संविधान में बेशक कुछ भी लिखा हो , ये भी कि सरकार और प्रशासन की नज़र में भारत का हर धर्म , सम्प्रदाय , एक समान है और विधि द्वारा स्थापित इस शासन व्यवस्था में सभी धर्मों को एक समान अधिकार प्रदान किया गया है ।

किंतु जब बात केरल जैसे उस राज्य की हो जो दिन रात तरह तरह के शरियानुमा कानूनों को अपने यहाँ लाकर हिन्दू मुक्त राज्य का जेहादी ख्वाब पूरा करने में लगा हो तो फिर संविधान और उसकी मर्यादा ताक पर रख कर वो फैसले लिए जा सकते हैं जो बिल्कुल ही असंवैधानिक है।

केरल सरकार ने मट्टनूर महादेव मंदिर को जबरन सरकारी घोषित संपत्ति कर दिया और पूछने पर स्पष्टीकरण दिया कि मंदिर सार्वजनिक हैं इसलिए कर लिया , चर्च मस्जिद नहीं । यानि उनका कोई खैरख्वा है ,मंदिरों का क्या है वे तो लावारिस होते हैं ।

राज्य भाजपा के अद्यक्ष ने भी इसबात को साझा करते हुए अपना व लोगों का रोष सामने रखा । ज्ञात हो कि अभी कल ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सरकारों द्वारा मंदिरों की धन संपत्ति भूमि आदि को हड़प जाने की प्रवृत्ति को गलत ठहराते हुए उन्हें सब कुछ वापस करने की बात कही है ।

सरकार की इस कारवाई और धूर्त्तता तथा लालच से भरे इस फैसले के विरुद्ध भारी नास्राज़गी है और वे इसे हिंदुओं के धार्मिक क्रियाकलाप व संचालन में सरकार का गैरवाजिब दखल और अतिक्रमण मान रहे हैं । लोगों ने सरकार द्वारा जबरन मंदिर पर कब्जे का विरोध किया तो पुलिस ने बल प्रयोग करके उन्हें जबरन हटाया ।

इस बाबत निगम की तरफ से जो तर्क और जवाब दिया गया वो न तो संविधान में प्रदत्त व्यवस्थाओं के अनुरूप है और न ही वैधानिक रूप से ठीक है । निगम का कहना है कि मंदिर तो सार्वजनिक संपत्ति होती है जबकि चर्च और मस्जिद निजी होते हैं ।

ध्यान रहे कि , दिल्ली , महाराष्ट्र ,पश्चिम बंगाल और राजस्थान समेत कई राज्य मदरसों और मस्जिदों में प्रति महीने की भारी भरकम राशि को आवंटित किए हुए हैं। मगर मंदिर सड़क पर पड़ी कोई लावारिस वस्तु है इसलिए सरकार की हो गई । क्या तर्क है , क्या कानून है ???

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