महान लोकनायक जयप्रकाश नारायण किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं।
इंदिरा गांधी की हिटलर साही सरकार से देश तंग हो चुका था , जिस तरह आज महाराष्ट्र, राजस्थान, बंगाल में हालत हैं उससे कई गुना ज्यादा बुरा हाल था ।
इंदिरा गांधी जी की सत्ता को उखाड़ने की शुरुआत वो आपातकाल जहां इंसानों की आजादी को लॉकडाउन कर दिया था।
लोकनायक जी ने नारा दिया; सिंहासन खाली करो की जनता आती है।
उस वक्त के छात्र नेता में लालू यादव, नीतीश कुमार, सुशील कुमार मोदी से लेकर यूपी के मुलायम सिंह यादव, या फिर दिल्ली और गुजरात के कई नेता – जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से निकले चेहरे सत्ता में आए और एक विरासत खड़ी की।
कांग्रेस ने बहुत ही चालाकी से अपने आदमियों को लगा दिया उस आन्दोलन में ताकि आन्दोलन के बाद भी जीत में भी लड्डू और हार में भी लड्डू।
जयप्रकाश नारायण जी के आदर्शों पर चले क्या वो नेता?
यह एक ऐसा सवाल है जो समाज के हर वर्ग के लोगो को सोचना होगा।
क्या जयप्रकाश जी ने वो आन्दोलन जातिवादी राजनीति के लिए की थी?
बिहार, यूपी के तमाम बड़े बड़े चेहरे उस आन्दोलन के दम पर सत्ता में तो आ गए पर बाद में उसी कांग्रेस पार्टी की विचारधारा से खुद को जोड़ लिया।
सबने अपने राज्यों में खुद को उस सिंघासन पर बनाए रखने के लिए समझौता कर लिया।
उन्हें समझ आ गया ये सिंघासन क्यों इतना अच्छा है।
देश में उस वक्त 90% देश के लोग इस आंदोलन से प्रभावित थे पर सिंघासन का आनन्द गिने चुने 10 लोगों ने लिया।
देश को क्या मिला बस टीवी डिबेट में वामपंथियों , कट्टरपंथियों को एक और राजनीतिक हथियार के रूप में वो 7 शब्द;
‘सिंघासन खाली करो की जनता आती है ‘
पर वह लोग इस नारे का इस्तमाल उसी राजनीतिक दल को फिर से उसी सत्ता में बैठाने के लिए करते हैं।
लोकनायक जयप्रकाश के सिद्धान्तों से समझौता कर लिया गया।
उस आन्दोलन से निकले नेताओं की जिम्मेदारी थी देश को आगे ले जाने की पर सभी लगभग जातीय समीकरण की राजनीति में उलझ गए।
हमने आज तक यही देखा है कैसे तमाम बड़े नेताओं ने सिर्फ और सिर्फ जातिगत और तुष्टिकरण की राजनीति की है इनमें यह सब भागीदार हैं चाहे राजद, सपा, बसपा बामपंथ, कांग्रेस और देश के कई अन्य राजनीतिक दल जो कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाते रहे हैं यह सब एक जैसे ही हैं।

जन जन की बात
अमित कुमार के साथ।

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