में पहनता है। कलवा और रुद्राक्ष माला पहने हुए कभी कभी मदिरा पान भी करता है।इसमें १८ वर्ष की एक कन्या जो की नायक की पुत्री है,अपने ही परिवार के विरोध षड़यंत्र करती है। नायक के मित्र, अधेड़ आयु व्यक्ति पर रेप का आरोप लगाती है, षड़यंत्र करते हुए उससे विवाह रचाती है। घर पर पत्रकार बुला कर परिवार का तिरस्कार करती है। अंत में ये बताया जाता है की अधेड़ व्यक्ति उस १८ वर्ष की एक कन्या के दिमाग से खेल कर उससे यह सब करवा रहा था।

हिन्दू का प्रश्न :अपवाद को छोड़े तो सामान्य परिस्थिति में इतनी आयु अंतर का विवाह हिन्दू धर्मानुसार कदापि नहीं है। एक “ग़ैर” हिन्दू समुदाय विशेष में इस प्रकार की प्रथा आज भी प्रचलित है, जहाँ एक बुड्ढे व्यक्ति का १२- १३ वर्ष की बच्ची के साथ निकाह कर दिया जाता है। उस पर चुप्पी, परन्तु हिन्दू पृष्ठ्भूमि में ग़ैर हिन्दू प्रथा क्यों जबरदस्ती गढ़ी जा रही है। विशेष रूप से हिन्दू चिन्हों के साथ हिन्दू व्यक्ति ही क्यों नकारात्मक छवि में दिखाते है। नायक भी हिन्दू है उसे कभी हिन्दू चिन्हों के साथ नहीं दिखते। सामाजिक सच्चाई दिखानी ही है तो ऐसे अनेक अपराध है जहाँ स्त्री ने पुरुष पर झूठे आरोप लगाए हैं, उन्हें प्रताड़ित किया है। उसे कहानी में क्यों नहीं बनाया गया, दिखाते स्त्री को भी दंड़ मिलना उतना ही सामान्य है जितना पुरुष को दंड़ मिलना।

षड़यंत्र का उद्देश्य :हिन्दू समाज और मूल्यों पर प्रहार करना, अतार्किक अनुपयुक्त अस्वीकार्य आयुभेद के विवाह का हिन्दू समाज में प्रचार करना

५. पटियाला बेब्स 

दृश्यांकन:एक पंजाबी पृष्ठभूमि की कहानी है, एक स्त्री को उसका पति धोखा देता है, विदेश में दूसरा विवाह कर लेता है। सम्बन्ध विछेद होता है, वो फिर स्वाभिमान से खड़ी होती है। इसमें एक नइबी नामक “ग़ैर” हिन्दू पडोसी दादी का चरित्र है, जोकि स्वाभाव से बहुत अच्छी है, हर संभव सहायता करती है। जबकि उसकी स्वयं की हिन्दू सास पुत्र मोह के कारण उसका साथ देने में थोड़ा विलंबः करती है। मोहल्ले की बाकि हिन्दू स्त्रियां नायिका को यदा कदा ताने मारती रहती हैं।

हिन्दू का प्रश्न :जब पंजाबी पृष्ठभूमि की कहानी है, तो उसमे नइबी नामक “ग़ैर” हिन्दू चरित्र क्यों गढ़ा गया।

षड़यंत्र का उद्देश्य :हिन्दू अवचेतन मस्तिष्क में “ग़ैर” हिन्दू चरित्र को सकारात्मकता के साथ जोड़ना।

