झारखंड में भाषा को लेकर सियासत गरमाती जा रही है, जिसके जरिये एक बार फिर हेमंत सरकार की तुष्टिकरण की राजनीति सामने आई है. दरअसल हेमंत सोरेन सरकार ने बोकारो और धनबाद जिले की क्षेत्रीय भाषाओं की लिस्ट से भोजपुरी और मगही भाषा को भारी विरोध के बाद हटा दिया है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ उर्दू को क्षेत्रीय भाषा की सूची में जस का तस रखा गया है यानि उर्दू को हर जिले में मान्यता मिली हुई है. फिलहाल सरकार ने संशोधित नई सूची जारी कर दी है।
नई अधिसूचना के मुताबिक भोजपुरी और मगही को क्षेत्रीय भाषा की सूची से बाहर कर दिया गया है, लेकिन राज्य के 24 जिलों की क्षेत्रीय भाषा में उर्दू भाषा को बरकरार रखा गया है. पिछली अधिसूचना में उर्दू को किसी जिले में क्षेत्रीय भाषा की सूची में शामिल नहीं किया गया था। वहीं पलामू और गढ़वा जिले में भोजपुरी को क्षेत्रीय भाषा की सूची में रखा गया है।
दरअसल भोजपुरी-मगही भाषा को सूची से हटाने के लिए सीएम हेमंत सोरेन पर उसकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस ने भी दबाव डाला था। अधिसूचना जारी होने से ठीक पहले कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर और विधायक दल के नेता आलमगीर आलम ने हेमंत सोरेन से मुलाकात की थी और इन दोनों ही भाषाओं को हटाने के लिए कहा था। बता दें आपको इन भाषाओं को हटाने के लिए बोकारो और धनबाद में कई दिनों से विरोध प्रदर्शन जारी था ।
एक तरफ जहां झारखंड सरकार के फैसले के बाद हेमंत सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति सामने आ रही है तो वहीं सवाल ये भी कि जिस भोजपुरी और मगही भाषा को जो वास्तव में कई जिलों में बोली जाती है उन्हें लिस्ट से निकाल कर उर्दू भाषा को बरकरार रखा गया है, उर्दू जिसे वहां रहने वाले मुसलमान भी नहीं बोलते वो सिर्फ वहां के मदरसों में तालीम देने तक ही सीमित है, उसे जिले की क्षेत्रीय भाषा में शामिल करना, इसे हेमंत सरकार की तुष्टिकरण की सियासत के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता।
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