जम्मू-कश्मीर सरकार ने बड़ी कार्रवाई करते हुए दो डॉक्टरों डॉ. बिलाल अहमद दलाल और डॉ. निगहत शाही चिल्लों को उनकी सेवा से बर्खास्त कर दिया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इन दोनों पर आरोप है कि दोनों पाकिस्तान के लिए काम कर रहे थे और कश्मीर में साजिश रच रहे थे। इन्होंने शोपियां की आसिया और नीलोफर की पोस्टमॉर्टम की थी जिसके बाद राज्य में हिंसा भड़की थी। दरअसल आसिया और नीलोफर की मृत्यु 29 मई 2009 को डूबने से हो गई थी। लेकिन इन दोनों का मुख्य मकसद सुरक्षा बलों पर बलात्कार और हत्या का झूठा आरोप लगाकर भारतीय सेना और देश के खिलाफ असंतोष पैदा करना था।

आसिया और नीलोफर मामले की जांच के बाद सरकार ने दोनों डॉक्टरों डॉ. बिलाल अहमद दलाल और डॉ. निगहत शाही चिल्लों को बर्खास्त कर दिया है। इन्हें बर्खास्त करने के लिए संविधान की धारा 311 (2) (सी) का इस्तेमाल किया गया है। जांच में यह पाया गया है कि डॉ. बिलाल और डॉ. निगहत दोनों ही पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकी संगठनों के लिए काम कर रहे थे। सूत्रों के मुताबिक जांच से पता चला है कि उस समय की तत्कालीन सरकार को इस बाबत जानकारी थी लेकिन सरकार ने इस मामले को दबा दिया था जबकि कश्मीर जल रहा था।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस साजिश के बाद कश्मीर घाटी लगभग 7 महीने तक सुलगती रही। जून-दिसंबर 2009 के सात महीनों में हुर्रियत जैसे समूहों द्वारा 42 बार हड़ताल का आह्वान किया गया था। इसके बाद घाटी मे बड़े लेवल पर दंगे हुए थे। दंगा, पथराव, आगजनी के अलग-अलग थानों में कुल 251 एफआईआर दर्ज किए गए थे। वहीं इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान 7 लोगों की जान चली गई थी जबकि 103 लोग घायल हुए थे। इसके अलावा 29 पुलिसकर्मियों समेत 6 अर्धसैनिक बलों के जवानों को चोटें आईं थी। एक अनुमान के मुताबिक उन 7 महीनों में करीब 6000 करोड़ रुपये के कारोबार का नुकसान हुआ था।

दरअसल शोपियां जिले में साल 2009 में नीलोफर और आसिया नाम की दो महिलाओं की रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत होने की खबर सामने आई थी. इन्ही महिलाओं की पोस्टमार्टम रिपोर्ट को गलत दिखाने के आरोप में दोनों डॉक्टरों को बर्खास्त किया गया है. 14 दिसंबर साल 2009 में जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट में सीबीआई ने कहा था कि दोनों महिलाओं के साथ न तो बलात्कार हुआ था और न ही उनकी हत्या की गई, बल्कि उनकी मौत डूबने से हुई थी.

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