गुड मॉर्निंग एक्सक्लुसिव: सौरभ शाह

(newspremi.com, शुक्रवार, १ जनवरी २०२१)

हमारा मानसिक वर्ष दिवाली को पूरा होता है और उसके अगले दिन नया वर्ष आरंभ होता है. महाराष्ट्रीय लोगों के लिए गुढ़ी पाडवा का दिन नए वर्ष का आरंभ है. भारत के विभिन्न प्रदेशों में अलग अलग तिथियों से नए वर्ष का प्रारंभ होता है. तो फिर कैलेंडर के १ जनवरी के दिनांक से भी नया वर्ष शुरू होता है ऐसा मानना जरूरी है क्या‍?

हां बिलकुल ज़रूरी है. भारत की सांस्कारिक विरासत में कहीं भी न्यू इयर्स ईव यानी कि ३१ दिसंबर का महत्व नहीं है, कहीं भी एक जनवरी से नए वर्ष का मंगल आरंभ होने की बात नहीं है फिर भी हमारे लिए ये दिन भी नए वर्ष की तरह पहला दिन है.

अंग्रेजों की ये देन है तो है. पहली जनवरी को भी आप हैप्पी न्यू इयर विश करेंगे तो आप सनातन से दूर होकर अंग्रेज नहीं बन जाते, हिंदुत्व छोडकर ईसाइयत नहीं अपनाने लगते. पांडव धोती पहनते थे लेकिन आप पैंट शर्ट पहनते हैं. क्या आप अंग्रेजों का पहनावा पहनकर कमतर हिंदू बन गए? हीन हिंदू तो आप तब होंगे जब सेकुलरिज्म की धारा में बहकर दिवाली तो प्रदूषण फैलाती है ऐसा कहते हुए पटाखे फोडना बंद कर देंगे, होली में पानी की बर्बादी होती है, ऐसे कुप्रचार में बहकर एक दूसरे को रंग लगाना बंद कर देंगे, उत्तरायण में पतंग के मांजे से पक्षियों के गले कट जाते हैं, ऐसा मानकर होशियारी में आकर मौज मस्ती करने का उत्साह खो बैठेंगे.

ईद मनाते समय धर्म के नाम पर लाखों मासूम बकरों का कत्ल किया जाता है तब जीवदया वालों के पेट का पानी तक नहीं हिलता. करोडो लीटर खून गटर में बह जाता है तब पानी की बर्बादी और पानी में होनेवाला प्रदूषण उन पशु प्रेमियों या पर्यावरण प्रेमियों को नहीं दिखता. लेकिन गणेश विसर्जन के समय तुरंत नदी- समुद्र का कचरा उफान मारकर बाहर आ जाता है.

एक जमाना ऐसा था जब आपको खुले- विशाल हृदय का दिखना हो तो आपको हिंदुत्व के संस्कारों के बारे में गलत गलत बोलकर सेकुलर जमात में स्वीकृति प्राप्त करनी पडती थी, दूसरों की संस्कृति कितनी महान है और हमारा देश कितना पिछड़ा है, ऐसी चर्चाओं में हिस्सा लेकर `मैं तो उदार दिल हूँ’ ऐसा साबित करना पडता था. ऐसा करते करते आप कब अपनी जड़ों से कट गए और कब त्रिशंकु बनकर सेकुरिजम के भ्रामक प्रचार में फंस गए उसका आपको ख्याल ही नहीं रहा.

बाबरी-गोधरा के बाद और खासकर २०१४ के बाद देश का वातावरण बदल गया और अपनी संस्कृति के प्रति आपके भीतर जागरूकता बढ़ी. सेकुलर बनकर हर किसी का दुलारा बनने चाहत खत्म हो गई. सेकुलर होंगे तो पांच जगह पूछपरछ होने लगेगी, सिस्टम के अंदर का आदमी माने जाएंगे, कोई त्यागेगा नहीं, ऐसे भ्रम से आप बाहर निकल आए. बाहर आने के लिए, पुराने को छोडने के लिए, अपनी जड़ों की तरफ लौटने के लिए, सेकुलरिज्म के साथ जो कुछ भी जुडा था उन सभी को सांप की केंचुली की तरह आपने उतार दिया.

हिंदुत्व के सनातन संस्कार हमारे डीएनए में है. कुछ बातों का विरोध करेंगे तो ही पक्के भारतीय या सच्चे सनातनी दिखेंगे, इस मोह से बाहर निकलना चाहिए.

पर एक बात भूल गए कि कई सारी बातें आपकी त्वचा बन चुकी हैं. उन्हें उतारने का प्रयास नहीं करना चाहिए. पैंट-शर्ट या जींस या टीशर्ट या ब्लेज़र-स्पोर्ट्स कोट-सूट आपकी संस्कृति नहीं है लेकिन उसका त्याग करके प्रतिदिन की जिंदगी में धोती या अंगौछा या पगडी वाली पोशाक आपके लिए अनुकूल नहीं होगी. जिनके अनुकूल हो वे ज़रूर पहनें. दक्षिण में लुंगी या मुंडू प्रचलित है ही. लेकिन ऊपर तो कमोबेश अंग्रेजों की देन अर्थात कमीज ही पहनी जाती है.

