शिकायत, FIR, बदलते बयान और घटना से जुड़े तथ्य सब इसी तरफ इशारा कर रहे हैं कि हत्या लड़की के भाई ने ही कि हो सकती हैं

कांग्रेस पार्टी और PFI जैसी संस्थाओं ने भीम आर्मी और कुछ पत्रकारों से मिलकर दिल्ली जैसे दंगों की तैयारी कर रखी थी ,बस मौके की तलाश थी

हाथरस कांड एक दुखद संयोग के साथ किया गया जहरीला प्रयोग है :

  • जिला हाथरस, थाना क्षेत्र- चंदपा से महज एक किलोमीटर दूर के गांव बुलगढी के संदीप नाम के कथित मुख्य अभियुक्त का पीड़िता और दुखद मृत्यु की शिकार हुई लड़की से प्रेम संबन्ध बनता है।
  • यह प्रसंग इसी साल मार्च/अप्रैल में शुरू होता है जिसकी जानकारी अप्रैल/मई आते-आते दोनों परिवारों को हो जाती है। लड़के ने मृतका को मोबाइल भी दिया था जिससे दोनों संपर्क में रहते थे। दोनो परिवार इस संबन्ध के खिलाफ होते हैं। बल्कि आरोपित लड़के, लड़की के भाई सहित दोनों परिवारों के और लोगों के बीच कहासुनी, झगड़ा तक होता है। मामला तब पुलिस तक नहीं जाता।
  • इस घटना के बाद कथित अभियुक्त सन्दीप को उसका परिवार दिल्ली उसके चाचा के पास भेज देता है। पीड़ित लड़की का परिवार लड़के द्वारा लड़की को दिए मोबाइल को तोड़ देता है ताकि दोनों में कोई संपर्क न हो।
  • आरोपित लड़का तीन-चार महीनों के बाद घटना के 4-5 दिनों पहले दिल्ली से गांव लौटता है। घटना वाले दिन 14 सितंबर को वह अपनी मां के साथ लेकिन कुछ दूरी पर खेत में घास काट रही पीड़ित लड़की के पास पहुंच कर बात करने लगता है साथ ही आगे संपर्क के लिए दूसरा मोबाइल देता है।
  • पीड़ित लड़की का भाई यह बातचीत, मोबाइल देना देख लेता है। भाई के आने पर दोनों में कहासुनी होती है जिसके बाद आरोपित लड़का वहां से चला जाता है। इसी कहासुनी से मां को हुई घटना की जानकारी होती है।
  • लड़की का भाई अपनी बहन (पीड़िता) के साथ वहीं खेत में गंभीर मारपीट करता है। लड़के द्वारा दिया मोबाइल तोड़ देता है। इस मारपीट में मृतक लड़की की मां भी शामिल रहती है।
  • इसी मारपीट के दौरान लड़की के मुंह, गर्दन की हड्डी में गंभीर चोटें आती हैं और वह खेत में ही बेहोश हो जाती है। मारे जाने के दौरान लड़की के चिल्लाने पर पहुंचे गांव के एक लड़के लवकुश से पानी मंगा कर लड़की के मुंह पर डालती है। इस दौरान लड़की का भाई वहां से चला जाता है। मां लड़की को लेकर घर पहुंचती है।
  • लड़की को बाजरे के खेत में ले जाने और उसके बिना कपड़ों के मिलने की बात पूरी तरह झूठी है।
  • लड़की (मृतका) का भाई उसके बाद थाने पहुंच कर आरोपित लड़के सन्दीप, लवकुश के खिलाफ मारपीट, दलित उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करवाता है।
    (हाथरस घटना की पीड़ित लड़की के भाई द्वारा इस एक मात्र और शुरुआती दर्ज एफआईआर में किसी बलात्कार की कोई शिकायत नहीं की गई)
  • लड़की को बग़ल के अस्पताल में इलाज के लिये ले जाया गया। बाद में मेडिकल कालेज से होते हुए लड़की को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती किया गया जहां उसकी 30 सितम्बर की सुबह मौत हो गई। जिसके दो दिन बाद आरोपित सन्दीप, लवकुश सहित दो अन्य नामजद लड़कों को गिरफ़्तार कर लिया गया।
  • शुरुआती मेडिकल रिपोर्ट और दुखद मौत के बाद अंतिम मेडिकल रिपोर्ट यानी पोस्टमार्टम रिपोर्ट… दोनों में साफ कहा गया कि मृतका से बलात्कार नहीं हुआ है।
    (मृतका से बलात्कार होने की बात उसके भाई द्वारा दर्ज एकमात्र एफआईआर में भी नहीं है।)

