संस्कारों के हनन की गाथा अब इस 21वीं सदी में लिखने जा रही है जिसके हम सब होंगे और हमारी आंखों के सामने डिजिटल युग में भावी पीढ़ी को खड्डे में जाता देख रहे है और मजबुर इतने है कि हम चाहकर भी बचा नहीं पा रहे है ये डिजिटल दुर्दशा ही तो है आज के दौर की…
आज से हफ्ते भर पहले टिकटॉक के सबसे बड़े स्टार फैज़ल सिद्दीकी का वीडियो ट्विटर पर वायरल हो जाता है। वीडियो में फैज़ल अपनी बेवफ़ा सनम के मुंह के ऊपर कुछ ऐसा फेकतें हैं कि लड़की का मुँह एसिड अटैक से झुलसी लड़की जैसा हो जाता है।

इस वीडियो को देखते ही डीजिटल भूचाल आ जाता है।राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा एक्शन में आ जाती हैं। #Bantiktok वर्ल्ड वाइड ट्रेंड करनें लगता है। फलस्वरूप दुनिया में सबसे ज़्यादा tiktok यूज करने वाले देश भारत में इस एप की रेटिंग गिर जाती है। दवाब में आकर टिकटॉक फैज़ल का एकाउंट डीलिट कर देता है और पहली बार अपने कंटेंट के लिए स्ट्रिक्ट “टर्म्स एंड कंडीशन्स” जारी करता है। जिसको पढ़कर लिप्सटिक लगा रहे टिकटाकर बौखला जातें हैं..”हमारे फैजू भइया को काहें हटाए बे ?”
यहां तक कि कोरोनॉ को “काफ़िरों के नाम कहर” बताने और “सोशल डिस्टेंसिंग” का मजाक उड़ाने वाले टिकटाकरों का खून उबलने लगता है।जो लड़के,लड़की बनकर हर वीडियो में कमर हिलाते रहतें हैं,उनकी भुजाएँ फड़कनें लगती हैं।जो गार्जियन ख़ुद अपने छोटे-छोटे लड़के-लड़कियों से इसी तरह के वाहियात वीडियो बनवातें हैं,वो अपने हीरो की दुर्दशा पर दुःखी होने लगतें हैं।
अब रुक जाइये। एक और घटना मई के पहले हफ़्ते की है।दिल्ली के एक अत्याधुनिक स्कूल में पढ़ने वाले चौदह साल के कुछ बच्चे इंस्टाग्राम पर एक ग्रुप बनातें हैं। नाम रखतें हैं,”ब्वॉयज लॉकर रूम!”
उस लॉकर रूम में तमाम लड़कियों के न्यूड फ़ोटो की रेटिंग जाती है। उनकी बनावट के ऊपर अश्लील और भद्दे कमेंट किये जातें हैं।

