क्या आपने कभी सोचा है क्यों किसी हिन्दू को देश के किसी भी मुस्लिमबहुल इलाके में ही नहीं, बल्कि उसके आस-पास भी घर लेने से डर लगता है? जब भी आप किसी मुस्लिम बहुल इलाके से गुजरते हैं, आपको एक डर की, असुरक्षा की भावना आ जाती है और आप सतर्क हो जाते हैं जबकि कोई भी मुस्लिम आसानी से हिन्दू बहुल इलाके में आराम से घूम सकता है। क्यों पेरिस में मात्र मुहम्मद का कार्टून दिखने पर एक अध्यापक का गला काट कर हत्या कर दी जाती है और पूरे विश्व में मुसलमान इस कार्टून के विरुद्ध प्रदर्शन करना शुरू कर देते हैं? क्यों सम्पूर्ण विश्व में इस्लाम के विरुद्ध एक जनआंदोलन उठ खड़ा हुआ है?

इन प्रश्नों का उत्तर इस्लाम के कट्टरपंथी शिक्षा, इसके मूल हिंसक सिध्दांतों, राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और घोर असहिष्णुता से जुड़ा हुआ है।
जिस तरह से पूरे विश्व में आज इस्लाम के विरुद्ध आक्रोश है वह आज से नहीं है बल्कि इतिहास के पन्ने पलटिये तब आपको पता चलेगा कि इस्लाम अपने उदय के समय से ही पूरे विश्व में हिंसा और आक्रामकता फैलाता चला आ रहा है, चाहे वह यूरोप के साथ इस्राएल पर कब्जे को लेकर २०० वर्षों से जयादा चलने वाला धर्मयुद्ध हो या यूरोप के अन्य देशों और भारतवर्ष जैसी सोने की चिड़िया को बार बार लूटने और धर्म परिवर्तन के लिए किये गए इस्लामिक हमले या फिर मुगलों द्वारा सिखों और हिन्दुओं पर धर्म परिवर्तन के लिए किये गए रक्तरंजित अत्याचार ही क्यों ना हों, विश्व का इतिहास इस्लाम के हमलों से रक्तरंजित हो चुका है। आश्चर्य तब होता है जब इस सबके वावजूद, लोग इस्लाम को शांति प्रसारित करने वाला मजहब कहते हैं और यह दलील भी देते हैं कि कट्टरता इस्लाम का हिस्सा नहीं है और यह मजहब शांति का मजहब है। लेकिन इतिहास और वर्तमान के घटनाएं यह सिद्ध करती हैं कि यह अन्य शांतिपूर्ण धर्मों की आँखों में धूल झोकनें वाली दलीले हैं।

इस्लाम के इतना रक्तरंजित होने का कारण क्या है और क्यों इसका अनुसरण करने वाले इतने कट्टर होते हैं? इसके मूल में छिपी हुयी है इसकी शिक्षा जो इनके पैगम्बर मुहम्मद ने एक पुस्तक क़ुरान में संकलित की हुई हैं और जिसे मुस्लिम इनके ईश्वर अतार्थ अल्लाह की वाणी मानते हैं और आँख बंद कर इसका अनुसरण करते हैं।
तो आइये इस पुस्तक की कुछ आयतों को देखते हैं और पाते हैं कि किस तरह क़ुरान उन लोगों को क़त्ल करने और मारने का सन्देश देती है जो लोग इस्लाम का अनुसरण नहीं करते हैं।

१ . “जो काफ़िर हैं, जालिम वही हैं”। (२. २५४)

२. “निश्चय ही (भूमि) पर चलने वाले सबसे बुरे जीव अल्लाह की द्रष्टि में वह लोग हैं जिन्होंने ‘कुफ्र’ किया फिर वे ‘ईमान’ नहीं लाते”। (अर्थ – इस्लाम नहीं स्वीकारते) (८. ५५)

३. “तो इन काफ़िरों पर अल्लाह की फट्कार है”। काफ़िरों (गैर-मुसलमानों) के लिए अपमानित करने वाली यातना है।” (२: ८९-९०)

४. “किताब वाले” (यहूदी-ईसाई) जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं और न अन्तिम दिन पर और न उसे ‘हराम’ करते हैं जिसे अल्लाह और उसके ‘रसूल’ ने हराम ठहराया है और सच्चे ‘दीन’ को अपना दीन बनाते हैं उनसे लड़ो जब तक की वोह ज़िज़िया ना देने लगें।” (९ :२९)

५ . “हे ईमानवालो! उन काफ़िरों से लड़ो जो तुम्हारे आस-पास हैं और चाहिए कि वे तुम में कठोरता पाएँ।” (९ :१२३)

६. “जब पवित्र महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ-कहीं पाओ उनको कत्ल करो, उन्हें पकड़ो, उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें, ‘नमाज’ करें और ज़कात दें तो उनको जाने दो ।” (९:५)

