राम और रावण दोनों एक ही सिक्के के विपरीत पहलू हैं। दोनों ही सभी मनुष्यों के अंदर मौजूद हैं। इन दोनों की खासियत हम सब में ही बसती है। आनुवंशिकी में, आवर्ती और प्रमुख लक्षण को याद करें तो यहां भी ऐसा ही हो रहा है। बुराई और अच्छाई का संयोग हमेशा सह-अस्तित्व में रहता है। जब बुराई हावी हो जाती है, तो अच्छे कर्म आवर्ती हो जाते हैं और जब अच्छाई हावी होती है तो इसके विपरीत हो जाता है। यह हमें तय करना है कि कौन सा गुण हम पर हावी होगा। वे मनुष्य, जिन्हें निर्दयी और क्रूर माना जाता है, वे भी भीतर से मनुष्य हैं। उनके पास भी भावनाएं और संवेदनाएं होती हैं, लेकिन एक विनाशकारी अर्थ में। वे समाज का बोझ उठाने में असमर्थ हैं और ऐसे बन गए हैं। विनाशकारी मानव प्रवर्ती के पीछे का मनोविज्ञान इतने साल पहले हमारे सामने स्पष्ट हो चुका है। लेकिन अभी भी बहुत कुछ पता लगाना बाकी है, कि समान परिस्थितियों में रहने वाले दो व्यक्ति इतने भिन्न कैसे हो सकते हैं। रावण और विभीषण के बारे में सोचो। दोनों की उत्पत्ति एक ही थी, एक ही परिवेश था, लेकिन अलग-अलग विचारधाराएं थीं।

बुराई कोई सीमा नहीं जानती। हिटलर, ईदी अमीन, क्वीन मैरी (प्रथम) और अत्तिला द हुन के बारे में सोचें। क्या वे कैसे भी रावण से कमतर हैं? अंतर उन परिस्थितियों के आधार पर उत्पन्न हो सकता है जिसके कारण उन्हें इस तरह का व्यवहार करना पड़ा। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जहां कुत्सित लोगों ने जब आवाज उठाई तो उन्हें पाखंडी कहा गया। लेकिन अपवाद होने के नाते रावण का क्या? वह किसी भी कठिनाई के अधीन नहीं था। फिर उसे शैतान के रूप में क्यों दर्शाया गया है? क्योंकि उसने दूसरे की पत्नी, सीता का जबरन अपहरण करके सामाजिक व्यवस्था को बाधित करने की कोशिश की? हो सकता है कि वह कई गुणों का स्वामी हो, जैसा कि कुछ उपासकों द्वारा अतिरंजित किया गया है, लेकिन इस जघन्य कुकर्म को कभी कमतर नहीं आँका जा सकता है। इस तरह के दुराचार के बाद भी अपने आप को श्रेष्ठ समझने के गुण उसके अंदर गहरे तक जड़ें जमा चुके थे, जो अंततः उसके पतन की ओर ले गए। दूसरी ओर, विभीषण की देशद्रोही होने के कारण आलोचना की जाती है, लेकिन धर्म के मार्ग पर चलना गद्दारी नहीं है। विभीषण के पास बुराई के साथ रहने या नैतिकता के प्रति आत्मीयता का विकल्प था। जाहिर है, और हम सब जानते हैं की उसका भाई नैतिक रूप से तो कतई ईमानदार नहीं था।

हमारे अंदर की बुराई छिपी रहती है या दबा दी जाती है – आवर्ती, हम समाज में अपना मूल्य बनाए रख सकते हैं, अन्यथा हमारी तुलना ऐसे ही निर्दयी प्राणियों से की जाएगी। समय की मांग है कि हम अपना सर्वश्रेष्ठ खुद से बाहर निकालें। कुछ अभी भी रावण को विभीषण से कहीं बेहतर मान सकते हैं। लेकिन किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले आप खुद तय कर लें कि आप अपने अंदर क्या चाहते हैं- विभीषण के गुण या रावण की क्रूरता? उन सिद्धांतों को एक तरफ रख दें जो रावण को महान और ज्ञान के भंडार के रूप में साबित करते रहते हैं, शायद वह अपने पिता सप्तऋषि के कारण एक प्रसिद्ध राजा कहलाया जाता रहेगा| लेकिन हावी नकारात्मक विषमता ने उन्हें उन निम्न स्तर पर ला दिया, जिनकी तुलना पौराणिक कथाओं में किसी भी राक्षस से नहीं की जा सकती। बुद्धि का अधिकार सामाजिक रूप से योग्य होने से अलग है और इसलिए रावण के पास बुद्धि का भंडार होते हुए भी, उसे अभी भी हम हर साल बुराई के प्रतीक (पुतले) के रूप में जलाकर ये सिद्ध करने की कोशिश करते हैं की बुराई चाहे कितनी भी ताकतवर हो, अच्छाई के समक्ष अधिक देर तक नहीं ठहर सकती | रात्रि के तमस को अगर ये घमंड हो जाए की उसे कोई नहीं पराजित कर सकता, और वो कितनी ही कोशिश कर ले की सवेरा ना हो, लेकिन ………….!!!

Dr. R. K. Panchal

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