एक दिन उसी ग्रुप का सदस्य अपनी परिचित लड़की का फ़ोटो देख लेता है। उसे शॉक लगता है और वो स्क्रीन शॉट कहीं शेयर कर देता है।
देखते ही देखते स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया पर वायरल हो जाता है।न्यूज़ चैनल में ब्रेकिंग न्यूज़ आने लगता है। लड़कों को जेल भेजने के तमाम फ़ैसले सुनाए जानें लगतें हैं।
स्वाति मालिवाल से लेकर तमाम बड़े लोगों से इन लड़कों के ऊपर करवाई करने का फ़तवा जारी होने लगता है। मामला साइबर सेल में चला जाता है।
इधर ब्वॉयज लॉकर रूम की घटना का मनोवैज्ञानिक असर इतना ख़राब होता है कि गुड़गांव के एक स्कूल में पढ़ने वाले एक लड़के को एक लड़की धमकी देती है कि अगर वो नहीं सुधरा तो उसका भी स्क्रीन शॉट शेयर हो जाएगा।
लड़का डरके मारे आत्महत्या कर लेता है।
इधर साइबर सेल द्वारा की गई ब्वॉयज लॉकर रूम की जाँच में जो सच आता है उसे सुनकर सबके होश उड़ जातें हैं।लोगों को विश्वास नहीं होता कि उसी ग्रुप में लड़कों के साथ पढ़ने वाली एक लड़की “सिद्धार्थ” नामक फेक आईडी से लड़कियों के बलात्कार का प्लान रच रही थी।
दोस्तों, अब आप कहेंगे कि ये सब मैं क्यों बता रहा हूँ। आपने तो इसे सुना ही था।
मैं भी जानता हूँ कि आप जानते होंगे लेकिन ये भी जानता हूँ कि दुर्भाग्य से आपने इसे बड़े हल्के में ले लिया..बिल्कुल किसी प्राइम,नेटफ्लिक्स के वेबसीरिज की कहानी की तरह।लेकिन ये कहानी जैसी घटना नहीं है बल्कि डीजिटल बारूद पर खड़े हमारे सभ्य समाज की कड़वी सच्चाई है, जिसके धुएं से हमारे बच्चे लहूलुहान हो गए हैं।
और हमें इसका पता ही नहीं चल पाया कि हमने लाइक कमेंट,व्यूज के चक्कर में क्या खो दिया है। एक ऐसा अदृश्य संसार निर्मित कर दिया है जिसकी भयावहता हमें अब डरा रही है।और इसके दोषी किसी दूसरे ग्रह के लोग नहीं, हम ही हैं।आज अगर आप-हम मूल्य,संवेदना के बीज डालने की उम्र में लड़कों के भीतर सस्ती लोकप्रियता का ज़हर डाल रहें हैं तो लड़के फ़ैज़ल सिद्दीकी को फॉलो करके ब्वॉयज लॉकर रूम का सदस्य बन जाएं तो…
आश्चर्य कैसा ?
टीवी, सिनेमा तो हम झेल ही रहे थे। आज ott प्लेटफॉर्म वेबसीरिज के माध्यम से बेहिसाब गाली,सेक्स,और हिंसा फैला रहे हैं तो 15 साल के बच्चे इंस्टाग्राम बलात्कार का प्लान रच दिए तो इसमें क्या आश्चर्य?
ये तो वही फल है, जिसका हम वृक्ष सींच रहें थे।आने वाला समय और खतरनाक होने वाला है।आने वाले समय में अगर आप गार्जियन हैं,तो आपके लिए दोहरी चुनौती साबित होने जा रही है। क्योंकि अब हम ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम में प्रवेश करने जा रहें हैं। आज मोबाइल और इंटरनेट सांस लेने से ज़्यादा ज़रूरी होने जा रहा है।ऑनलाइन शिक्षा प्राइमरी के बच्चों के हाथों तक मोबाइल देने वाला है।

और दुर्योग से अब हमनें ऐसी दुनिया बना दी है कि बच्चे बाहर जाकर खेल नहीं सकतें हैं..उनको पब्जी खेलवा के उलझाए रखना आपकी मजबूरी बनती जा रही है।
यही कारण है कि इस विकट दौर में मासूमियत और संवेदना कैसे बचेगी ये सबसे बड़ी चुनौती है।
चुनौती है कि बच्चे को ऑनलाइन पढ़ाना भी है और ज़रूरत से ज़्यादा आनलाइन रहने से बचाना भी है।वरना उसका समग्र विकास रुक जाएगा।
वो टिकटाक पर फ़र्जी लिप सिंक करके भले स्टार बन जाए लेकिन एक न एक दिन इस डीजिटल दुनिया की मारकाट से रूग्ण हो जाएंगे।
इसलिए कुछ ऐसा सिस्टम विकसित करना पड़ेगा,ताकि बच्चे का डीजिटल नहीं मैनुअल विकास हो सके। उसे पता चले कि बेटा ये उम्र वीडियो बनाने की नहीं बल्कि ये तो संगीत,साहित्य, कला के संस्कार विकसित करने की है।और ये संस्कार पन्द्रह सेकेंड के वीडियो जितना आसान नहीं है।तुम्हारी उम्र गानों पर लिप सिंक करने की नहीं है ये तो राग यमन और भैरवी में क्या अंतर है.. क्या होता है ताल रूपक और ताल दीपचंदी..ये जानने की उम्र है।ये उम्र फ़ैज़ल सिद्दीकी को फॉलो करने की नहीं है..ये उम्र उस संस्कार को डालने की है ताकि आगे चलकर तुम ज़ाकिर हुसैन और उस्ताद राशिद खान को फॉलो कर सको।
ये उम्र है एक कविता याद करने की..जो कभी जीवन के अंधेरे में रौशनी कर सके। ये उम्र है अपनी मातृभाषा का कोई अच्छा गीत गाने की..दो चार लोक कथाएं याद रखने की।क्योंकि कथाएं ही हैं जो बच्चों पर क्रांतिकारी असर डालती हैं।
यहां जीजाबाईयों ने बेटे को गोद में कहानियां सुना सुनाकर कब शिवाजी बना दिया पता न चला। यहीं महिलारोप्य के राजा अमरशक्ति की कथा आती है।
कभी वे भी अपने मूर्ख पुत्रों के रुके बौद्धिक विकास से चिंतित थे।उन्होंने विष्णुशर्मा नामक विद्वान् की शरण लिया। आचार्य विष्णुशर्मा ने छः मास में कथाओं के माध्यम से सुशिक्षित करने का बीड़ा उठाया। कालांतर में बच्चे बुद्धिमान और तेजस्वी हुए।आज वही कहानियां “पंचतंत्र की कथाएँ” कहीं जातीं हैं। जिनका अनुवाद दुनिया की हर भाषा में हुआ है।