६. विद्या

दृश्यांकन:इसकी पृष्ठभूमि में एक निरक्षर विध्वा नायिका कैसे शिक्षा का प्रसार करती है, दिखाया गया है। २-३ बार बिल्ली ने रास्ता कटा वाला दृश्य दिखाते हैं, जिससे अंधविश्वास बताया जाता है। प्रारंभिक दृश्य में ही पुजारी को दक्षिणा पर लार टपकते हुए दिखाया है। एक त्रिपाठी नमक शिक्षक चरित्र है, जो विद्यालय के बच्चो से जातीय भेदभाव करता है। नानकु नामक खलनायक चरित्र विद्यालय के बच्चों को विष देने का कुकर्त्य करता है, न्याय व्यवस्था से बच निकल जाता है, तदोपरांत समाज में छवि बनाने के लिए मंदिर जाकर माँ दुर्गा की ज्योत पर सुधरने झूठा प्रण लेता है, और हिन्दू समाज मान भी जाता है।

हिन्दू का प्रश्न :अपनी आधुनिक शिक्षा को तार्किक एवं अच्छा बताने के लिए आप वैदिक विज्ञानं को बिना किसी ठोस प्रमाण के कैसे झुठला सकते हैं। किसी आवश्यक कार्य के लिए जाते समय बिल्ली का अचानक मार्ग बाधित करना, यह एक प्राचीन मान्यता है। भारत में मान्यताएं दीर्घकालिक अवलोकन के बाद बनी है, किस दिन कौन सा रंग अधिक शुभ परिणाम देता है, किस महुर्त में कार्य अधिक स्थाई रूप से पूर्ण होता है, वर्ष के ऋतु काल परिवर्तन पर कब व्रत रहना चाहिए, पूर्णिमा आदि का क्या महत्व है इत्यादि। पुजारी की दक्षिणा उनका अधिकार है, जो श्रम पुजारी का पूजन विधान को पूर्ण करवाने में लगता है, उनको दक्षिणा देना यजमान का दायित्व है। पुजारी को क्यों सदैव एक लालची के रूप में प्रदर्शित करते हैं। हमारे ऊर्जा संगरक्षण एवं जाति व्यवस्था को भेदभाव बता कर कुछ भी अंट-शंट प्रसारित किया जाता है। भगवान के समक्ष लिए गए प्रण को इतनी नकारात्मकता से दिखाना की कोई भी झूठा अपराधी व्यक्ति समाज में स्वीकार्य हो जायेगा। “ग़ैर” हिन्दू पंथ में अनेक अमानवीय प्रथा है उस पर चुपी क्यों। ऐसे ही एक “ग़ैर” हिन्दू प्रथा है जिसमे “ग़ैर” हिन्दू दूसरे समुदाय के लोगो को भोजन में थूक कर भोजन परोसते हैं, उसे कभी क्यों सिनेमा में नहीं दिखते।

षड़यंत्र का उद्देश्य :हिन्दू अवचेतन मस्तिष्क में हिन्दू मूल्यों -परम्पराओं को नकारात्मकता से जोड़ना।

७. नाटी पिंकी की लम्बी लव स्ट्रोरी

दृश्यांकन:एक ब्राह्मण समाज का अध्यक्ष जो हर क्षण मर्यादा सम्मान की बात करता है। अपने परिवार की किसी भी स्त्री को अधिकार नहीं देता, यहाँ तक की अपनी माँ को भी नहीं, परिवार की स्त्रियों से अपेक्षा रखता की वो हमेशा एक प्रकार के बंधे हुए आचरण में ही जिये। अपनी बेटी का विवाह अपनी जाति के एक अवैध सम्बन्ध रखने वाले लालची परिवार के लड़के से करता है। अपनी बड़ी स्वर्गवासी बेटी को घर से निकल देता है, जब वो एक दूसरी जाति के मद्रासी लड़के से प्रेम विवाह कर लेती है, कभी नहीं अपनाता।

हिन्दू का प्रश्न :इसकी पृष्ठभूमि ब्राह्मण ही क्यों चुनी गयी। क्या सामाजिक सम्मान “ग़ैर” ब्राह्मण या “ग़ैर” हिन्दू समुदाय में प्रतिष्ठा विषय नहीं होता। मद्रास में ब्राह्मण नहीं होते है क्या। “ग़ैर” हिन्दू पंथ में जहाँ फ़ोन पर सन्देश से ही तलाक दे दिया जाता है , उस पर चुपी क्यों। यहाँ तक की बहु बेगम धारवाहिक में दो निकाह को भावुकता के आवरण से सिद्ध किया गया है।

