आज देश का शायद ही कोई उच्च न्यायालय बचा हो जहां इस भयंकर महामारी आपदाकाल में भी कोरोना , पीड़ितों , चिकित्सा व्यवस्था , वैक्सीन , कीमत , वितरण आदि अन्य बिंदुओं को विषय बनाकर सैकड़ों मुकदमे दायर कर दिए गए हैं और जिनपर लगातार सुनवाई चल रही है और सरकार ,प्रशासन , पुलिस , अस्पताल से स्पष्टीकरण माँगा जा रहा है और उन्हें नए निर्देश दिए जा रहे हैं
सर्वोच्च न्यायालय भी लंबित वादों की सुनवाई करते हुए अलग अलग फरमान जारी कर रही है बिना आये सोचे विचारे कि आपात स्थिति के मद्देनज़र अभी सेअबकी पहली आउर एकमात्र प्राथमिकता लोगों को चिकित्सा मुहैया कराना है
हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं कि स्थिति भयावह है और न्यायपालिका आंख मूंद कर नहीं बैठ सकती . किंतु ये भी उतना ही बड़ा सच है कि , क्या , कैसे , कब ,कहां , कितना -बार बार सिर्फ इन प्रश्नों को सिर्फ खड़ा करते रहने से तो प्रशासन , व्यूवस्था और संबधित सभी अधिकारी अदालतों के समक्ष यही सब बताने और समझाने में ही लगे हुए हैं .
इससे अलग जैसा कि स्वयं सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि देश भर के उच्च न्यायालयों में लंबित वाद पर चल रही सुनवाई और अलग-अलग तरह के दिशा निर्देशों से दुविधा और भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है जो किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है
दूसरी तरफ आम व्यक्ति भी न्यायपालिका द्वारा सिर्फ चुनिंदा विषयों पर बिना किसी प्रायोगिकता का ध्यान किए मनमाने निर्णयों को लेते जाने के कारण क्षुब्ध और व्यथित हैं . किसान आदनोलन , बंगाल हिंसा , दिल्ली सरकार की अकर्मण्यता के कारण गई सैकड़ों जानों पर अदालत की निष्क्रियता भी आम लोगों को बहुत अखर रही है .
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