अब होता है घटना को बलात्कार से शुरू होकर सामूहिक बलात्कार तक पहुंचा दिया जाने वाले एंगल का प्रवेश।

  • शुरुआत में स्थानीय के साथ स्थापित प्रिंट मीडिया मारपीट और दलित उत्पीड़न की खबर और रिपोर्टिंग करते हैं। फिर धीरे-धीरे इसे दलित उत्पीड़न का रंग दिया जाता है। इसी बीच दलित-सवर्ण एंगल पर ही स्थानीय सांसद और कुछ और राजनैतिक लोगों को जानकारी होती है।
  • घटना को स्थानीय स्तर पर दलित-सवर्ण रंग देने के साथ ही मारपीट की इस घटना में पहली बार बलात्कार के आरोप का प्रवेश होता है। गलत और सनसनीखेज ढंग से पीड़िता की जीभ काटने, रीढ़ की हड्डी तोड़ देने और सामूहिक बलात्कार की खबरों की एक श्रृंखला शुरू होती है। फिर अचानक ही सुनियोजित ढंग से सबसे पहले स्थानीय जिले स्तर की मीडिया फिर उसके बाद राष्ट्रीय मीडिया के कुछ नामचीन चैनल और उनके संवाददाता हाथरस के गांव बुलगढी को पिपली लाइव बना देते हैं।
  • राजनीतिक रूप से कांग्रेस इसे आपदा में अवसर मानती है और टीआरपी की भूखी मीडिया के कुछ नामों को साथ लेकर प्रायोजित रूप से मैदान में उतरती है। कैमरा लाओ… बोल कर सड़क पर गिरने से लेकर मारपीट से हुई एक मौत को पहले दलित-सवर्ण और फिर बलात्कार.. सामूहिक बलात्कार की घटना बना कर खेल खेलने की शुरुआत होती है।

और तभी नार्को नामक टेस्ट का मामले में प्रवेश होता है और सत्य के लिए किया जाने वाला नार्को अपने होने से पहले ही सत्य उजागर करने की शुरुआत कर देता है :

  • उत्तर प्रदेश सरकार घटना में शामिल तीनों पक्षों (पीड़िता के परिवार और परिजन, मुख्य अभियुक्त सन्दीप सहित चारो आरोपियों और स्थानीय पुलिस अधिकारी एवं कर्मियों) के नार्को टेस्ट कराए जाने की घोषणा करती है। जिले के एसपी सहित थाना स्तर के कर्मियों के खिलाफ निलंबन की कार्यवाई होती है।
  • नार्को टेस्ट कराए जाने की बात सामने आते ही कल तक हाथरस के पिपली लाइव में डेरा डाले चैनलों से लेकर उनके स्टूडियो में बैठे एंकरों, संपादकों को सांप सूंघ जाता है। एक साथ नार्को टेस्ट न कराए जाने का शोर मचना शुरू हो जाता है। नार्को टेस्ट के खिलाफ अंततः एडिटर्स गिल्ड और तमाम कथित बड़े नाम सामने आ जाते हैं।
  • गांव में घुसते ही चैनल पीड़ित परिवार को नार्को टेस्ट न कराने की बातें कहने के लिए तैयार करते हैं और बाकायदा नार्को टेस्ट के खिलाफ माहौल बनाया जाता है।
    (सुप्रीमकोर्ट के निर्णय के हिसाब से नार्को टेस्ट के लिए व्यक्ति की सहमति जरूरी होती है)
  • जबकि आरोपित पक्ष यानी गिरफ्तार चारो लड़कों की तरफ से न सिर्फ नार्को टेस्ट कराने की बात कही जा रही है बल्कि उससे आगे बढ़ते हुए घटना की सीबीआई जांच की मांग उठाई जा रही है।

