कांग्रेस के सरकार में अल्पसंख्यक शिक्षा आयोग के अध्यक्ष के रूप में एक दशक से अधिक तक रहने और काम करने वाले अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति एम एस सिद्द्की ने हाल ही में एक साक्षात्कार देते हुए , मुस्लिम युवाओं में शिक्षा के प्रति छाई घोर उदासीनता और इसके लिए मदरसों की जवाबदेही पर बहुत बेबाकी से बहुत सारी वो बातें कह दीं , वो भी खरे खरे शब्दों में कह दीं जो शायद कट्टर मज़हबियों को भीतर तक चुभ जाए।

बकौल सिद्द्की जी , मुस्लिम युवाओं का ध्यान पढ़ाई लिखाई से ज्यादा आवारागर्दी या फिर सलमान शाहरुख बनने की ओर अधिक रहता है और वे किसी भी सरकारी , सार्वजनिक या प्रशासनिक सेवाओं में चयन आदि के लिए कोई विशेष मेहनत कभी नहीं करना चाहते हैं। वे सब बॉलीवुड के अभिनेता बनने की ललक में पढ़ाई लिखाई छोड़ कर अन्य शोशा पंथियों में लग जाते हैं।

इसके लिए सिद्द्की सीधे सीधे मदरसों की शिक्षा और मौलवियों की बदनियति को जिम्मेदार ठहराते हैं वे कहते हैं कि सरकार द्वारा फर्जी तरीके से अनुदान वजीफे सहायता आदि प्राप्त किए हुए ये मदरसे सालों तक मुफ्त का सरकारी पैसा उड़ाते रहते हैं। बकौल उनके -आजकल ये मदरसे भ्रष्टाचार और दलाली के अड्डे बन चुके हैं जहां आधुनिक शिक्षा से किसी का कोई लेना देना ही नहीं होता है।

ज्ञात हो कि सरकार द्वारा अनुदान और सब्सिडी राशि से संचालित देश भर के हज़ारों मदरसों में सुधार और आधुनिक शिक्षा का समावेश किए जाने की मांग पिछले कुछ समय से जोर शोर से उठाई जा रही है। हाल ही में असम की प्रदेश सरकार ने राज्य द्वारा मदरसों को दिए जाए रहे सारे सरकारी अनुदानों को बंद करने का फैसला किया है।

बड़े ही दुःख और हैरानी की बात है कि न्यायमूर्ति सिद्द्की ने जिस बात को बेबाकी से सबके सामने कह /रख दिया है उसे पूरा मुस्लिम समाज भी बहुत अच्छी तरह से जानता और समझता है ,किन्तु बड़ी बड़ी मुस्लिम हस्तियों और देशों तक का इस दिशा में उदासीन रहना ,कुछ इस तरह से है मानो वे चाहते ही नहीं हैं कि विज्ञान , आधुनिकता , वैश्विकता आदि का समावेश हो और कट्टरता कमज़ोर हो।

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