७. “क्या तुम ऐसे लोगों से नहीं लड़ोगे जिन्होंने अपनी वादाखिलाफी की और ‘रसूल’ को निकाल देने की फिक्र की और उन्होंने ही तुमसे पहले छेड़ भी की। क्या तुम उनसे डरते हो? यदि तुम सच्चे ‘ईमान’ वाले हो तो अल्लाह इस बात का ज्यादा हकदार है कि उससे डरो। उनसे लड़ो! अल्लाह, तुम्हारे हाथों उन्हें यातना देगा, और उन्हें रुसवा करेगा और उनसे लड़ने में तुम्हारी सहायता करेगा और ‘ईमान’ वाले लोगों के दिलों को ठंडक देगा।” (९:१३-१४)

८. “हे नबी! ‘ईमानवालों’ को लड़ाई पर उतारो। यदि तुम में बीस होंगे और जमे रहने वाले होंगे तो वे दो सौ पर प्रभुत्व प्राप्त करेंगे। और यदि तुम सौ हों तो वह हजार काफ़िरों पर भारी पड़ेंगें।” (८:६५)

९. “मुझे (काफ़िरों) लोगों से तब तक युद्ध करने की आज्ञा दी गई है जब तक कि वे यह स्वीकार न करें कि अल्लाह के सिवा अन्य कोई पूज्य नहीं है और मुहम्मद को अल्लाह का पैगम्बर न माने; और जब वे ऐसा स्वीकार कर लें तो उनका जीवन परिवार (सहित) और सम्पत्ति मेरी ओर से सुरक्षित हो जायेगा। (सहीद मुस्लिम खंड १ : ३१ पृ. २०-२१)

उपरोक्त शिक्षाओं से स्पष्ट है कि इस्लाम में प्रसारित यही शिक्षा इस्लाम के कट्टर व्यवहार का कारण है जो उसे किसी और मजहब के साथ शांति और प्रेम पूर्ण व्यवहार करने की इजाजत नहीं देती। जब किसी भवन की इमारत ही कट्टर शिक्षा की कमजोर नीव पर रखी गयी हो तो उस भवन का सहिष्णु और प्रेम पूर्ण बने रहे की संभावनाएं असंभव है और यही कट्टर शिक्षा इस्लाम में सुधारों को रोक देती है क्योंकि इसी पुस्तक में यह भी बताया गया है कि यही इस्लाम की अंतिम पुस्तक है, मुहम्मद अंतिम पैगम्बर हैं और इसी पुस्तक को आँख बंद करके ही अनुसरण करना होगा।

अगर कोई उदारवादी मुस्लिम इन शिक्षाओं का विरोध करना भी चाहे तो वोह इस मजहब के चरमपंथी और कट्टरपंथी लोगो द्वारा चुप करा दिया जाता है। यही कारण है कि सनातन धर्म में जो सुधार राजा राममोहन राय अथवा स्वामी दयानन्द सरस्वती कर गए, इस्लाम में इस तरह के किसी भी महापुरुष का आर्विभाव नहीं हो पाया जो इस्लाम की इस कट्टर पंथी शिक्षा से लोगो को दूर कर सके और उनको शान्ति और प्रेम के मार्ग पर ले जा सके।कुछ लोगो ने कोशिश भी की, परन्तु उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया या उनको मज़हब से ही बेदखल कर दिया गया।

यहाँ पर यह सिद्ध करने की बात ही नहीं है कि इस्लाम की पुस्तक क़ुरान हिंसा का समर्थन करती है और विश्व में इस्लाम के प्रचार और उसके फैलाव की ही शिक्षा देती है बल्कि यह तो स्वयंसिद्ध है और इसे किसी भी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। लेकिन बहुत ही अफ़सोस है कि इस्लाम में एक बहुत पढ़ा लिखा वर्ग भी इस्लाम की इस अत्यंत हिंसात्मक शिक्षाओं की भर्त्सना और आलोचना नहीं करता और आँख मूंदकर क़ुरान की शिक्षाओं का पालन करता है।जब पुलवामा में इस्लामिक आतंकी हमला होता है, जब मुंबई पर इस्लामिक आतँकवादी हमला होता है, जब यही आतंकवाद कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का कत्ले आम करता है, तब कोई भी इस्लामिक विद्वान इन हमलों की भर्त्सना नहीं करता और ना ही मुस्लिम इसके विरोध में कोई प्रदर्शन करते हैं परन्तु जहाँ मुहम्मद का सिर्फ एक कार्टून एक शिक्षक दिखा देता है, ना केवल उस शिक्षक का गला काट दिया जाता है अपितु पूरे विश्व में यह मुस्लिम एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन करने लग जाते हैं। यह विडंबना नहीं तो और क्या है?

उदारवादी लोग इसे मात्र इस्लाम की छोटी मोटी विकृतियां कह सकते हैं। लेकिन यह मात्र विकृतियां नहीं हैं, यह एक ऐसे समाज का निर्माण है जहाँ सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर रह सकें और एक दूसरे के रीति रिवाजों, परम्पराओं का सम्मान कर सकें लेकिन वसुधैव कुटुंबकम सिर्फ एक धर्म से ही तो अपेक्षित नहीं किया जा सकता? इसलिए अंतत: प्रश्न यही रह जाता है कि क्या उदारवादी, इस्लाम के विद्वान् और धर्मनिपेक्षता के ठेकेदार इस्लाम की इस विकृति को स्वीकार करने और सुधार लाने के लिए तैयार हैं ?

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