हिंदुत्व के सनातन संस्कार हमारे डीएनए में है. कुछ बातों का विरोध करेंगे तो ही पक्के भारतीय या सच्चे सनातनी दिखेंगे, इस मोह से बाहर निकलना चाहिए. एक जनवरी को नए वर्ष के पहले दिन के रूप में नहीं स्वीकारने के अलावा अन्य कई मुद्दे हैं जिनके द्वारा कई सयाने हिंदू अपने सनातन संस्कारों को प्रकट करने की डींगे हांकते हैं कि `दूसरे क्या देश के संस्कारों का संरक्षण करेंगे, विशुद्ध हिंदू तो मैं हूँ.’ अपने इर्दगिर्द ऐसा भ्रमजाल बुनते रहते हैं और दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करते रहते हैं.

गीता प्रेस, गोरखपुर का नाम आपने सुना होगा. आपके घरों में गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित रामचरित मानस या अन्य कई ग्रंथ वर्षां से होंगे. करीब एक शताब्दी से निरंतर सनातन धर्म की परंपरा का प्रचार-प्रसार कर रही इस प्रकाशन संस्था की इस वर्ष की डायरी आज मुझे प्राप्त हुई है. मैं तो वर्षों से हर विक्रम संवत के नए वर्ष पर लाल कपड़े की बाइंडिंग वाली निदर्शिका खरीदकर दिवाली पर उसका पूजन करता हूँ. वह डायरी आर्थिक हिसाब रखने के लिए है लेकिन उसमें मैं प्रति दिन अपने लेख, उनका विषय, उसकी प्रकाशन की तिथि का हिसाब इत्यादि रखा करता हूं. कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अग्रहायण मास की अमावस्या तक की दैनंदिनी इस डायरी में लिखना एक अनिवार्य अंग है. गीता प्रेस की डायरी का नाम `गीता दैनंदिनी’ है. उसमें हर पृष्ठ पर भगवद्गीता के दो श्लोक मूल संस्कृत में हैं और नीचे उसका हिंदी अनुवाद है, कुछ पृष्ठों पर एक ही श्लोक है. ३६५ पृष्ठों में ७०० श्लोक के साथ संपूर्ण गीता आपको मिलती है, अनुवाद के साथ, इसके अलावा प्रति दिन सूर्योदय – सूर्यास्त का समय, विक्रम संवद के अनुसार मास-तिथि के विवरण तथा संक्षिप्त पंचांग (दिनांक, वार, तिथि, घडी और नक्षत्र) इत्यादि भी है.

अपनी संस्कृति के साथ हमारे रिश्ते को अक्षुण्ण बनाए रखनेवाली इस अद्भुत डायरी का पहला पृष्ठ क्या है जानते हैं? शुक्रवार, १ जनवरी २०२१. और अंतिम पृष्ठ? शुक्रवार, ३१ दिसंबर २०२१.

नीलेश नीलकंठ ओक एक गणमान्य भारतीय इतिहास शास्त्री हैं. महाभारत का युद्ध किस वर्ष और किन तिथियों के दौरान हुआ, इस बो में सटीक वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत करने वाली उनकी पुस्तक काफी लोकप्रिय है और खूब बिकी है. इसके अलावा रामायण, भगवान राम, भीष्म इत्यादि विषयों पर उनकी विस्तार से अधिकृत जानकारी देनेवाली पुस्कें हैं. कालगणना पर उनका प्रभुत्व अद्वितीय है. `सुब्बू पब्लिकेशन्स’ उन्होंने अपनी और अन्य कई रिसर्चर्स की पुस्तकें प्रकाशित करने के लिए शुरू की गई प्रकाशन संस्था है. पिछले साल मेरे पास उनके द्वारा प्रकाशित `नमस्ते २०२०: हिंदू प्लानर’ नामक एक डायरी मेरे पास आई थी. प्रतिदिन के अपॉइंटमेंट्स के अलावा हर दिन के मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में टिप्पणी के लिए बने खानों से युक्त इस डायरी में भी तिथि, नक्षत्र, मास (कार्तिक, अश्विन इत्यादि) है. उसका पहला पृष्ठ भी बुधवार, १ जनवरी २०२० से शुरू होता है. अंतिम पृष्ठ गुरुवार, ३१ दिसंबर २०२० है.

क्या एक संस्थान के रूप में या एक व्यक्ति के रूप में आपका योगदान गीता प्रेस या नीलेश ओक से अधिक है? गीता प्रेस गोरखपुर या नीलेश नीलकंठ ओक क्या २०२१ को नए वर्ष के रूप में स्वीकार करके कम सनातनी हो गए?

हैप्पी न्यू इयर.

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