षड़यंत्र का उद्देश्य : ब्राह्मण समाज को नकारात्मक रूप में दिखाना, उत्तर भारत – दक्षिण भारत में जाति के नाम पर द्वेष बढ़ाना, पितृसत्ता का भ्रम बनाना।

८.दिल जैसे धड़के धड़कने दो 

दृश्यांकन:एक नया स्वघोषित ईश्वर प्राप्ति को सज देवगुरु नामक चरित्र है, जो देवी को ढूंढ रहा है। उसे अपनी देवी एक छोटी बच्ची में मिलती है। वह देवी मंत्र का छाती पर गोदना बनाकर घूमता है,एक चालक स्त्री उसकी अनुययी है, जो दान का दुरूपयोग करती है, उसके अधिकतर अनुययी पढ़े लिखे उच्च पद के लोग हैं। देवगुरु मासिकस्त्राव वाली स्त्री को पारम्परिक नियमो को तोड़ने के लिए बढ़ावा देते है। एक मित्र उस देवगुरु को मानसिक बीमार मानता हैं। देवगुरु छोटी बच्ची को सन्यांसी देवी बनाने को आतुर है। छोटे बच्चों का एक जोड़ा ऐसे दर्शाया जा रहा है जैसे बचपन से प्रेम का अंकुर फूट रहा है।

हिन्दू का प्रश्न : देवगुरु का चरित्र सद्गुरु से मिलता जुलता ही क्यों लिया गया। हमारे तप साधना के नियम, अचार विहार आदि को इतने निम्न स्तर पर चालाकी से दिखाया गया, की ज्ञान के आभाव में दर्शक उन्हें ही सत्य मान ले। बालरूप में देवी बनाने की प्रथा जो अब समाप्त हो चुकी है उसे क्यों दिखाया जा रहा है, उस परंपरा के मूल सिद्धांत को समझे बिना ही। बच्चों के जोड़े में भाई बहन का प्रेम क्यों नहीं दिखया जा सकता, प्रेमप्रसंग ही क्यों दिखाना है। हिन्दू मंत्रों के उच्चारण का नियम तरीका होता है, उन्हें “पॉप” गीत की भांति क्यों बजाना है।

षड़यंत्र का उद्देश्य :हिन्दू संत गुरुजन को मानसिक बीमार दिखाना, चालक चोर या राजनीति करनेवाला बता कर, हिन्दू समाज में भ्रम बढ़ाना। भारतीय मूल्यों – परम्पराओं को उल्टा-सीधा प्रस्तुत कर उनका महत्व कम करना।

९. शुभारम्भ 

दृश्यांकन: हिन्दू गुजरती पृष्ठभूमि से एक निर्धन परिवार की लड़की एवं धनी परिवार के लड़के का विवाह होता है, धनी परिवार के मुखिया बहु को स्वीकार नहीं करते और अनेक चालें षड्यंत्र चलते हैं। एक दृश्य में विवाह को रोकने के लिए लड़की के फेहरे पहले एक बार कुत्ते से करने की परिस्थिति बनाई जाती है ताकि लड़की विवाह से स्वयं ही मना करदे,और अन्धविश्वास का खूब ज्ञान दिया जाता है। एक षड्यंत्र में लड़के पर पितृदोष बताया जाता है ताकि वो अपनी पैतृक दुकान पर काम नहीं कर सके और उसका अधिकार काम हो जाये। फिर उसी अंधविश्वास को तोड़ने की लिए लड़की का संघर्ष दिखाया जाता है। वैलेंटाइन डे पर खुलकर प्रेम दिवस मनाने का ज्ञान दिया जाता है।

