भारत की वामपंथी राजनीति के कई प्रतीक चिह्न हैं. और इसका उदाहरण हम कई बार देख चुके हैं. इन दिनों केरल की वामपंथी सरकार अपनी विचारधारा और अपने तमाम सिद्धांतों को भूल कर अपने स्वार्थ के लिए गौमाता की सेवा में लगी हुई है, जी हां सोच में पड़ गए ना जो वामपंथी गौमाता से नफरत करते हैं आजकल वही गौमाता वामपंथियों का खजाना भर रही है. 
जो वामपंथी हिंदू धर्म में पूजी जाने वाली गौमाता को लेकर अपशब्द बोलते थे उन्हें गौमूत्र और गोबर के चिकित्सीय गुणों को स्वीकार करने में अब कोई शर्म और झिझक नहीं हो रही है. यहां तक कि अब वे गोबर से बनी दवाओं को बेचकर पैसा कमाने से भी गुरेज नहीं कर रहे है. ये वहीं साम्यवादी और हिंदू विरोधी नेता हैं जो हिंदू धर्मं में पूजी जाने वाली गौमाता और गौमूत्र के प्रति श्रद्धा और भक्ति में डूबे हिंदुओं पर के लिए धर्मनिष्ठ हिंदुओं की आस्था पर चोट पहुंचाते हैं. कम्युनिस्टों ने हमेशा से हमारी सदियों पुरानी वैदिक परंपरा और ज्ञान का मजाक बनाया है. हिंदू धर्म में प्राचीन काल से ही गाय के उत्पादों के औषधीय मूल्यों और आयुर्वेद में कई बीमारियों के इलाज के लिए उनके इस्तेमाल पर जोर दिया गया है। ऋषि-मुनि इसी आयुर्वेद का इस्तेमाल कर गंभीर से गंभीर बीमारी का इलाज कर लेते थे.  
The Organiser की रिपोर्ट के मुताबिक केरल सरकार अपनी खुद की "औषदी" नामक आयुर्वेदिक कंपनी के जरिये गाय के गोबर, गोमूत्र, गाय के दूध, घी और दही से बने 'पचागव्य घृतम' बेच रही है। साथ ही ये भी दावा कर रही है उस दवा से मानसिक रोग, पीलिया, बुखार, मिर्गी का इलाज भी संभव है. बता दें आपको 'औषधी' खुद को 'भारत में सार्वजनिक क्षेत्र में आयुर्वेदिक दवाओं का सबसे बड़ा उत्पादक' बताता है। यह कथित तौर पर कुछ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में से एक है जो लगातार केरल सरकार के लिए लाभ कमाती है। केरल सरकार की औषधी की गोमूत्र और गोबर से बनी दवाओं की खबर सोशल मीडिया पर इन दिनों खूब वायरल हो रही है. जिसमें लोग कम्युनिस्टों के पाखंड पर जमकर तंज कस रहे हैं।
केरल सरकार अपना खजाना भरने के लिए जिस तरह से अब गौमाता की सेवा में लग गयी है उसने वामपंथ के वैचारिक दोगलेपन का नया चेहरा सके सामने ला दिया है. जाहिर है वो दिन दूर नहीं जब ये धूर्त कॉमरेड अपने सिद्धांतों, अपनी विचारधारा को छोड़ हिंदुत्व को गले लगा लें, वैसे देखा जाए तो अपने सियासी स्वार्थ के लिए वामपंथी अपने विचारधारा और सिद्धातों को भी त्याग सकते हैं. इसका ताजा उदाहरण केरल की वामपंथी सरकार है।

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