लेखक- बलबीर पुंज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका में है। जहां आज उनके सम्मान में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा व्हाइट-हाउस में राजकीय रात्रिभोज दिया जाएगा, वही भारतीय प्रधानमंत्री के रूप में मोदी दूसरी बार अमेरिकी कांग्रेस (संसद) के संयुक्त संत्र को संबोधित करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी की यह आठवीं अमेरिका यात्रा है, जो ऐसे समय पर हो रही है, जब दोनों देश तेजी से बदलती दुनिया में अवसरों के साथ कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

 

बीते 75 वर्षों में जब भी किसी स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री ने अमेरिका की यात्रा की, तब दोनों के भीतर हलचल बढ़ना सामान्य बात रही है। परंतु प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा, अमेरिका के राजनीतिक और नीतिगत समुदाय में दो कारणों से अभूतपूर्व हो गई है। एक— अमेरिकी संसद में दोनों सदनों के नेताओं द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को दूसरी बार, कांग्रेस की संयुक्त बैठक को संबोधित करने का निमंत्रण मिला है। उनसे पहले अमेरिका ने यह सम्मान केवल दो बार ब्रितानी प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल, दक्षिण अफ्रीका के पहले राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला और दो इज़राइली प्रधानमंत्रियों (नेतन्याहू-राबिन) को दिया था। दूसरा— बाइडेन प्रशासन के ढाई वर्ष के कार्यकाल में इस प्रकार का उच्चतम राजनयिक स्वागत (राजकीय भोज सहित), फ्रांसीसी और दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपतियों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए हो रहा है। यह आदर-सत्कार केवल व्यक्तिगत नहीं, अपितु एक राष्ट्र के रूप में भारत के प्रति आए आमूलचूल वैश्विक परिवर्तन को रेखांकित करता है।

 

अमेरिका घोषित रूप से विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक शक्ति है। वही सर्वाधिक जनसंख्या वाला भारत— दुनिया की सबसे तेज आर्थिक प्रगति के साथ ब्रिटेन को पीछे छोड़कर जर्मनी को पछाड़ने के मार्ग पर प्रशस्त है और दुनिया की बड़ी सामरिक ताकतों में से एक है। विदेशी आक्रांताओं के घृणा प्रेरित चिंतन और गुलाम मानसिकता से ग्रस्त पूर्ववर्ती दृष्टिकोण को तिलांजलि देकर नया भारत, बाह्य मापदंड-एजेंडे के अनुरूप चलने के बजाय अपने हितों को केंद्र में रखकर शेष विश्व के लगभग सभी सभ्य देशों (अमेरिका सहित) से अपनी शर्त पर संबंध प्रगाढ़ कर रहा है। अमेरिका प्रदत्त वैश्विक प्रतिबंधों के बाद भी अप्रैल 2022 से भारत न केवल रूस से कच्चा तेल खरीद रहा है, साथ ही वह देश का दूसरा बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता भी बन गया है। इस वर्ष मई में भारत ने रूस से 19.6 लाख बैरल तेल का आयात किया था, जो अप्रैल की तुलना में 15 प्रतिशत अधिक है।

 

यक्ष प्रश्न है कि जिस अमेरिका ने 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर कई पाबंदियां थोपी थी, वह उसके साथ निकटता बढ़ाने को क्यों व्याकुल है? क्या इसका एकमात्र कारण दोनों देशों का विस्तारवादी चीन के साथ हालिया गतिरोध है? वर्ष 2000 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के दौर से दोनों देशों के संबंधों को नया आयाम मिला है। वर्ष 2008 में भारत-अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु सहयोग समझौता हुआ। फिर वर्ष 2009 में राष्ट्रपति ओबामा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को अपने प्रशासन के पहले राजकीय आगंतुक के रूप में आमंत्रित किया। इसके अगले वर्ष भारत यात्रा में आए ओबामा ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन व्यक्त किया, बाद में ‘मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था’ और एक बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था (वासेनार) में भारत की सदस्यता पर सफलतापूर्वक काम भी किया।

