स्वामी अग्निवेश अब इस दुनिया में नहीं हैं, मगर उनके जाने के बाद बाकी हैं तो उनके वो कृत्य जो भारतमाता के अस्तित्व पर करारे दर्द की तरह मौजूद रहेंगे। स्वामी अग्निवेश जीवनभर भगवा चोला ओढ़कर सनातन धर्म की नींव में जिहाद-माओवाद का मट्ठा डालते रहे और उसे ही मथते ही रहे। अग्निवेश की नज़र की काबिलियत ये थी कि उन्हें सनातन की मूर्ति पूजा, प्राण प्रतिष्ठा, राम-कृष्ण पूजा में तमाम कमियां नज़र आती थीं मगर कभी इस्लामी और माओवादी मंचों पर उन्हें उनकी कमियां नजर नहीं आईं। अग्निवेश ने न सिर्फ एक सामाजिक कार्यकर्ता बनकर अपना मजाक उड़ावाया बल्कि हिंदू विरोधी सेक्युलर चेहरा बनने की कोशिश में हमारे आराध्य तक का अपमान किया।
2011 में हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाते हुए अग्निवेश ने कहा था कि अमरनाथ यात्रा धर्म के नाम पर एक धोखा है और तब देश की सर्वोच्च अदालत ने अग्निवेश की इस टिप्पणी पर उन्हें कड़ी फटकार लगाई थी। इसके अलावा अग्निवेश ने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पशुपतिनाथ मन्दिर में की गई पूजा अर्चना को भी गलत बताया गया था, अग्निवेश ने इसे संविधान की आत्मा के खिलाफ बताया था जबकि इससे पहले के तमाम प्रधानमंत्री रोज़ा इफ्तार किया करते थे तब अग्निवेश जैसों की जुबान से एक शब्द नहीं निकला था। अग्निवेश अक्सर इस्लामी मंचों पर ‘ला इलाह इल्लाह’ कहते पाए जाते थे और रसूल मुहम्मद साहब की तारीफ में कसीदे पढ़ते थे तो दूसरी तरफ राम-कृष्ण का मजका बनाया करते थे।
नक्सलवादियों के नवाब बनने के चक्कर में अग्निवेश अक्सर नक्सली नेताओं की हिमायत करते नज़र आते थे। अग्निवेश ने मोस्ट वांटेड नक्सली नेता राजकुमार उर्फ आजाद की मुठभेड़ को फर्जी करार दिया था और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से नक्सलियों से शांति वार्ता करने को कहा था। ‘लेकर रहेंगे आज़ादी’ और ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ वाले गैंग जब भी कोई प्रोग्राम करते थे तो अग्निवेश अक्सर उनके मंच पर नजर आते थे। कश्मीरी पंडितों को जब कश्मीर में टाउनशिप देने की बात कही गई तो अग्निवेश अलगाववादियों के साथ मंच साझा करते हुए इसका विरोध करने चला गया। जाहिर है अग्निवेश के किस्से कहानियां इतने कसैले हैं कि उनमें देश विरोधी जहर कूट कूट कर भरा है।
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