हिन्दू का प्रश्न : ओडिशा व झारखंड के सीमावर्ती इलाकों में परंपरा है कि ऊपर के दांत पहले निकलने पर बच्चों की विवाह जानवरों या पेड़ो के साथ कराई जाती है। लोगों की मान्यता है कि ऐसा करने से बच्चा बीमारियों से दूर रहता है। हर वर्ष कुछ विशेष तिथियों पर यह अनोखा विवाह संपन्न कराया जाता है। कोल्हान विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की ओर से सामाजिक मनोविज्ञान के अंतर्गत अब इन परंपराओं व मान्यताओं को लेकर व्यापक अध्ययन किया जा रहा है।पहले तो जिस प्रकार से इसे तोड़ मोड़ कर दर्शाया गया है वह अत्यंत आपत्तिजनक है। नगरवासियों से अधिक वनवासी प्रकृति को समझते है, उनकी किसी भी प्रथा का इस प्रकार प्रमाण के आभाव में उपहास बनाना, छोटा समझना सही नहीं है। ठीक इसी प्रकार पितृदोष का उपहास बनाया, तोह मोड़ कर प्रस्तुत क्यों किया। परन्तु अर्थहीन एवं व्यापारिक षड़यंत्र प्रेषित वैलेंटाइन डे को प्रोत्साहित क्यों किया।

षड़यंत्र का उद्देश्य :भारतीय परम्पराओं को निरर्थक बनाकर इनके प्रति भ्रम बढ़ाना, परन्तु “ग़ैर हिन्दू” प्रथा के बाज़ारवाद को बढ़ावा देना।

१० पवित्र भाग्य 

दृश्यांकन:हिन्दू पृष्ठभूमि पर किशोर आयु में विवाह पूर्व शारीरिक संबंधों को दर्शाया है। बाद में वही बच्चा युवाअवस्था में नायक नायिका के मिलन का कारक बनेगा। लड़का पंजाबी जाति से है, उसकी दादी मदिरापान की आदि दिखाई है। कहानी को भावुकता की उढेड़बुन ऐसा बनाया है की विवाह पूर्व शारीरिक संबंधों में कुछ अनुचित महसूस नहीं होता, मात्र एक भूल प्रतीत होगी।

हिन्दू का प्रश्न : ग़ैर हिन्दू पृष्ठभूमि पर दिखने में क्यों नहीं चुना गया। क्या पंजाबी दादी चरित्र की पहचान के साथ मदिरा जोड़ना अति आवश्यक है।

षड़यंत्र का उद्देश्य :हिन्दू युवा के मस्तिष्क में विवाह पूर्व शारीरिक संबंधों को सामान्य बना देना, हिन्दू मूल्यों पर प्रहार।

११. बैरिस्टर बाबू 

दृश्यांकन: अंग्रेजों के दासता काल की पृष्ठभूमि है, ब्रिटैन से कानून(अंग्रेजी न्याय शास्त्र) की पढ़ाई करके एक भारतीय युवा स्वदेश लौटता है, एवं बाल विवाह के विरोध में आवाज उठता है। परिस्थिति वश एक बालिका से उसे ही विवाह करना पड़ता है, बाद में वो उसे “बैरिस्टर” बनाने के लिए संघर्ष करता है। इसमें अंग्रेजो को अत्यंत अच्छा एवं प्रगतिशील दिखया है। एक दृश्य में एक अंग्रेज जो स्वयं स्त्री के साथ अभद्रता करता है, नायक को भारत में बाल विवाह के बारे में खरी खोटी सुनता है और नायक अपराधी की भांति सुनता है। एक दृश्य में अंग्रेज पुलिस से बाल विवाह रोकने के लिए  नायक प्रार्थना करता है, अंग्रेज पुलिस भी आज की पुलिस की भांति रोकने का प्रयास करती हैं। बाल विवाह में ६०-७० वर्ष के बूढ़े के साथ ११-१२ आयु की बच्ची का बाल विवाह दर्शाया जाता है। 

