‘ धर्म ‘ शब्द का ‘ Religion ‘ शब्द में अनुवाद के विषय में भूमिका –

जब किसी एक भाषा के किसी शब्द को दूसरी किसी भाषा के शब्द में अनुवाद करना होतो यह जरूरी है की दोनों के शब्द का समान या बहुत नजदीकी अर्थ होता हो. यह आवश्यक है क्योकि किसी भाषा का शब्द सिर्फ कुछ वर्णों का समूह मात्र नहीं होता अपितु उसके साथ उसका  पूरा इतिहास एवं अर्थभी संलग्न होता है जो अनुवाद के समय बने रहना चाहिए. वर्ना समय के साथ एक गलत अनुवाद से उस शब्द का इतिहास लुप्त होने लगता है. वर्तमान समय में यही ‘ धर्म ‘ शब्द के साथ होता प्रतित हो रहा है. प्राय: लोग ‘ धर्म ’ का अंग्रेजी में अनुवाद ‘ Religion ‘करते है. इसलिए हमें यहा प्रथम ‘ Religion ‘शब्द पर चिंतन करना चाहिए. उसके बाद ‘ धर्म ‘ शब्द पर चिंतन करेंगे. जिससे यह स्पष्ट हो जायेंगा की ‘ धर्म ‘ शब्द ‘ Religion ‘ से बहुत भिन्न होता है.

‘ Religion ‘ शब्द के विविध अर्थ –

जब हम किसी सामान्य English – Hindi शब्दकोष में देखेंगे  तो हमें उसमे ‘ Religion ‘ शब्द का अर्थ सीधा ही ‘ धर्म ’ अर्थ दिखलाई देंगा. इससे अच्छे शब्दकोष में ‘ God में विश्वास या श्रद्धा पूंजा करना ‘ ‘ समान तौर-तरीके वाले लोगो का समुदाय ‘ ‘ किसी व्यक्ति के विचारों का अनुसरन करना ‘ ‘ God को खुश करना ‘ ‘ जीने का तरीका ‘ आदि और इनके जैसे अर्थ वाले बहुत से अर्थ हमें प्राप्त होते है. यही अर्थ वर्तमान में प्रचलित है और जब हम ‘ धर्म ‘ शब्द सुनते , पढ़ते या देखते है तो ‘ Religion ‘ शब्द के ये जो अर्थ है उसी हिसाब से हम धर्म को समजते या देखते है. तो यह तो बात हुई Religion शब्द की. अब बात कर लेते है ‘ धर्म ‘ शब्द की.

‘ धर्म ‘ शब्द की व्याख्या –

हम यहाँ पर ‘ धर्म ‘ शब्द की जो भी व्याख्या करेंगे उसको पाठक लोग ‘ Religion ‘ शब्द की व्याख्या से तुलनात्मक अध्यन करते जाए.

हिन्दू सभ्यता में ‘ धर्म ‘ शब्द बहुत ही व्यापक रुपोमे उपयोगमे लिया जाता रहा है. जैसे की वर्णाश्रमधर्म, मानवधर्म, राजधर्म इत्यादि . इससे हमें धर्म का सामान्य अर्थ ज्ञात होता है की ‘ विविध परिस्थितिया या सन्दर्भ में यह चीजे करनी चाहिए ‘. इन सबका चिंतन यहाँ पर असंभव है. यहा पर हम मुख्य सन्दर्भ जो हमारे शास्त्रों में वर्णित है उसी पर प्रकाश करेंगे जो की धर्म की वास्तविक व्याख्या करते है और जो आधुनिक ‘ Religion ‘ शब्द की व्याख्या को लागू करने से लुप्त हो रही है.

  • पंचतंत्र में कहा है की –

श्रूयतां धर्म-सर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्॥ ३-१०४

भावार्थ – धर्म का सार सुनो और इनका अनुसरन करो – जो व्यवहार स्वयं को पसंद नहीं हो उसको दुसरो के साथ नहीं करना चाहिए.

