किसान आंदोलन में अब किसान खुदकुशी की खबर सामने आई है। इस खबर को लेकर देश के तमाम वामपंथी मीडिया और राजनीतिक पार्टियां अब हो हल्ला मचा रहे हैं। दरअसल यही वह वामपंथी प्रोपेगेंडा है जिस मकसद से किसान आंदोलन शुरू किया गया था, वामपंथी समूह में रणनीति थी कि शाहीन बाग की तर्ज पर किसान आंदोलन के जरिए हिंसा के लिए उकसाया जाए और फिर पलटवार होने पर विक्टिम कार्ड खेला जाए।
शाहीन बाग के टाइम पर पूरी कोशिश की गई थी उकसाने की ताकि एक वर्ग उठे दूसरे वर्ग को गाली दे फिर दूसरा वर्ग उठे और पलट कर गाली दे और उसके बाद शुरू हो वर्ग संघर्ष जो वामपंथी विचारधारा की जड़ है ।
द्वंद्वात्मक भौतिकवादी विचारधारा 11वी की किताबों से शुरू होती है, आप लड़े ओर जब वामपंथी ये देख लेगा कि एक पक्ष पीछे हट रहा है तब वो लगातार जहालत से भरी बातें कहकर उकसाने की कोशिश करेंगे।
पंजाब की जनसंख्या के एक प्रतिशत व्यक्ति भी सड़कों पर नहीं हैं …हरियाणा में भी प्रतिशत कमोबेश यही होगा, पर बयान देकर जो जहर भरा जा रहा है वो असल में आपके लिए नहीं बल्कि सरकार के लिए है…ताकि सरकार को ये बताया जाए कि अगर आपने हमारी बात नहीं सुनी तो हम इस तरह की घटिया बाते करते रहेंगे और वर्ग संघर्ष को हवा देंगे। अगर सामने से जवाब आया तो हिंसा करेंगे और फ़िर विक्टिम कार्ड फेंककर लोगों की लाशों पर अपने बच्चों के लिए महल खड़ा करेंगे।
अब जिस तरह से किसान आंदोलन से किसान खुदकुशी की खबर सामने आई है अब उस पर विक्टिम कार्ड खेला जा रहा है और पूरे देश के किसानों के बीच किसान के शव की तसवीर को मॉडल की तरह पेश किया जा रहा है ताकि मोदी विरोध का एक प्रोस्पेक्टिव खड़ा किया जा सके। अब ये जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर है कि वो इस प्रोपेगेंडा को तोड़ने के लिए कितनी जल्दी इस मुद्दे का साम-दंड-भेद के जरिए समाधान करते हैं।
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