अव्वल तो आमिर खान को बॉलीवुड की मौजूदा दुर्गति को देखते हुए अपनी कोई भी फिल्म , खासकर जब वो एजेंडे की बिना नहीं होती तो इस वक्त रिलीज़ करने से बचना चाहिए था क्यंकि भारत की जनता ने जिस तरह से बॉलीवुड पर अपना गुस्सा उतारने का और पूरे बॉलीवुड को जमींदोज़ करने पर तुली हुई है इन हालातों में कुछ समय में ही पूरे बॉलीवुड का घमंड चूर चूर होकर बिखरने वाला है और कभी , हमारी फिल्मे मत देखो कौन बुलाता है घर से देखने के लिए कहने वाले आज हाथ जोड़ जोड़ कर टीवी अखबार में कहते फिर रहे हैं , प्लीज़ आओ और देखो , देखो न प्लीज़।
सनातनियों ने तो सुशांत सिंह राजपूत की मौत और उसके बाद बॉलीवुड के काले कारनामों का सारा खाता बही देखने के बाद से ही बॉलीवुड , खान गैंग की गुटबाजी , भाई भतीजावाद सबके विरुद्ध जैसे एक असहयोग आंदोलन जैसा युद्ध छेड़ दिया और एक एक को , जनता की ताकत और पसंद नापसंद का एहसास करवाया गया। [ पिछले दो सालों में प्रदर्शन के लिए आई सारी फिल्मों को न सिर्फ जनता ने बुरी तरह से नकारा बल्कि बाकायदा मुहिम चला कर उनका बहिष्कार करके बॉलीवुड के ठेकेदारों को एक सन्देश भी दे दिया।
लेकिन मियाँ परफेक्शनिस्ट जिन्हें कभी भारत में रहने में डर लगता था आज उनकी फिल्मों को देखने में आम लोगों को डर लगने लगा है ,और तो और उनके अपने भाई john लोगों ने भी लाल सिंह चड्डा को नहीं देखने का मन बना लिया है हालाँकि इसके लिए उनके अपने अलग ही तर्क और कारण हैं। पहला तो ये है कि , बकौल उनके , आमिर खान की “लाल सिंह चड्ढा ” में “लाल” रंग काफिरों का है , और शरीयत के अनुसार फिल्म का नाम आमिर खान को “हरा सिंह चड्ढा” ही रखना चाहिए था।
दूसरी जरूरी बात ये उठाई गई है कि आमिर खान को चड्ढा या बनियान पर नहीं बल्कि , बुर्का -मुल्तानी आदि पर फिल्म बनानी चाहिए थी जिससे शरिया और रियाया की खिदमत हो सके।
वैसे उनका मानना है कि आमिर अपनी फिल्मों में चुपके चुपके से शातिराना तरीके से अपने मुझलिम एजेंडे को घुसेड़ कर कौम की सेवा तो करते रहे हैं लेकिन अब उन्हें खुल कर गजवा गजवा खेलना चाहिए।
अब देखना ये है कि लाल सिंह चड्ढा जो हरा सिंह चड्ढा के नाम से नहीं बनाई जा सकी उसके फ्लॉप होने के बाद क्या सचमुच ही आमिर को देश में रहने में डर लगने वाला है। लाहौल विला कुव्वत
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