संक्षेपात् कथ्यते धर्मो जनाः किं विस्तरेण वः।
परोपकारः पुण्याय पापाय पर-पीडनम्॥ ३-१०३

भावार्थ –धर्म को विस्तार से कहने की आवश्यकता नहीं है, इसे संक्षेप में सुनो – परोपकार करना पुण्य दायक होता है, दुसरो को कष्ट देना पाप होता है. इसलिए दुसरो को कष्ट दिए बिना परोपकार में रत रहना चाहिए.

  • तुलसीदास भी रामचरितमानस में इसीकी पुष्टि करते है –

‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई, पर पीडा सम नहिं अधमाई’

  • महाभारत में कहा है की –

अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा।
अनुग्रहश्च दानं च सतां धर्मः सनातनः।। १२-१६०-२१

भावार्थ – मन वाणी और अपने कर्म से किसीभी प्राणी का द्रोह नही करना एवं दया और दान यह श्रेष्ठ पुरुष के सनातन धर्म है.

  • मनु ने धर्म के दस लक्षण गिनाए हैं –

धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:।

धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌।।

भावार्थ –  धृति (धैर्य ), क्षमा (अपना अपकार करने वाले का भी उपकार करना ), दम (हमेशा संयम से धर्म में लगे रहना ), अस्तेय (चोरी न करना ), शौच ( भीतर और बाहर की पवित्रता ), इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों को हमेशा धर्माचरण में लगाना ), धी ( सत्कर्मों से बुद्धि को बढ़ाना ), विद्या (यथार्थ ज्ञान लेना ). सत्यम ( हमेशा सत्य का आचरण करना ) और अक्रोध ( क्रोध को छोड़कर हमेशा शांत रहना ). यह धर्म के लक्षण है.

  • याज्ञवल्क्य ने धर्म के नौ लक्षण गिनाए हैं –

अहिंसा सत्‍यमस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:।

दानं दमो दया शान्‍ति: सर्वेषां धर्मसाधनम्‌।। (याज्ञवल्क्य स्मृति १.१२२)

भावार्थ – अहिंसा, सत्य, चोरी न करना (अस्तेय), शौच (स्वच्छता), इन्द्रिय-निग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना), दान, संयम (दम), दया एवं शान्ति यह धर्म के साधन है.

यहाँ पर इतने से ही संतोष करेंगे . वास्तव में सूचि बहुत लम्बी है. स्पष्ट है की धर्म और Religion में बहुत अंतर है. धर्म को Religion कहने से धर्म शब्द अपना तेज , उत्कृष्टता खो देता है. इसलिए विद्वानो को धर्म को Religion न कहकर किसीभी भाषामे मूल शब्द ’ धर्म ‘ का ही उपयोग करना चाहिए.

लेख का निष्कर्ष –

यहा पर हमने Religion और धर्म का अंतर स्पष्ट किया और यह जाना की धर्म शब्द को Religion कहना उचित नहीं है. एक तरीके से धर्म एक आदर्श व्यवस्था है. अब आप स्वयं विचार करे की हम जब इस्लाम, इसाई , आदि को जब धर्म कहते है तो क्या वह धर्म की व्याख्या के साथ सुसंगत बैठते है? प्राय: भारत में लोग हिंदी में कहते है की धर्म की वजह से दुनिया में आतंकवाद है, अंधश्रद्धा है ,अज्ञान है, हिंसा है आदि आदि, क्योकि इन लोगो को धर्म किसे कहते है यह पता ही नहीं होता. धर्म की व्याख्या के हिसाब से इन लोगो को हिंसा, आतंकवाद, अज्ञान, अन्धश्रद्धा आदि समस्याओ के लिए ‘ अधर्म ‘ शब्द का उपयोग करना चाहिए. या मजहब, मत, Religion का भी करे पर ‘ धर्म ‘ का उपयोग  करना उनकी अज्ञानता ही है.

निवेदन – इस लेख को ज्यादे से ज्यादा लोगो तक पहुचाये. कोपी पेस्ट करे. शेर करे. बस यही पाठकगण से विनती है.

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.