कर्नाटक से शुरू हुए हिजाब विवाद को लेकर देशभर में बहस और हंगामा जारी है. पहले तो देश के अंदर से ही लोग अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे थे. लेकिन अब तो लिबरल्स की चहेती नोबल पुरस्कार विजेता और खुद को महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली मलाला यूसुफ़ज़ई भी इसमें कूद पड़ी हैं. अपने ट्वीट में मलाला उसी जहरीले विचारधारा की पैरवी करती दिख रही हैं, जिसकी वजह से उन्होंने सिर में गोली खाई थी .

मलाला यूसुफजई ने ट्वीट करते हुए कहा “कॉलेज हमें पढ़ाई और हिजाब के बीच चयन करने के लिए मजबूर कर रहा है। लड़कियों को उनके हिजाब में स्कूल जाने से मना करना भयावह है। कम या ज्यादा पहनने के लिए महिलाओं के प्रति नजरिया बना रहता है। भारतीय नेताओं को चाहिए कि वे मुस्लिम महिलाओं को हाशिए पर जाने से रोके।”

ये वहीं मलाला हैं जिन्होंने 2012 में पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा के लिए जब आवाज उठायी तो तालिबान ने उनके सिर में गोली मार दी. उसे तुरंत इलाज के लिए इंग्लैंड भेजा गया जहां उसने अपनी पढ़ाई पूरी की. जिसके बाद दुनिया भर में उसकी चर्चा होने लगी और उसके बाद उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। कई मंचों से मलाला ने कहा वो तालिबान से नहीं डरती लेकिन मजाल है कि गोलीकांड के बाद उन्होंने कभी पाकिस्तान की तरफ मुंड कर देखा हो, इसी से समझ लीजिए की वो वास्तव में महिलाओं के अधिकारों को लेकर कितनी चिंतित हैं। लेकिन आज जब भारत में हिजाब पर कुछ लोग हल्ला मचाते हुए अपनी सिसायी रोटियां सेकने में लगे हुए हैं तो मलाला अपना एजेंडा चलाने में लगी हुई हैं।

अगर मलाला सच में महिलाओं की हितैषी होती, तो वो पाकिस्तान और तालिबान के आंतक और क्रूरता पर खामोश नहीं रहती. वैसे सब ज्ञान बांट रहे हैं, तो भला मलाला क्यों पीछे रहती. लेकिन स्कूल जैसे शिक्षा के मंदिर में इस्लामवादियों द्वारा धार्मिक रंग थोपना कहीं से जायज नहीं है ।

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