हाथरस की इस दुखद घटना के कारक :

  • लड़की की निर्मम पिटाई इस दौरान आयी गंभीर चोटों के अहसास के बाद पीड़िता का भाई रंजिश निकालने के लिए पुलिस में मारपीट और दलित उत्पीड़न का केस कराता है। जबकि लड़की की दुखद मृत्यु उसके भाई की मारपीट के दौरान लगी गंभीर चोटों के चलते होती है।
  • लड़की की स्थिति चोटों की वजह से गंभीर होने और स्थानीय जातिगत एंगल के साथ ही राजनीतिक घुसपैठ के बाद पीड़िता सहित परिवार और परिजनों ने बयान बदलने शुरू किए।
  • पीड़िता की मृत्यु हो जाने के बाद इस पूरी घटना को राजनीति और मीडिया की टीआरपी-खोरी ने एक मारपीट से हुई दुखद मौत की घटना को जातिगत रंग के साथ सामूहिक बलात्कार और क्रूर हत्या तक पहुंचा डाला। अब यह स्टैंड ले चुकी मीडिया और राजनीतिक ताकतें और इनके बीच उलझा परिवार एक ऐसी जगह पहुंच गईं जहां से तीनों का वापस लौटना आसान नहीं था।

वापसी में अब तक की सबसे बड़ी बाधा : नार्को टेस्ट का ऐलान।

घटना के असल सत्य, लड़की की मौत के असली दोषियों के सामने आने की राह आसान : उतर प्रदेश सरकार द्वारा हाथरस कांड की सीबीआई जांच का ऐलान।

कुछ लोगों ने मेरी पोस्ट पर कमेंट किया है कि पुलिस ने रात में दाह संस्कार क्यों किया ?

दरअसल गुप्तचर विभाग को यह सूचना मिली थी की लड़की का लाश को अपने कब्जे में लेकर टुकड़े टुकड़े गैंग के लोग बड़े पैमाने पर हिंसा की तैयारी किए थे क्योंकि उन्हें सुबह 9:00 बजे ही लाश दे दी गई थी और एंबुलेंस से लाश हाथरस पहुंचा दी गयी थी

लेकिन परिजन दाह संस्कार नहीं कर रहे थे आखिर वह किस के इंतजार में थे ?

पोस्टमार्टम की गई बॉडी सुबह 9 बजे मिल गयी थी तब रात 10 बजे तक बॉडी किसलिए सड़ाई जा रही थी? हिन्दू धर्म में ये कहाँ लिखा है कि दंगा कराने की नीयत से अंतिम संस्कार न किया जाय और लाश में कीड़े पड़ने दिए जाँय??

बस पुलिस ने घर वालों को अंतिम संस्कार करने के लिए दवाब बनाया इसमें क्या गलत किया? लाश सड़क पर रखकर दंगा करा के दसियों लोग मार दिए जाते, सरकारी और प्राइवेट संपत्ति जला दी जाती तो वो ज्यादा सही होता क्या? पुलिस जबरन राजनीति का शिकार बना दी गई।

मेडिकल रिपोर्ट गलत, फोरेंसिक रिपोर्ट गलत, पोस्टमार्टम रिपोर्ट गलत बस जो पमेरियन पत्रकार कहें वही सही?

पुलिस ने परिजनों के फोन सर्विलांस पर रखे तब पुलिस को पता चला कि कई चैनलों के पत्रकार और कांग्रेसी नेता परिजनों को भड़का रहे थे उन्हें 50 लाख रुपए की लालच दे रहे थे उन्हें कह रहे थे कि दाह संस्कार मत करना हम लाश को लेकर धरना प्रदर्शन करेंगे फिर पुलिस ने जब कुछ और लोगों के फोन सर्विलांस पर रखे तब पता चला कि जिस तरह से दिल्ली में नागरिकता कानून के मुद्दे पर बड़े पैमाने पर हिंसा की गई थी ठीक उसी पैटर्न पर टुकड़े-टुकड़े गैंग हाथरस आगरा मथुरा जैसे शहरों को भी जलाना चाहती थी।

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