भारत में अब हिन्दू पर्व त्यौहारों पर वामपंथियों ,उनके सगे मज़हबी कट्टरवादी और वोटो की लालच में तुष्टिकरण से ग्रस्त राजनीतिक दल व् राज्य सरकारों का एक ही एजेंडा रहता है। भारतीय पर्व के नजदीक आते ही उसका उपहास उड़ाने , उसमें कुछ विवादित बनाने , फूहड़ चुटकुले और ओछे किस्से बनाने और सबसे बढ़कर हिन्दू पर्व त्यौहारों को अवैज्ञानिक साबित करने की एक होड़ सी लग जाती है।
भारतीय सनातन समाज अपने प्रारम्भिक काल से ही उत्सव प्रेमी और इसी बहाने रचनाधर्मी रहा है। शारदीय नवरात्रि में शक्ति की प्रतीक माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा आराधना करके समाज एक तरफ खुद संगठित सुगठित होने का प्रमाण देता है वहीँ ये भी की समय पड़ने पर अपनी रक्षा के लिए सर्वथा समर्थ समाज होने का स्पष्ट सन्देश भी देता है।
इतिहास इस बात का भी साक्षी रहा है कि सनातन हिन्दुओं से जुड़े हर पर्व और उनमे निभाई जाने वाली परम्पराएं न सिर्फ शाश्वत और स्थाई हैं बल्कि दुनिया के हर कालखंड में वे उतनी ही समीचीन और सामयिक रही हैं। ये इस समाज की सहिष्णुता का परिचायक ही है कि कई शताब्दियों से इसे दबाने कुचलने बाँधने का प्रयास किया जाता रहा है मगर सनातन शाश्वत सत्य है हमेशा ही अडिग और अविचल।
पश्चिम बंगाल , महाराष्ट्र और भाजपा शासित कर्नाटक तक की राज्य सरकारों ने अपने अपने प्रदेशों में वर्ष 2021 के दुर्गा पूजनोत्स्व के लिए भारी भरकम दिशा निर्देश जारी करके अनेक तरह की पाबंदियां लगा दी हैं।
किसी ने माँ दुर्गा की प्रतिमा की ऊंचाई प्रतिबंधित कर दी है तो किसी ने ,फूल , पूजा और प्रसाद पर ,कोविदकाल के निर्देशों के अनुपालन के अतिरिक्त भी अन्य बहुत ही बातों के लिए लिखित दिशा निर्देश जारी किए गए हैं और बहुत सी बातों के लिए पूर्वानुमति की भी आवश्यकता होगी।
महाराष्ट्र की हिन्दूवादी शिव सेना सरकार ने तो माँ मुम्बा देवी के मंदिर को सिर्फ और सिर्फ उन भक्तो के लिए ही खोलने का निर्णय किया है जिन्हें वैक्सीन लग चुकी है। इसके बावजूद भी , पूजा फूल माला प्रसाद आदि के समपर्ण वितरण पर लगा हुआ प्रतिबन्ध आगे भी जारी रहेगा।
इसके अतिरिक्त घर पर और सार्वजनिक स्थानों पर प्रतिमाओं की अधिकतम ऊंचाई भी तय कर दी गई है और ये भी कि प्रत्येक मंडल में सिर्फ एक प्रतिमा का स्थापन और पूजन ही किया जा सकेगा जिसके लिए भी पूर्वानुमति की जरूरत पड़ेगी।
भाजपा शासित कर्नाटक सरकार भी इस मामले में पीछे नहीं है और उसने भी परिपत्र जारी कर इस दिशा में कई निर्देश अनुपालन हेतु जारी किए हैं।
पश्चि म बंगाल, छत्तीसगढ़ सहित और भी अन्य कई राज्य प्रशासनों ने दुर्गा पूजा के नौ दिनों तक चलने वाले पूजन महोत्स्व और यहां तक की विसर्जन तक के लिए बहुत सारे नियम कायदे बना दिए हैं। कोरोना की तीसरी लहर के मद्देनज़र किसी ने इन नियमों को थोपे जाने का विरोध किया भी नहीं है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो ये भी है कि आखिर कोरोना के प्रसार का डर और प्रसार का कारण कभी कुम्भ का मेला , तो कभी दुर्गा पूजा को ही क्यों मान और समझ लिया जाता है। ये हैं कौन लोग जो ये सब तय करते हैं कि माँ दुर्गा की प्रतिमा का स्थापन एक ही स्थान पर हो सकेगा फिर इससे अलग एक और बात ये भी कि क्या अन्य धर्मावलम्बियों और उनके पर्व त्यौहारों पर भी राज्य प्रशासन इस तरह के दिशा निर्देशों को पालन छोड़ जारी करने का साहस भी कर पाता है भला ??? सच सबको पता है और सब समझते भी हैं
असल में हिन्दुओं की जान से लेकर उसका धर्म , उसका ईष्ट , उसका समाज , उसका मंदिर सब कुछ इस देश में एक आसान और शायद सबसे आसान लक्ष्य है वो भी ऐसे समय में जब समाज एक वर्ग खुद ही अपनों को मारने काटने को नरभक्षी हुआ जा रहा है।
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