 

प्रधानमंत्री मोदी के निमंत्रण पर ओबामा वर्ष 2015 की गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि के रूप में आए थे। ट्रंप प्रशासन में अन्य उच्च-स्तरीय प्रौद्योगिकी क्षेत्र में सफलताओं के बीच भारत-अमेरिका के संबंध और अधिक प्रगाढ़ हुए। वर्तमान राष्ट्रपति बाइडेन ने भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान केंद्रित क्वाड को नए स्तर पर पहुंचाकर ‘आई.टू.यू.टू.’ (भारत, इज़राइल, यूएई, यूएस) नामक नए बहुपक्षीय मंच का गठन किया, जिसमें भारतीय हितों को स्वीकार्यता मिली। इसी वर्ष 7 मई को अमेरिका, भारत, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (एनएसए) ने इसी समूह के अंतर्गत अपनी पहली बैठक की थी। इससे पहले, 31 जनवरी को भारत-अमेरिका एनएसए ने वाशिंगटन में ‘इनिशिएटिव फॉर क्रिटिकल एंड एमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़’ (आईसेट) का विमोचन किया था, जिसने दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को नए स्तर पर पहुंचा दिया। इस समय भारत-अमेरिका किसी भी अन्य गैर-संबद्ध देशों की तुलना में अधिक सैन्य अभ्यास कर रहे हैं। बीते डेढ़ दशक में भारत, अमेरिका से 20 अरब डॉलर से अधिक की रक्षा आपूर्ति खरीदने का अनुबंध कर चुका है, तो अब वह तीन अरब डॉलर के सशस्त्र ड्रोन आपूर्ति को अंतिम रूप देना चाहता है। दोनों देश रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग और जीई जेट इंजन प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण हेतु समझौते पर भी काम कर रहे है।

 

भारत-अमेरिका के संबंध रणनीतिक— विशेषकर आर्थिक केंद्रित है। वर्ष 2022 में दोनों देशों का व्यापार 191 अरब डॉलर पहुंच गया था, जोकि 2014 की तुलना में दोगुना है। जहां अमेरिकी कंपनियों ने उत्पादन से लेकर दूरसंचार तक भारत में 60 अरब डॉलर का निवेश किया है, तो भारतीय कंपनियों ने अमेरिकी सूचना प्रौद्योगिकी, दवाइयों और अन्य क्षेत्रों में क्षेत्र में 40 बिलियन डॉलर का निवेश किया है। इससे कैलिफोर्निया से जॉर्जिया तक सवा चार लाख नौकरियों का सृजन हुआ है। फरवरी में एयर इंडिया ने 200 से अधिक बोइंग विमानों की खरीद की घोषणा की थी, जिससे अमेरिका के 44 राज्यों में दस लाख लोगों को रोजगार मिलेगा।

 

कुछ अमेरिकी सांसद ‘नाटो प्लस’ में भारत को शामिल करने का सुझाव दे रहे है। भारत की वर्तमान विदेश नीति, रणनीतिक स्वायत्तता और स्वतंत्रता पर आधारित है, इसलिए भारत के लगभग सभी देशों से अच्छे संबंध हैं। जहां भारत ‘क्वाड’ का सदस्य है, तो वह ‘शंघाई सहयोग संगठन’ का भी हिस्सा है। भारत को ‘जी7’ बैठक में निमंत्रित किया जाता है, तो वह ‘ब्रिक्स’ का भी अंग है। वास्तव में, ‘नाटो प्लस’ का दांव, एशिया में विस्तारवादी चीन पर अंकुश लगाने हेतु भारत का मात्र एक साधन बनाने का उपक्रम है, जिससे भारतीय नेतृत्व अवगत है। साथ ही आतंकवाद जैसे अत्यंत गंभीर विषय पर अमेरिका के दोहरे मापदंडों (‘गुड-बैड तालिबान’ सहित) से भी, भारत परिचित है।

 

लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय-उपाध्यक्ष हैं।

संपर्क:- punjbalbir@gmail.com

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.