जब आपकी उम्र 16 वर्ष की थी तब आप क्या कर रहे थे, शायद आपको याद भी नही होगा। लेकिन इसी उम्र में एक क्रांतिकारी अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते हुए स्वतंत्रता संग्राम में शहीद हो गए थे, मात्र 16 वर्ष की अल्पायु में।
आज Forgotten Indian Freedom Fighters लेख श्रृंखला की पच्चीसवीं कड़ी में हम उन्हीं शिरीष कुमार मेहता के बारे में पढ़ेंगे जो अंग्रेजों के अत्याचारों से भयभीत नही हुए बल्कि डटकर उनका मुकाबला करते हुए अपना जीवन माँ भारती के चरणों में समर्पित कर दिया।
शिरीष का जन्म 28 दिसंबर 1926 को महाराष्ट्र राज्य के नंदुरबार शहर में हुआ था। इनके पिताजी एक गुजराती व्यापारी थे। शिरीष अपने माता पिता की इकलौती सन्तान थे और उनकी माता शिरीष को बचपन से ही स्वतंत्रता संग्राम की कहानियां सुनाती थी इसलिए शिरीष के मन में भी देशभक्ति की भावना बढ़ने लगी थी। उस समय गांधी के नेतृत्व में पूरे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था, ऐसे समय में युवा शिरीष भी अंग्रेजों के विरुद्ध देश को आज़ाद कराने के महायज्ञ में कूद पड़े।
शिरीष मुख्य रूप से नेताजी सुभाष बाबू से बहुत प्रभावित थे, सुभाष बाबू द्वारा अंग्रेजों को चकमा देने की रणनीति ने शिरीष के मन पर गहरा असर डाला और वो भी सुभाष बाबू की तरह अंग्रेजों से बेखौफ होकर आज़ादी की लड़ाई लड़ना चाहते थे।
शिरीष कुमार जब 12 वर्ष के थे तभी से वह अपने दादाजी के साथ तिरंगा उठाकर आजादी के आंदोलन में शामिल हो जाते थे। उनमें एक अलग ही जज्बा और जुनून था।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हो चुकी थी। शिरीष भी हर गांव में तिरंगा लेकर ‘वंदे मातरम’, ‘भारत माता की जय’ का जयघोष लेकर निकल पड़े थे।
9 सिंतबर 1942 को नंदुरबार में एक बड़ी रैली निकाली गई। उस रैली में शिरीष कुमार तिरंगा लेकर रैली का नेतृत्व करने लगे। उस समय उनकी उम्र मात्र 16 वर्ष थी। शिरीष अपनी मातृभाषा गुजराती में नारा लगाने लगे, “नहीं शमसे, नहीं शमसे निशान भूमि भारतभूनी”। इसके साथ ही भारत माता की जय, वंदे मातरम के नारे भी वो लगा रहे थे। शिरीष के मन में मातृभूमि के लिए एक अलग ही जोश दिखाई दे रहा था।
जब रैली शहर के बीचो बीच पहुंची तब अंग्रेज पुलिस अफसर ने रैली पर लाठीचार्ज करने का आदेश दे दिया। लेकिन शिरीष कुमार अपने साथियों के साथ रैली में डटे रहे और भारत माता की जय, वंदे मातरम का जयघोष जारी रखा। इस बात से अंग्रेज अफसर काफी गुस्से में आ गया और उसने प्रदर्शन करने वाले लोगों के ऊपर बंदूक तान दी। शिरीष कुमार उन प्रदर्शन करने वालों के आगे खड़े हो गए और अंग्रेज अफसर को बड़े गुस्से में बोले, “अगर तुम्हें गोली मारनी है तो पहले मुझे मारो” और तिरंगा हाथ में लहराते हुए अंग्रेज अफसर के सामने नारा लगाने लगे ‘वंदे मातरम -वंदे मातरम’।
इससे अंग्रेज अफसर और अधिक तिलमिला गया और उसने शिरीष कुमार के सीने में चार गोलियां मार दी।
शिरीष कुमार जमीन पर गिर गए और भारत माँ की गोद में हमेशा के लिए चिरनिद्रा में सो गए।
मात्र 16 वर्ष की आयु में निर्भीक रूप से अंग्रेजों से मुकाबला कर अपना जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित करने वाले भारत माँ के इस वीर सपूत को हमारा शत् शत् नमन।
जय हिंद
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