आप कहेंगे ये क्या बात हुई भला ? भीड़ भी कहीं इस हिसाब से तय की जाती है कि ये पीटने वाली भीड़ है पिट जाने वाली , मार काट करने वाली भीड़ है खुद ही मर खप जाने वाली ? अजी जब सियासत की पहरेदार खाकी तक को ये फर्क पता है , दिखता है तो…..तो फिर
शाहीन बाग़ में पुलिस थाना से लेकर कचहरी का जोर लगा लिया , प्यार मनुहार और मीडिया के त्यौहार तक वाले सारे विकल्प खोलने के बावजूद छः महीने तक राजधानी के एक पूरे क्षेत्र , सड़क , चौराहे को घेर कर अपने अब्बू की सराय बनाए हुए उत्पातियों को कोरोना बीमारी के अलावा वहां से कोई हटा उठा नहीं पाया | पता था , जहां कारीगरी बहादुरी दिखाई ये उत्पातियों की भीड़ पलट के पत्थर , ढेले , ईंट , डंडे , तेज़ाब कट्टे से ही जवाब देगी |
अब देखिये दूसरे प्रकार की | निरीह , बिलकुल लुटी पिटी डरी हुई पहले से ही , मुंगेर के दुर्गा पूजा विसर्जन से लेकर कल जंतर मंतर पर लव जेहाद के विरोध में हुए विरोध तक में न सिर्फ मार खाने ,घायल होने , बल्कि मार खा खा के बिलकुल ही मर जाने के स्तर तक सहनशीन | और फिर पुलिस ही क्यों , कभी भी कोई भी हाँक ले जाए ऐसी गऊ भीड़ |
नहीं समझे तो इसे ऐसे समझिये फिर
एक भीड़ होती है जो , अपने घर के अपने गाँव कस्बे के उस बेटे भाई दोस्त के तिरंगे लिपटे हुए देह के पीछे , राष्ट्रीयता और देश प्रेम के उबलते ज्वार को संजोए उसे कांधा देते हुए ,अंतिम रश्मि रथ पर आरूढ़ करने के लिए वीरता से माँ भारती और हिन्द की सेना की जय करते हुए अपने कलेजों में चिंगारी भर के चलते हैं |
इससे अलग एक वो भीड़ होती है जो , किसी कठ मुगले के भड़काने उकसाने के बाद कहीं भी इकट्ठी हो जाती है , ढेले बरसाने के लिए , गाड़ियां जलाने के लिए , लूटमार करने के लिए और तो और बुरहान वानी जैसा इनका कोई सगा मुग़ल जब फ़ौज सेना के हाथों कुत्ते की मौत मारा जाता है तो फिर उसके जनाजे के पीछे साँप के झुण्ड की तरह फुफकारते हुए अपनी केंचुली में छिपी भीड़ |
दोनों में पहचान भी बड़ी आसानी से हो जाती है वो कहा था न मोदी जी ने कि आप कपड़ों से , रंग से ही पहचान जाएंगे न हो तो फिर हाथों में पत्थर डंडे रॉड आदि से , दूसरी तरफ मार खा के मर जाने वाली के ऊपर नज़र डालियेगा तो , तन के कपडे के अलावा ,किसी के पास एक डायरी किसी के मोबाइल किसी के थैला किसी के कलम ,एक गमछा , चश्मा बस यही सब |
सबसे बड़ी विडंबना ये है कि , देश की पुलिस भी उसी कमज़ोर आसान रास्ते को चुनती है , मतलब जहां जो प्रतिकार विरोध नहीं करे , हिंसा से जवाब न दे , पलट कर पत्थर डंडे चलाने वाली भीड़ न हो , उसी पर अपनी वर्दी की ताकत और अपने अंदर की झल्लाहट का क्रोध सब उतार दो | इससे ये भी तसल्ली रहती है न पुलिस को , कहीं तो पुलिसियाई दिखा सके |
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