हिन्दू का प्रश्न : दासता काल में उत्त्पन, हिन्दू अपनी प्रसन्नता से बाल विवाह नहीं करते थे। जब हिन्दू कन्याओं को “ग़ैर” हिन्दू एवं अंग्रेज आक्रांता अपहरण कर ले जाते थे, देह व्यापर की मंडी लगते थे, इसीलिए विवश होकर हिन्दू में बाल विवाह का प्रचलन हुआ, जो की समाप्ति पर है। बालविवाह में वर वधु दोनों ही बालक आयु के होते थे।”ग़ैर” हिन्दू पंथ विशेष में आज भी बहुतया में ऐसे बाल विवाह प्रचलन में है, जहाँ एक ७० वर्ष के बूढ़े से ११ वर्ष की बच्ची का निकाह किया जाता है, उसे क्यों नहीं दिखाया जाता। “ग़ैर” हिन्दू पंथ की विशेष प्रथा को हिन्दू आवरण में क्यों प्रस्तुत किया जा रहा है।

षड़यंत्र का उद्देश्य :हिन्दू को पिछड़ा हुआ सिद्ध करना,अंग्रेजो को अच्छा बताना। हिन्दू समाज में भ्रम बनाना।

१२. कुर्बान हुआ 

दृश्यांकन:हिन्दू लड़का – “ग़ैर” हिन्दू लड़की के प्रेम की पृष्ठभूमि है। नायक के पिता हिन्दू समाज में सम्मानीय व्यास पुरोहित है, नायिका के पिता चिकित्सक है। वैदिक विज्ञान पर आधारित जन्मपत्रिका को अन्धविश्वास के रूप में प्रस्तुत करना, हिन्दू मन्त्रों को गलत रूप में प्रस्तुत करना है। परन्तु “ग़ैर हिन्दू- नायिका” का एक सजावटी घंटी से ऐसे बात करना जैसे उसकी माँ उससे बात कर रही हो इसमें कोई अन्धविश्वास नहीं लगता है, वो भावुक लगाव है। अंतरपंथीय अंतर्जातीय विवाह को प्रगतिशील प्रस्तुत करना, व्यास पुरोहित को रूढ़िवादी पिछड़ा प्रस्तुत करना। हिन्दू अनुयायी को व्यभिचारी दर्शाना, हिन्दू समाज को आक्रांता दंगाई प्रस्तुत करना।

हिन्दू का प्रश्न : हिन्दू समाज को ही क्यों नकारातमक रूप में दर्शाया जा रहा है। अतार्किक, झूठा षड्यंत्र क्यों किया जा रहा है हिन्दू समाज के प्रति। कितने ही हिन्दू लड़कों की हत्या “ग़ैर-हिन्दुओं” द्वारा मात्र इसीलिए की गयी ,क्योकि उन्होंने “ग़ैर” हिन्दू लड़की से विवाह किया, उसे क्यों नहीं दर्शाया गया। हिन्दू समाज में अंतरपंथीय – अंतर्जातीय विवाह पर निषेद्याज्ञा है । किन्तु तोड़ मोड़ कर हिन्दू समाज में अंतरपंथीय अंतर्जातीय विवाह को क्यों षड्यंत्र के साथ प्रचारित एवं प्रचलित किया जा रहा है।

षड़यंत्र का उद्देश्य :हिन्दू समाज के मूल्यों को छिन्न भिन्न करने के लिए, हिन्दू समाज में लव जिहाद को बढ़ावा देने के लिए, हिन्दू समाज की छवि को नकारात्मक दिखने के लिए ये सोचा समझा षड्यंत्र है।

ये सभी उदाहरण है, की किस प्रकार सनातनी समाज की चेतना पर घात हो रहा है। अब प्रश्न है कि, हिन्दू समाज कैसे इस थोपे गए मानसिक युद्ध का सामना करे, प्रतिकार करे। यह अत्यंत आवश्यक है,क्योकि हमारे हिन्दू समाज के एक अत्यंत छोटे धड़े में हिन्दू विरोधी रोग के लक्षण स्पष्ट दिखाई देने लगे है। नासूर बने इससे पूर्व ही समय पर चिकित्सा अत्यंत आवश्यक है।

