जिनके निधन पर चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि, “आज मेरा दायाँ हाथ कट गया है”
भगतसिंह ने भी इनके बलिदान के लिए कहा कि, “हमारे तुच्छ बलिदान उस श्रृंखला की कड़ी मात्र होंगे, जिसका सौंदर्य भगवतीचरण वोहरा के आत्मत्याग से निखर उठा है”
Forgotten Indian Freedom Fighters लेख की ग्यारहवीं कड़ी में हम आज उन्हीं वीर क्रांतिकारी भगवतीचरण वोहरा के बारे में पढ़ेंगे जो ना कभी पुलिस के हाथों पकड़े गए और ना ही कभी कोई अदालती सजा उन्हें मिली।

भगवतीचरण वोहरा का जन्म 04 जुलाई 1904 को हुआ था। इनके पिता आगरा में एक रेलवे अधिकारी थे, जो कि बाद में लाहौर बस गए।
लाहौर कॉलेज में अध्ययन के दौरान ही वोहरा की मुलाकात भगतसिंह एवं सुखदेव से हुई।
वोहरा ने वहाँ ‘नौजवान भारत सभा’ संगठन का गठन किया जिसके महासचिव बने भगतसिंह एवं प्रचार प्रमुख बने स्वयं भगवतीचरण वोहरा।

वोहरा अपने साथियों के बीच ‘भाई’ के रूप में प्रसिद्ध थे और एक समय उन्होंने अपने कालेज के अध्यापक एवं साथी जयचंद्र विद्यालंकार का, जो खुद भी क्रांतिकारियों की सभा से जुड़े हुए थे, यह आरोप भी झेला कि वे सीआईडी के आदमी हैं और उससे वेतन पाते है। लेकिन उन्होंने यह कहकर इसका कोई जवाब नहीं दिया कि, “मेरा काम जो उचित लगे, उसे करते जाना है, सफाई देना और नाम कमाना नही”
उन दिनों वोहरा के पास लाहौर में तीन-तीन मकान, लाखों की सम्पत्ति और हजारों का बैंक बैलेंस था, लेकिन उन्होंने विलासिता को ठुकराकर आजादी के लिए नाना कठिनाइयों वाला क्रांतिकारी रास्ता चुना।

जब वो 14 वर्ष के थे तब सन 1918 में उनका विवाह 11 वर्ष की दुर्गावती से हो गया, जो बाद में आज़ादी की प्रमुख क्रांतिकारी “दुर्गा भाभी” के रूप में पहचानी गयी।
जहाँ अभी भगवतीचरण की शिक्षा-दीक्षा पूरी भी नहीं हुई थी कि गांधी ने असहयोग आंदोलन की घोषणा कर दी और वे उसमें कूद पड़े।

गांधी के द्वारा असहयोग आंदोलन की वापसी के कारण वोहरा वापिस अपने संगठन नौजवान भारत सभा में सक्रिय हो गए। इसी बीच रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ तथा कुछ अन्य लोगों की शहादत के बाद जब हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के प्रधान सेनापति चंद्रशेखर ‘आजाद’ ने अपनी सेना का पुनर्गठन कर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन बनाया, तब उसमें पंजाब से शामिल होने वालों में भगवतीचरण वोहरा, भगतसिंह एवं सुखदेव प्रमुख थे।

ऐसा कहा जाता है कि यदि वोहरा की दो बड़ी कार्रवाइयां विफल नहीं हो जातीं तो हमारे स्वतंत्रता संघर्ष का इतिहास कुछ और होता।
इनमें से एक 23 दिसंबर 1929 को दिल्ली-आगरा रेललाइन पर वायसराय लार्ड इरविन की स्पेशल ट्रेन उड़ाने की कार्रवाई थी, जिसकी उन्होंने कई महीने भर जमकर तैयारी की थी।
उन्हें ट्रेन के नीचे बम का विस्फोट कराने में सफलता भी मिली थी। विस्फोट से ट्रेन का खाना बनाने व खाने वाला डिब्बा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया और एक व्यक्ति की मौत हो गई थी, लेकिन वायसराय बाल-बाल बच गया था।
इस कार्रवाई के बाद तथाकथित अहिंसक गांधी ने ईश्वर को धन्यवाद देते हुए ‘यंग इंडिया’ में ‘बम की पूजा’ शीर्षक लेख लिखकर क्रांतिकारियों को कोसा था। इसके जवाब में वोहरा ने चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह से सलाह करके ‘बम का दर्शन’ या ‘ फिलॉसफी ऑफ बम’ लिखा, जो आम लोगों में खासा लोकप्रिय हुआ।

28 मई 1930 को उनकी दूसरी योजना के मुताबिक भगतसिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को जेल से छुड़ाने की योजना थी।
योजना इस प्रकार थी कि उक्त तीनों क्रांतिकारियों को लाहौर जेल से न्यायालय ले जाते समय अचानक धावा बोलकर छुड़ा लिया जाए। चूंकि उन्हें कड़ी सुरक्षा के बीच रखा जाता था, इसलिए इस धावे के लिए अपेक्षाकृत बेहतर तकनीक वाले और ज्यादा शक्तिशाली बमों की आवश्यकता महसूस की गई।

वोहरा बम बनाने में सिद्धहस्त थे और लाहौर में उन्होंने ऐसे नए बम बना भी लिए थे, लेकिन कहीं बम ऐन मौके पर दगा न दे जायें, इसलिए वे चाहते थे कि कम से कम एक बार उनका परीक्षण कर लिया जाए। इस परीक्षण के लिए उन्होंने रावी नदी का तट चुना लेकिन दुर्भाग्यवश बम के परीक्षण के दौरान वे बुरी तरह घायल हुए और उनकी जान चली गयी।

मौत को कुछ ही पलों के फासले पर खड़ी देखकर भी वे विचलित नहीं हुए और साथियों से दो खास बातें कहीं,
पहली – ये नामुराद मौत दो दिन टल जाती तो इसका क्या बिगड़ जाता? उनका मतलब था कि तब वे भगत, सुखदेव व राजगुरु को छुड़ा लेते।
दूसरी – अच्छा हुआ कि जो कुछ भी हुआ, मुझे हुआ. किसी और साथी को होता तो मैं भैया यानी ‘आजाद’ को क्या जवाब देता?

ऐसे थे महान क्रांतिकारी भगवतीचरण वोहरा जो भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के एक अप्रतिम नक्षत्र थे जिनका अनूठापन इस बात में है कि काकोरी कांड से लेकर लाहौर षड्यंत्र केस में नाम आने पर भी वो हमेशा स्वतंत्र रहे।
भारत माँ के वीर सपूत भगवतीचरण वोहरा को शत् शत् नमन।
जय हिंद
????

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.