ये कथा की ताकत है.. जो टिकटटॉक और कोई भी एप किसी जन्म में पैदा नहीं कर सकता है।जानने की ज़रूरत है कि हम कविता कागज पर नही लिखतें.बल्कि संवेदना की स्लेट पर उकेरतें हैं।
हम एक राग गातें हैं..तो दरअसल हम ध्यान करने बैठे होते हैं। हम एक सॉज बजाते हैं तो लयात्मक हमारे अंदर समाती है..पता चलता है कि जीवन में तीव्र लय पकड़ने के लिए पहले विलम्बित लय को साधना ज़रूरी है।
हिपहॉप फ़िल्मी डाँस तो हम सीख लेंगे। उसमे कोई बुराई नहीं। लेकिन सबसे पहले कत्थक, भरतनाट्यम और कुचीपुड़ी के साथ ओडिसी को समझना ज़रूरी है..जहां पता चले कि ये समष्टि नृत्य कर रही है..और हम केवल हाथ से ताली दे रहें हैं।
यही एक सांस्कृतिक संस्कार है..जो आपके बच्चे को बचाएगा। इसी का महत्व हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति में बहुत था। यहाँ बुद्ध पहले बांसुरी बजाते थे और विवेकानंद पखावज!
लेकिन हमारी वर्तमान शिक्षा पद्धति आज तक नहीं समझ पाई है।वो पश्चिम के मोह में हैं।पश्चिम हमारे मोह में है।

उनके बच्चे अस्सी घाट पर पाणिनि का अष्टाध्यायी पढ़ रहे हैं और ध्रुपद सीख रहें हैं। हम टिकटाक पर कुल ड्यूड बन रहे हैं और ब्वॉयज लॉकर रूम पर दुःखी हो रहें हैं। पश्चिमी देशों के बच्चे गुरुकुल व्यवस्था की ओर प्रेरित हो रहे है वहीं आज हमारी भावी पीढ़ी पश्चिमी परम्परा की ओर आकर्षित हो रही है 

अब सम्भलना आपको है। चुनौती आपकी है कि आप अपने बेटे को डीजिटल डमी कलाकार बना रहे हैं कि उसे प्रबुद्ध मनुष्य बना रहे हैं।
एक इलेक्ट्रॉनिक तानपुरा भी आता है। आजकल एप में भी उपलब्ध है। लेकिन बड़े बड़े उस्ताद जब गाते हैं तो मिरज के मैनुअल तानपुरा को बजाते हैं…उसे घण्टो ट्यून करते हैं। तब जाकर राग की अवतारणा होती है।
इसलिए निहोरा है कि अपने बच्चे को इलेक्ट्रॉनिक तानपुरा न बनाइये… उसे मैनुअल बनाइये।।
बच्चा बेसुरा होगा..बेताला होगा..लेकिन यही तो उम्र है पकने की।जिस दिन सुर में बोलने लगा उस दिन “जीवन संगीत” सबसे ज्यादा आनंद देगा।
वरना फिर से कहूँगा कि आपके बच्चे के हाथ में मोबाइल नहीं एक डीजिटल बारूद है और आप मूक दर्शक हैं।

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