संभव उपाय के लिए कुछ सुझाव

१. सिनेमा निर्माण के प्रत्येक स्तर (कहानी लेखन, दृश्यांकन, वितरण, प्रस्तुति आदि) पर “सनातनी नियम धर्म के ज्ञाता समिति का सहमति पूर्ण आज्ञा पत्र” आवश्यक किया जाये।

२. सनातनी नियम धर्म के ज्ञाता समिति के अंतरिम अध्यक्ष संत सभा से हो।

३. सिनेमा निर्मित कोई भी कृति जिसमे हिन्दू धर्म से जुड़ा कोई भी दर्शय हो, उसका हिन्दू धर्म आज्ञा प्रमाण पत्र के आभाव में देशभर में प्रदर्शन निषेध हो।

४. प्रत्येक सनातनी सज हो धर्म रक्षा के प्रति, हिन्दू समाज के प्रति अधार्मिक आचरण का संज्ञान प्रत्येक सनातनी ले। तत्वरित संगरक्षण के लिए, यदि किसी भी हिन्दू को सिनेमा में जो भी अधार्मिक आचरण लगे तो तत्वरित कार्यवाही करे। इसके लिए इंडियन ब्राडकास्टिंग फाउंडेशन में तत्काल शिकायत दे। click on link https://www.ibfindia.com/complaint-form

५. आवश्यकता लगे तो न्याय पालिका भी जाये, वैसे तो अनेक संस्थांएँ हैं,यह एक संस्था भी हिन्दू के प्रति भी कार्य करती है। click on linkhttps://lawinforce.org/

६. हर प्रकार के सोशल मीडिया पर हिन्दू समाज के प्रति हो रहे सिनेमा द्वारा अनादर का विषय बढ़चढ़ कर उठाये, बहिष्कार आंदोलन चलायें। सिनेमा को हिन्दू समाज के प्रति आदर रखना हो होगा।

७. हिन्दू चिन्हों, परम्पराओं, नियमों का अनादर कदापि स्वीकार्य नहीं करे, कोई भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आधार पर हिन्दू समाज की पहचान के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता। यह सुनिश्चित करना हिन्दू समाज का परम कर्त्तव्य है।

८. दृश्यांकन व्यक्ति विशेष के निजी विचारों से प्रभवित हुए बिना नहीं रह सकता, हिन्दू समाज के दृश्यांकन में “ग़ैर- हिन्दू” की, किसी भी प्रकार की भागीदारी पूर्णतः निषेध होनी ही चाहिए।

९. संत सभा सिनेमा जगत के निर्देशकों का २ वर्ष का हिन्दू परंपरा में अनुशासित अनुभव सुनिश्चित करने का मार्ग निकले एवं १ वर्ष का अतिरिक्त हिन्दू धर्म विषय से सम्बंधित अध्ययन एवं स्वयं का लिखा शोध पत्र अनिवार्य किया जाये, जिसे केवल स्वयं शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार प्रमुख हिन्दू मठ से ही अवलोकन के बाद प्रमाण पत्र प्राप्त हो। यह प्रक्रिया अनिवार्य योग्यता होनी ही चाहिए किसी भी निर्देशक के लिए सिनेमा निर्माण से पूर्व। कोई भी producer निर्देशक को हिन्दू विषय पर सिनेमा बनाने के लिए तभी धन राशि दे, जब यह योग्यता हो।

१०. किसी भी इतिहास की घटना पर सिनेमा निर्माण प्रमाणविषयक (documentary format) के रूप में ही किया जाना अनिवार्य हो । जिससे जो जैसा घटित हुआ वैसा ही दिखाया जाए , कला की अभिव्यक्ति के आधार पर तथ्यों से अनावशयक छेड़छाड़ संभव ही ना हो।

जागो हिन्दू जागो 
घात का प्रतिकार करो

हर हर महादेव
।। चैतन्य हिन्दू ।।

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