किसी भी राष्ट्र का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है की उस देश की जनता किन्हें अपना राष्ट्रीय नायक मान कर उनका अनुसरण करती है। यही राष्ट्र नायक उस राष्ट्र की युवा पीढ़ियों के लिए एक आदर्श बन जाते हैं। सामान्यतः लोग किसी भी ऐतिहासिक व्यक्ति को या तो नायक या खलनायक के रूप में देखते हैं।

हालांकि, भारत में शैक्षणिक रूप से पढ़ाया जा रहा इतिहास, कुछ राष्ट्र नायकों के अपवाद स्वरूप अन्य प्रमुख व्यक्तित्वों के बारे में तटस्थ है। इस तटस्थता को छद्म रूप से बनाये रखने हेतु इन ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के बारे में कुछ चुनिंदा और सतही संदर्भों का उल्लेख करके कहीं अधिक महत्वपूर्ण और गंभीर जानकारी की या तो अनदेखी कर दी जाती है या फिर उन्हें छिपा लिया जाता है। इस परिपेक्ष्य में, जनता के लिए राष्ट्र के प्रति उन ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के सही योगदान का विश्लेषण करना और भी कठिन हो जाता है।

ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण लोगों के तटस्थ चित्रण के बारे में अलग -अलग विचार और उद्देश्य हो सकते हैं, लेकिन शैक्षणिक इतिहासकारों का यह रवैया जनता के लिए राष्ट्रीय नायकों या खलनायक के मध्य भेद करने के लिए एक बड़ी चुनौती है। समाज के भीतर भ्रम की यह स्थिति उन अवसरवादी चरित्रों के महिमामंडन का अवसर प्रदान करती है जो वास्तव में खलनायक थे। राष्ट्र के खलनायकों को राष्ट्रीय नायकों के रूप में प्रस्तुत करके अनुचित लाभ उठाना अवसरवादी सामाजिक-राजनीतिक वर्ग के लिए सबसे महत्वपूर्ण रणनीति है।

उन खलनायकों का महिमामंडन भी अवसरवादी तत्वों द्वारा मिथ्या और गढ़ी हुई छवियों के सहारे ही करा जाता है। जनता को भ्रमित करने और भ्रामक प्रचार करने की इस प्रक्रिया में, सत्य और असली राष्ट्र नायकों की छवि को कहीं हताहत करके दरकिनार कर दिया जाता है।

यह अवस्था एक ऐसी सामाजिक स्थिति का निर्माण करती है, जिसमें उच्च शिक्षित मगर बौद्धिक चिंतन विहीन वर्ग वास्तविक राष्ट्रीय नायकों का अपमान करते हुए खलनायकों को ही राष्ट्रीय नायकों के रूप में पूजना शुरू कर दिया है। यह विशिष्ट सामाजिक-राजनीतिक प्रवृत्ति केवल भारत में ही है।

इस प्रकार, किसी भी राष्ट्र को अपने राष्ट्रीय नायकों को बहुत ध्यान पूर्वक, समझदारी से सत्य और ऐतिहासिक तथ्यों की कसौटी पर पहचानने और चुनने की आवश्यकता है। इस तरह के ऐतिहासिक व्यक्तियों के राष्ट्र नायक या खलनायक होने की स्थिति के बारे में जनमत को अक्सर जानबूझ कर विभाजित किया जाता है। यह सिर्फ ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के जीवन और भूमिका, और इतिहास के समग्र ज्ञान के के अभाव के चलते संभव होता है जिसमें शिक्षाविदों का पूर्ण योगदान रहता है। अक्सर यह सामाजिक विभाजन वैचारिक मात्र नहीं होता बल्कि एक षड्यंत्र के तहत सामाजिक ध्रुवीकरण के माध्यम से समाज को सामाजिक संघर्ष के कगार पर लाया जाता है। निश्चित ही भ्रामक, मिथ्या दुष्प्रचार और खलनायकों का महिमा मंडन ही ऐसे घातक सामाजिक विभाजन के लिए प्रमुख पोषक हैं।

एक सुसंगठित समाज का निर्माण करने के लिए, ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के राष्ट्रनायक या खलनायक होने की स्थिति पर राष्ट्रव्यापी और एकीकृत दृष्टिकोण होना महत्वपूर्ण है। हालांकि, उस उद्देश्य के लिए राजकीय दृष्टिकोण दो कारणों से सर्वस्वीकार्य नहीं होगा। प्रथम, कोई भी सरकार हो वो हमेशा किसी न किसी विचारधारा से अवश्य जुड़ी होगी, और समाज के भीतर हमेशा उसका एक विरोधी वर्ग होगा जो सरकारी दृष्टिकोण से असहमत ही रहेगा। इसलिए सरकार का दृष्टिकोण समस्त समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकता है। चूंकि शिक्षाविद इतिहासकार स्वाभाविक रूप से समस्या का मूल हिस्सा रहे हैं, इसलिए उन्हें समाधान के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

भारत के इतिहास में एक लिटमस टेस्ट की आवश्यकता है जिसके सहारे ऐतिहासिक व्यक्तित्वों का राष्ट्रीय नायकों या खलनायक के रूप में उनकी सही स्थिति के लिए गंभीर रूप से मूल्यांकन किया जा सकता है। एक दृष्टिकोण यह भी हो सकता है कि इस तरह के व्यक्तित्वों का मूल्यांकन राष्ट्र के प्रति उनके योगदान के आधार पर और उनके कृत्यों के पीछे के उद्देश्यों के आधार पर किया जाना चाहिए। यह दृष्टिकोण काफी उचित और तर्कसंगत लगता है क्योंकि इस विधि से उनके कार्यों का सम्पूर्ण देश और समाज पर पड़ने वाले प्रभावों के आधार पर मूल्याङ्कन होता है न किसी विशिष्ट व्यक्तियों या उनके समूहों पर। इस परिक्षण में, यह सवाल उठ सकता है कि राष्ट्र के प्रति सकारात्मक योगदान क्या माना जाना चाहिए। इस सन्दर्भ में राष्ट्रीय नायकों के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित क्षेत्रों में कोई भी योगदान महत्वपूर्ण है।

1. एक राष्ट्रीय पहचान को स्थापित करना

2. एक सामंजस्यपूर्ण राष्ट्र का निर्माण,

3. राष्ट्र का विकास और विकास के लिए आवश्यक राजनीतिक स्थिरता प्रदान करना

4. बाह्य शक्तियों से देश की सुरक्षा करना

5. राष्ट्र को गौरवान्वित करने वाली अंतर्राष्ट्रीय पहचान पाना


उपरोक्त मानदंडों के आधार पर स्वामी विवेकानंद, महाराणा प्रताप, सरदार भगत सिंह, एपीजे अब्दुल कलाम आदि को राष्ट्र नायकों के तौर पर पहचानने में कोई भ्रम नहीं हो सकता है । मगर हमें कई अन्य ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के निष्पक्ष परीक्षण के लिए उपरोक्त और समान मानदंडों  पर विश्लेषण भी करना चाहिए, जिससे राष्ट्र नायकों और खलनायकों को स्पष्ट तौर पर चिन्हित किया जा सके।

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