वर्ष के 365 दिन और उस देश में एक दिवस , उस देश की राजभाषा , राष्ट्रभाषा को समर्पित -जी हाँ , आप बिलकुल ठीक समझ रहे हैं और आज सुबह से समाचार माध्यमों तथा सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर तरह तरह के बधाई और शुभकामना सन्देश फिर से हिन्दुस्तानियों को याद दिलाने के लिए आए हैं कि -आज यानि 14 सितम्बर को -भारत हिंदी दिवस के रूप में मनाता है। इस मनाने को ठीक वही मनाना है जैसे कोई रूठा हुआ हो और उसे मनाना है और हम पिछले सत्तर सालों से उसे मनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हिंदी है कि मानती नहीं।
हिंदी को भारतीय गणराज्य और कामकाज की आधिकारिक भाषा -यानि राजभाषा घोषित करने के विषय में नहीं पढ़ा तो सिर्फ इतना जान लीजिए कि , इसका तब इतना भारी विरोध किया गया था कि यदि हिंदी के पक्ष में वो एक मत अधिक नहीं दिया गया होता तो आज शायद भारत हिंदी नामक भाषा को राजभाषा का जामा पहना कर ये झुनझुना भी नहीं बजा रहा होता जो बजाया जा रहा है। इसे झुनझुना , टुनटुना बजाना न कहें तो क्या कहा जाए। संविधान में जो व्यवस्था सिर्फ शुरुआत के 10 साल के लिए एक विकल्प के रूप में रखी गई थी और संकल्प लिया गया था कि -अंग्रेजी के स्थान पर सामाज्य काम काज से लेकर , व्यवस्था शासन पुलिस सबकी आधिकारिक भाषा हिंदी ही होगी।
आज 70 वर्षों के बाद भी हिंदी की दशा और दिशा , सिर्फ उतनी ही संतोषजनक और ठीक है जितने से कि एक गरीब आदमी दिल को तसल्ली दे सके कि जो वो बोलेगा उसे कम से कम सड़क पर , गली , मोहल्ले परिवार समाज में सब समझ तो जाएंगे ही। लेकिन सिर्फ इन्हीं जगहों पर -बड़े दफ्तरों , होटलों , शिक्षा संस्थानों से लेकर व्यावसायिक प्रतिष्ठानों तक हिंदी की छाती पर बैठी अंग्रेजी लगातार मूँग दल कर करोड़ों हिन्दुस्तानियों को मानो मुँह चिढ़ाती रहती है कि , हूँह्ह। अपनी भाषा तक को बोली ,कही ,लिखी नहीं जाती चले हैं -हिंदी , हिन्दू , हिन्दुस्तान करने।
और देखा जाए तो हिंदी की हालत भी कुछ कुछ इस देश के हिन्दू की तरह ही हो गई है , जिसे न अदालतों में न्याय मिलता है न ही शासन राजनीति की तरफ से कोई मान्यता , दोनों ही इतने गए गुजरे होकर रह गए हैं कि सरे आम दोनों की लिंचिंग , नोच खसोट चलती रहती है और सब मूक दर्शक बने देख रहे हैं , देखते चले आ रहे हैं। हिंदी और हिन्दू , दोनों के नाम पर तरह तरह के करतब किए जा रहे हैं वो भी दशकों से , लोगों को एक सर्कस दिखाया जा रहा है और ये भी कि , समय के साथ दोनों को अपना मान और स्थान मिल जाएगा। लेकिन ये होगा कैसे , करेगा कौन , मानेगा कौन -इन सब पर सब चुप्पी साध लेते हैं।
अदालतें ,जिन्हें अपने ऊपर ये नाज़ है कि उन्हीं की न्याय व्यवस्था और सही गलत के संतुलन को बनाए रखने के कारण ही इस देश में सब कुछ ठीक है मगर अफ़सोस की बात ये है कि उन्हें भी अपने आदेशों , निर्देशों से लोगों के बीच ये विशवास बनाने के लिए -एक विदेशी भाषा यानि अंग्रेजी पर भी निर्भर रहना श्रेयस्कर लगता है तभी तो शीर्ष अदालत एक नहीं अनेकों बार – न्यायालीय काम काज की भाषा को राजभाषा हिंदी में किए जाने की याचिका को सिरे से ही ठुकरा चुका है।
पिछले कुछ वर्षों में मोदी सरकार के आने के बाद से जरूर ही इस दिशा में बहुत से सकारात्मक रुख देखने को मिल रहे हैं जिनमे पहला है खुद बड़े राजनयिकों और मंत्री अधिकारियों द्वारा -राजभाषा हिंदी का प्रयोग। पहले की सरकारें और उनके करता धर्ता तो -अंग्रेजी में लिखे पुर्जे को पढ़ कर ही अपने आपको धन्य समझते रहे थे। इधर कुछ समय में मोबाइल , इंटरनेट में हिंदी लिखने पढ़ने की सुविधा ने भी अंतरजाल पर हिंदी को प्रसारित तो किया ही है।
लेकिन जिस देश में दुनिया की एक बहुत बड़ी आबादी को , अपनी बोलचाल की भाषा को मान्यता दिलाने , मान स्थान दिलाने के लिए एक विशेष दिन की जरूरत पड़ती रहेगी समझिए कि तब तक सब कुछ ठीक नहीं है।
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.